UGC NET/JRF,PAPER I,UNIT VI,POINT VII, अनुमान की संरचना, प्रकार, व्याप्ति, हेत्वाभास,अनुमान की मूल अवधारणा (Concept of Inference), अनुमान की संरचना.
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अनुमान की संरचना, प्रकार, व्याप्ति, हेत्वाभास |
अनुमान की संरचना, प्रकार, व्याप्ति, हेत्वाभास
यहाँ पर "अनुमान" विषय पर अत्यंत विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसके सिद्धान्त, उदाहरण, तार्किक विश्लेषण, उपयोग, और तुलनात्मक दृष्टिकोण को भी समाहित किया गया है। यह उच्च शिक्षण व शोध के स्तर के अनुरूप तैयार किया गया है।
1. अनुमान की मूल अवधारणा (Concept of Inference)
परिभाषा –
"पूर्ववतः अपरवतः सिद्धिः अनुमानम्" (न्यायसूत्र)अनुमान वह ज्ञान है जो किसी अन्य ज्ञात तथ्य (हेतु) के आधार पर किसी अप्रत्यक्ष वस्तु (साध्य) का बौद्धिक बोध कराता है।
यह ज्ञेय वस्तु को प्रत्यक्ष ज्ञान के बिना जानने का उपाय है। यह अनुभवजन्य तथ्यों के आधार पर वैचारिक निष्कर्ष निकालने की प्रक्रिया है।
2. अनुमान की संरचना (Structure of Inference)
भारतीय तर्कशास्त्र (विशेषतः न्याय दर्शन) में अनुमान के पाँच अंग (पञ्चावयव) माने गए हैं:
क्रम | अवयव | विवरण | उदाहरण |
---|---|---|---|
1. | प्रतिज्ञा (Proposition) | वह कथन जिसे सिद्ध करना है | पर्वतः वह्निमान् (पर्वत पर अग्नि है) |
2. | हेतु (Reason) | कारण जिससे प्रतिज्ञा की पुष्टि होती है | धूमवत् (क्योंकि वहाँ धुआँ है) |
3. | उदाहरण (Example) | व्याप्ति स्पष्ट करने हेतु सामान्य दृष्टांत | यथा महाशलायाम् (जैसे रसोईघर में) |
4. | उपनय (Application) | साध्यधर्म का व्याप्तिपूर्ण स्थिति में प्रयोग | स एष पर्वतः धूमवान् |
5. | निगमन (Conclusion) | निष्कर्ष स्वरूप प्रतिज्ञा की पुष्टि | अतः स वह्निमान् (इसलिए वहाँ अग्नि है) |
यह "पञ्चावयव न्याय" भारतीय तर्कशास्त्र की वैशिष्ट्यपूर्ण रचना है, जो गहन विवेचन का अवसर देती है।
3. अनुमान के प्रकार (Types of Inference)
(i) स्वरूप के आधार पर
अनुमान को दो मुख्य श्रेणियों में बाँटा गया है:
1. स्वार्थानुमान –
2. परार्थानुमान –
वह अनुमान जिसे दूसरे के लिए तर्क रूप में प्रस्तुत किया जाए।
इसमें पाँचों अवयव स्पष्ट रूप से बताए जाते हैं।
(ii) हेतु-साध्य संबंध के आधार पर
1. पूर्ववत् अनुमान
जहाँ कारण देखकर कार्य का अनुमान किया जाए।
मेघ देखकर वर्षा का अनुमान।
2. शेषवत् अनुमान
जहाँ कार्य देखकर कारण का अनुमान किया जाए।
नदी में जलवृद्धि देखकर वर्षा का अनुमान।
3. सामान्यतोदृष्ट अनुमान
जहाँ न कारण और न कार्य, बल्कि किसी अन्य अनुभवजन्य व्याप्ति पर आधारित हो।
चन्द्रमा गतिशील है, क्योंकि वह एक देश से दूसरे देश में दृष्ट होता है।
(iii) संबंध के आधार पर अनुमान के भेद:
प्रकार | विवरण | उदाहरण |
---|---|---|
कारणगत (A priori) | कारण के आधार पर कार्य का अनुमान | अग्नि होने से धूम का अनुमान |
