नाथ दैव कर कवन भरोसा, सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा, कादर मन कहुँ एक अधारा, दैव दैव आलसी पुकारा,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,
कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा॥ |
लक्ष्मणजी ने कहा- हे नाथ! दैव का कौन भरोसा! मन में क्रोध कीजिए (ले आइए) और समुद्र को सुखा डालिए। यह दैव तो कायर के मन का एक आधार (तसल्ली देने का उपाय) है। आलसी लोग ही दैव-दैव पुकारा करते हैं॥
नाथ दैव कर कवन भरोसा।
सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा॥
कादर मन कहुँ एक अधारा।
दैव दैव आलसी पुकारा॥
ये विवाद संसार में सर्वत्र चलता है, इसमें सत्य क्या है क्या जीव को भाग्य के भरोसे रहना है या स्वतंत्र कर्म करना चाहिए। इसे भली प्रकार से समझने के लिए ये समझना आवश्यक है कि भाग्य होता क्या है? भाग्य मतलब जीव द्वारा पूर्व जन्म में किए गए कर्म ही होते हैं जो वर्तमान जन्म में भाग्य कहलाता है। यदि भाग्यवादी की माने तो जीव भाग्य से बंधा है और कर्म करने का अधिकार भी नही है, ऐसा तो हर जन्म में होगा। तो कौनसे जन्म में हमने कर्म किया वही इस जन्म में हमारा भाग्य बना, भाग्य तो कर्म करने से ही बनता है। किसी न किसी जन्म में पुरुषार्थ तो किया है यह सिद्ध हो गया और किसी जन्म में पुरुषार्थ किया तो इस जन्म में क्यों नहीं कर सकते।
भाग्य या किस्मत का विषय व्यक्तिगत विश्वासों और धारणाओं पर निर्भर करता है। कुछ लोग यह मानते हैं कि हमारे भविष्य में जो लिखा होता है, वही होता है, जबकि दूसरे विचारधारा यह कहती है कि हमारे कर्म, निर्णय, और प्रयास हमारे भविष्य को निर्धारित करते हैं।
अगर आज आप मेहनत कर रहे हो और ऊंचाई पर चढ़ रहे हो तो शायद भाग्य सुनहरा कलम लिखा जा रहा। कल अगर अभी अच्छा चल रहा है सोच कर कर्म करना छोड़ दिया, हो सकता है भाग्य के कलम से स्याही खत्म ही हो जाए या फिर कलम ही टूट जाए।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, भाग्य और किस्मत का कोई साक्षात्कार नहीं होता है। वास्तव में, जीवन के परिणामों को कई कारकों द्वारा निर्धारित किया जाता है, जिनमें से कुछ हमारे नियंत्रण में होते हैं, जबकि कुछ नहीं होते। विभिन्न परिस्थितियों, संयोगों, और विशेष घटनाओं के कारण, कुछ चीजें अप्रत्याशित हो सकती हैं, जिसे कई बार “भाग्य” के रूप में देखा जाता है।
आज नहीं, बल्कि प्राचीन समय से ही, भाग्य नामक कवच का निर्माण किया गया था। यह एक बेहतरीन और चमत्कारी कवच है। यह कवच मनुष्य को असफलता रूपी तीर के द्वारा घायल होने से उसे पूरी तरह से बचा लेता है।
किसी भी मनुष्य के लिए असफलता जान लेवा तीर से कम नहीं होता है। असफलता मनुष्य के ऊपर इस कदर हावी हो जाता है कि वह कभी-कभी आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है। भाग्य नामक सुरक्षा कवच उसे सांत्वना देने का प्रयास जरूर कर सकता है लेकिन असफलता की पूर्नावृति उसे हतोत्साहित भी कर सकता है।
इसलिए भाग्य का कवच पहनने से ज्यादा अच्छा है कि आत्मविश्वास का कवच पहनें ,यह आपको सिर्फ असफलता के वार से ही नहीं बचाएगा बल्कि आपके जीवनरुपी युद्ध में सफल होने के लिए आपके मस्तिष्क को रचनात्मक और प्रभावशाली बनाएगा या यूं कहें कि आपको युद्ध जीतने के लिए दिव्यास्त्र और ब्रह्मास्त्र जैसे अचूक हथियार प्रदान करेगा। जिसके कारण आपके असफल होने की संभावना लगभग शून्य हो जाएगी।
मानव जब जोर लगाता है
पत्थर पानी बन जाता है।
इसलिए, कहना कि भाग्य में जो लिखा होता है वही होता है, एक व्यक्ति के विश्वास और धारणा पर निर्भर करेगा।
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा।
जो जस करहि सो तस फल चाखा॥
सुख और दुःख जीवन के एक सिक्के के दो पहलू हैं। एक समय में केवल एक ही पक्ष दिखाई देता है, लेकिन याद रखें कि दूसरा पक्ष भी अपनी बारी का इंतजार कर रहा है।
द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते।
तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति ॥
एक पेड़ की डाल पर सुंदर पंखों वाले दो पक्षी बैठे हैं। एक पक्षी फल खा रहा है और दूसरा उसे फल खाता हुआ प्रसन्नता से देख रहा है।
शायद ईश्वर मुझे यह समझाना चाह रहे थे कि सुख और दुख, दो पक्षी हैं। जब दुख फल खाता है, तब सुख उसे देखता है। और जब सुख फल खाता है, तब दुख उसे देखता है। अर्थात सुख और दुख दोनों एक ही हैं।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो।
कर्म तीन प्रकार के होते हैं -
- संचित कर्म
- प्रारब्ध और
- क्रियमाण कर्म
क्रियमान कर्म सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। हमारे शास्त्र कहते हैं कि क्रियमान को सुधारो, प्रारब्ध की चिंता मत करो। वो तो आता जाता रहेगा। जैसे साइकिल चलाते वक्त सामने पहाड़ी आ जाए तो अधिक परिश्रम कर साइकिल चलाना होगा। किंतु चढ़ाई सदा नहीं रहती, चढ़ाई के बाद उतराई आ जाती है। उतराई भी सदा नहीं रहती फिर समतल आ जाता है। उसी प्रकार जीवन में कभी कठिन प्रारब्ध आ जाता है तब जीवन कठिन हो जाता है, तब मनुष्य को वहा रुकना नहीं है वरन और अधिक परिश्रम करना है। चढ़ाई के बाद उतराई आना ही है और जीवन सरल हो जाता है यानि अब अच्छा भाग्य आ गया।
सच है, विपत्ति जब आती है
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
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