व्यञ्जना का महत्व और काव्य में उसकी भूमिका

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

 

यह चित्र "साहित्यदर्पण" से प्रेरित है, जिसमें एक पारंपरिक भारतीय विद्वान को प्राचीन कक्ष में ताड़पत्र पांडुलिपियों और स्याही पात्रों के साथ अध्ययन और लेखन में लीन दर्शाया गया है। पृष्ठभूमि में भारतीय स्थापत्य कला और एक सुंदर उद्यान का दृश्य दिखाई देता है, जो संस्कृति और ज्ञान की गहराई को व्यक्त करता है।

यह चित्र "साहित्यदर्पण" से प्रेरित है, जिसमें एक पारंपरिक भारतीय विद्वान को प्राचीन कक्ष में ताड़पत्र पांडुलिपियों और स्याही पात्रों के साथ अध्ययन और लेखन में लीन दर्शाया गया है। पृष्ठभूमि में भारतीय स्थापत्य कला और एक सुंदर उद्यान का दृश्य दिखाई देता है, जो संस्कृति और ज्ञान की गहराई को व्यक्त करता है।




व्यञ्जना का महत्व और काव्य में उसकी भूमिका:

"वाग्वैदग्ध्यप्रधानेऽपि रस एवात्र जीवितम्।"

  • वाग्वैदग्ध्य-प्रधानेऽपि (भाषा की चतुराई मुख्य होने पर भी)
  • रसः एव (रस ही)
  • अत्र (यहाँ)
  • जीवितम्। (जीवन है)।

अनुवाद: भले ही काव्य में भाषा की चतुराई प्रमुख हो, लेकिन रस ही काव्य का जीवन है।


काव्य का प्रयोजन और व्यञ्जना की अनिवार्यता:

"नहि कवेरितवृत्तमात्रनिर्वाहेणात्मपदलाभः।"

  • नहि (नहीं)
  • कवेः (कवि के लिए)
  • इति-वृत्त-मात्र-निर्वाहेण (घटनाओं के मात्र वर्णन से)
  • आत्म-पद-लाभः। (प्रशंसा प्राप्त होती है)।

अनुवाद: केवल घटनाओं का वर्णन करके कवि को प्रशंसा प्राप्त नहीं होती।


"इतिहासादेरेव तत्सिद्धेः।"

  • इतिहास-आदेर्-एव (इतिहास आदि के माध्यम से ही)
  • तत्-सिद्धेः। (उसकी सिद्धि होती है)।

अनुवाद: घटनाओं का वर्णन इतिहास आदि से ही संभव है, काव्य के लिए यह पर्याप्त नहीं।


"वाग्वैदग्ध्येन रसस्याभिव्यक्तिरस्य प्रयोजनम्।"

  • वाग्वैदग्ध्येन (भाषा की चतुराई से)
  • रसस्य-अभिव्यक्तिः (रस की अभिव्यक्ति)
  • अस्य (काव्य का)
  • प्रयोजनम्। (प्रयोजन है)।

अनुवाद: काव्य का उद्देश्य भाषा की चतुराई से रस की अभिव्यक्ति करना है।


रस का महत्व:

"रस एवात्मा काव्यस्य।"

  • रसः (रस)
  • एव (ही)
  • आत्मा (आत्मा है)
  • काव्यस्य। (काव्य की)।

अनुवाद: रस ही काव्य की आत्मा है।


"ध्वन्यात्मन्येव शृङ्गारे दोषाः अपि त्याज्याः।"

  • ध्वन्य-आत्मनि (जिसमें ध्वनि आत्मा हो)
  • एव (ही)
  • शृङ्गारे (शृंगार रस में)
  • दोषाः अपि (दोष भी)
  • त्याज्याः। (त्याज्य होते हैं)।

अनुवाद: जहाँ ध्वनि काव्य की आत्मा है, वहाँ शृंगार रस में भी दोष त्याज्य होते हैं।


काव्य और रस का संबंध:

"वाक्यार्थस्य रसात्मकत्वं काव्यलक्षणम्।"

  • वाक्यार्थस्य (वाक्य के अर्थ का)
  • रसात्मकत्वम् (रस से युक्त होना)
  • काव्यलक्षणम्। (काव्य का लक्षण है)।

अनुवाद: वाक्य के अर्थ का रस से युक्त होना काव्य का लक्षण है।


निष्कर्ष:

साहित्यदर्पण में यह स्पष्ट किया गया है कि काव्य का मुख्य उद्देश्य रस की अभिव्यक्ति करना है। व्यञ्जना, जो गूढ़ अर्थ को प्रकट करती है, काव्य का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है। अभिधा और लक्षणा से परे, व्यञ्जना के माध्यम से ही काव्य अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त करता है। रस, जो काव्य की आत्मा है, भाषा की चतुराई और घटनाओं के वर्णन से अधिक महत्वपूर्ण है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top