रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण
सुभ अरु असुभ करम अनुहारी।  ईसु देइ फलु हृदयँ बिचारी॥  करइ जो करम पाव फल सोई।  निगम नीति असि कह सबु कोई ॥
अब मैं कुसल मिटे भय भारे। देखि राम पद कमल तुम्हारे॥ तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला॥
मम माया संभव संसारा। जीव चराचर बिबिधि प्रकारा॥ सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए॥
सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ। जहँ न राम पद पंकज भाऊ॥ जोगु कुजोगु ग्यानु अग्यानू। जहँ नहिं राम प्रेम परधानू॥
मम माया संभव संसारा। जीव चराचर बिबिधि प्रकारा॥ सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए॥
 गो गोचर जहँ लगि मन जाई। सो सब माया जानेहु भाई॥ तेहि कर भेद सुनहु तुम्ह सोऊ। बिद्या अपर अबिद्या दोऊ॥
 एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥ नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं।  पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥
नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो ॥ करनधार सदगुरु दृढ़ नावा। दुर्लभ साज सुलभ करि पावा॥
धन मद मत्त परम बाचाला।  उग्रबुद्धि उर दंभ बिसाला॥  जदपि रहेउँ रघुपति रजधानी।  तदपि न कछु महिमा तब जानी॥

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