रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण
धन मद मत्त परम बाचाला।  उग्रबुद्धि उर दंभ बिसाला॥  जदपि रहेउँ रघुपति रजधानी।  तदपि न कछु महिमा तब जानी॥

धन मद मत्त परम बाचाला। उग्रबुद्धि उर दंभ बिसाला॥ जदपि रहेउँ रघुपति रजधानी। तदपि न कछु महिमा तब जानी॥

काकभुशुण्डि जी कहते हैं कि  - मैं धन के मद से मतवाला, बहुत ही बकवादी और उग्रबुद्धि वाला था, मेरे हृदय में बड़ा भारी दं…

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मम दरसन फल परम अनूपा।  जीव पाव निज सहज सरूपा॥

मम दरसन फल परम अनूपा। जीव पाव निज सहज सरूपा॥

भगवान कहते हैं कि मेरे दर्शन का परम अनुपम फल यह है कि जीव अपने स्वरूप को प्राप्त हो जाता है । भगवान्‌ के दर्शन होना औ…

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उमा कहहुँ मैं अनुभव अपना।   सत हरि भजन जगत सब सपना॥

उमा कहहुँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजन जगत सब सपना॥

भगवान शिव जी माता जी से कहते हैं कि पार्वती मैं अपना निजी अनुभव कहता हूँ, सत्य हरि है, हरि का भजन है। जगत् तो एक सपना …

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जाके हृदयँ भगति जसि प्रीती। प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती॥

जाके हृदयँ भगति जसि प्रीती। प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती॥

जिसके हृदय में जैसी भक्ति और प्रीति होती है, प्रभु वहाँ (उसके लिए) सदा उसी रीति से प्रकट होते हैं। भगवान् सब जगह हैं …

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देह धरे कर यह फलु भाई। भजिअ राम सब काम बिहाई॥

देह धरे कर यह फलु भाई। भजिअ राम सब काम बिहाई॥

माया (विषयों की ममता-आसक्ति) को छोड़कर परलोक का सेवन (भगवान के दिव्य धाम की प्राप्ति के लिए भगवत्सेवा रूप साधन) करना च…

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राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥ बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषन भूषित बर नारी॥

राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥ बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषन भूषित बर नारी॥

राम नाम के बिना वाणी शोभा नहीं पाती, मद-मोह को छोड़, विचारकर देखो। हे देवताओं के शत्रु सब गहनों से सजी हुई सुंदरी स्त्…

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तात तीनि अति प्रबल खल काम क्रोध अरु लोभ।  मुनि बिग्यान धाम मन करहिं निमिष महुं छोभ।।

तात तीनि अति प्रबल खल काम क्रोध अरु लोभ। मुनि बिग्यान धाम मन करहिं निमिष महुं छोभ।।

काम' और 'क्रोध' के बाद जिस प्रमुख विकार की निन्दा की गयी है, उस क्रम में तीसरे विकार के रूप में 'लोभ&…

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लोभी लोलुप कल कीरति चहई।  अकलंकता कि कामी लहई॥  हरि पद बिमुख परम गति चाहा।  तस तुम्हार लालचु नरनाहा॥

लोभी लोलुप कल कीरति चहई। अकलंकता कि कामी लहई॥ हरि पद बिमुख परम गति चाहा। तस तुम्हार लालचु नरनाहा॥

लोभी-लालची सुंदर कीर्ति चाहे, कामी मनुष्य निष्कलंकता (चाहे तो) क्या पा सकता है?    जैसे गरुड़ का भाग कौआ चाहे, सिंह क…

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अंगद कहइ जाउँ मैं पारा।  जियँ संसय कछु फिरती बारा॥

अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा॥

हनुमान जी और अंगद जी दोनों ही समुद्र लाँघने में सक्षम थे, फिर पहले हनुमान जी लंका क्यों गए ? अंगद जी बुद्धि और बल में …

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हरइ सिष्य धन सोक न हरई। सो गुर घोर नरक महुँ परई॥ मातु पिता बालकन्हि बोलावहिं। उदर भरै सोइ धर्म सिखावहिं॥

हरइ सिष्य धन सोक न हरई। सो गुर घोर नरक महुँ परई॥ मातु पिता बालकन्हि बोलावहिं। उदर भरै सोइ धर्म सिखावहिं॥

जो गुरु शिष्य का धन हरण करता है, पर शोक नहीं हरण करता, वह घोर नरक में पड़ता है। माता-पिता बालकों को बुलाकर वही धर्म सि…

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नर तन सम नहिं कवनिउ देही  जीव चराचर जाचत तेही॥  नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी।  ग्यान बिराग भगति सुभ देनी॥

नर तन सम नहिं कवनिउ देही जीव चराचर जाचत तेही॥ नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी। ग्यान बिराग भगति सुभ देनी॥

मनुष्य शरीर के समान कोई शरीर नहीं है। चर-अचर सभी जीव उसकी याचना करते हैं। वह मनुष्य शरीर नरक, स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़…

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चहू चतुर कहुँ नाम अधारा।  ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा॥  चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ।  कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ॥

चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा॥ चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ॥

'जगत में चार प्रकार के (आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु और ज्ञानी) रामभक्त है और चारों ही पुण्यात्मा, पापरहित और उदार ह…

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सुनहु उमा ते लोग अभागी।   हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी ।।

सुनहु उमा ते लोग अभागी। हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी ।।

जाति, पाँति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चतुरता- इन सबके होने पर भी भक्ति से रहित मनुष्य कैसा लगता है, …

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रामकथा सुंदर कर तारी।  संसय बिहग उड़ावनिहारी॥  रामकथा कलि बिटप कुठारी।  सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥

रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥ रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥

राम की कथा हाथ की सुंदर ताली है, जो संदेहरूपी पक्षियों को उड़ा देती है। फिर रामकथा कलियुगरूपी वृक्ष को काटने के लिए क…

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बड अधिकार दच्छ जब पावा, अति अभिमानु हृदय तब आबा।  नहि कोउ अस जन्मा जग माहीं, प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं।

बड अधिकार दच्छ जब पावा, अति अभिमानु हृदय तब आबा। नहि कोउ अस जन्मा जग माहीं, प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं।

अर्थात्, जब दक्ष को प्रजापति का अधिकार मिला तो उसके मन में अत्याधिक घमंड आ गया। संसार में ऐसा किसी ने जन्म नही लिया ज…

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राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥ सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥

manas mantra   यदि श्रीराम जी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाए तो ये सब रोग नष्ट हो जाएँ। सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन…

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अग जगमय सब रहित बिरागी।  प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी।।  मोर बचन सब के मन माना।  साधु-साधु करि ब्रह्म बखाना॥

अग जगमय सब रहित बिरागी। प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी।। मोर बचन सब के मन माना। साधु-साधु करि ब्रह्म बखाना॥

वे अर्थात् प्रभु चराचरमय (चराचर में व्याप्त) होते हुए ही सबसे रहित हैं और विरक्त हैं (उनकी कहीं आसक्ति नहीं है); व…

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सो सुखधाम राम अस नामा।  अखिल लोक दायक बिश्रामा॥

सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा॥

जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिस के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उन का नाम 'राम' है, जो सुख का …

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