कार्यगत (A posteriori) | कार्य के आधार पर कारण का अनुमान | धूम देखकर अग्नि का अनुमान |
स्वभावगत | साध्य और हेतु का स्वाभाविक संबंध | सप्तमी चंद्र की कला से पूर्णिमा का अनुमान |
4. व्याप्ति (Vyāpti) – अनुमान का आधार
परिभाषा:
व्याप्ति वह सार्वत्रिक और अविच्छिन्न संबंध है जो हेतु और साध्य के बीच होता है।
उदाहरण:
जहाँ धूम है वहाँ अग्नि है।
प्रकार:
-
अन्वयव्याप्ति – जहाँ साध्य है वहाँ हेतु भी है।
-
व्यतिरेकव्याप्ति – जहाँ साध्य नहीं है, वहाँ हेतु भी नहीं।
-
अन्वय-व्यतिरेकव्याप्ति – सर्वाधिक शक्तिशाली और विश्वासनीय।
उपयोगिता: व्याप्ति के बिना अनुमान असंभव है। इसकी प्राप्ति सामान्यतः प्रत्यक्ष और अनुकूल उदाहरणों द्वारा होती है।
5. हेत्वाभास (Fallacies of Reasoning)
जब कोई कारण (हेतु) ऐसा प्रतीत होता है कि वह प्रतिज्ञा को सिद्ध कर रहा है, लेकिन वस्तुतः नहीं करता, तब वह हेत्वाभास कहलाता है। ये तर्कदोष हैं।
हेत्वाभास के पाँच प्रमुख भेद:
नाम | कारण | उदाहरण |
---|---|---|
सव्यभिचार | हेतु सार्वत्रिक न हो | धूमवान् पर्वतः, अतः वह्निमान्। लेकिन धूम यंत्र में भी होता है |
असिद्ध | हेतु असिद्ध हो (अनिश्चित) | गगन में धूमः, अतः अग्निः। (गगन में धूम देखा नहीं गया) |
सत्प्रतिपक्ष | प्रतिज्ञा का समकक्ष विपक्ष उपस्थित हो | यह शंख नील है, क्योंकि धवल है। (धवलता नीलता का प्रमाण नहीं) |
विरुद्ध | हेतु प्रतिज्ञा के विपरीत हो | अग्नि शीतला है, क्योंकि वह जलवत् है। |
कालत्ययपदिष्ट | कारण का साध्य से असंगत काल में संबंध हो | पूर्वं अग्नि था, अब धूम है। (अब अग्नि नहीं है) |
6. अनुमान की प्रामाणिकता के मानदंड
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हेतु का सत्त्व (Reality of Hetu)
-
हेतु का व्याप्ति से संबंध
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हेतु का असंदिग्ध होना
-
समानधर्मता की उपस्थिति (Upanaya)
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निष्कर्ष में विरोधाभास का अभाव
7. आधुनिक दृष्टिकोण से अनुमान की तुलना
दृष्टिकोण | भारतीय दर्शन | पश्चिमी तर्क |
---|---|---|
आधार | व्याप्ति और कारण | Premises and Conclusion |
स्वरूप | पंचावयव | त्रैविध (Premise 1, Premise 2, Conclusion) |
वैधता | व्याप्ति की सर्वत्रता | Validity of logical connection |
दोष | हेत्वाभास | Fallacies |
8. शिक्षा में अनुमान की उपयोगिता
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तर्कशक्ति का विकास
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तथ्य और निष्कर्ष में संबंध स्थापित करना
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अनुसंधान में अनुप्रयोग
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तार्किक लेखन व भाषण में सहायता
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दृष्टांत आधारित विचार प्रस्तुत करने की योग्यता
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