प्रमाण: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि, UGC NET/JRF,PAPER I,UNIT VI,POINT VI, तुलनात्मक सारणी, प्रमाण: परिभाषा और महत्व.
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प्रमाण: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि |
यहाँ मैं प्रमाण: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि – इन छह प्रमाणों का गूढ़, विश्लेषणात्मक, और शास्त्रीय दृष्टिकोण से विस्तृत वर्णन कर रहा हूँ, जिसमें न्याय, वेदान्त, मीमांसा आदि दर्शनों की तुलनात्मक दृष्टि भी सम्मिलित है:
प्रमाण: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि
प्रमाण: परिभाषा और महत्व
संस्कृत में 'प्रमाण' शब्द की व्युत्पत्ति होती है –
प्र + मा + णयहाँ "मा" का अर्थ है मापना (ज्ञान प्राप्त करना) और "प्र" उपसर्ग विशेष अर्थ में प्रयुक्त होता है।
प्रमाण = ऐसा साधन जिससे नवीन, यथार्थ, अव्यभिचारी ज्ञान उत्पन्न हो।
शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य:
दर्शन | प्रमाणों की स्वीकृत संख्या |
---|---|
न्याय | 4 (प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द) |
सांख्य | 3 (प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द) |
मीमांसा | 6 (उपरोक्त छह) |
वेदान्त | 6 (कुछ संप्रदायों में केवल 3) |
बौद्ध | 2 (प्रत्यक्ष, अनुमान) |
1. प्रत्यक्ष (Pratyakṣa) – प्रत्यक्षज्ञान
न्याय दर्शन के अनुसार:
"इन्द्रियार्थसन्निकर्षजं ज्ञानं प्रत्यक्षम्।"
अर्थात – जो ज्ञान इन्द्रियों और विषयों के संनिकर्ष (contact) से उत्पन्न होता है वह प्रत्यक्ष है।
संनिकर्ष (Contact) के प्रकार:
-
संयोग (संघात) – आँख से दीखना
-
संयुक्तसमवाय – स्पर्श के माध्यम से स्पर्शगुण का ज्ञान
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संवृतसंबन्ध – वस्तु के घटक गुण का ज्ञान
-
समवाय – मन से सुख-दुख का ज्ञान
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विशेषणविशेष्यभाव – गुण और वस्तु के सम्बंध का ज्ञान
बोध की अवस्थाएँ:
-
अलौकिक – सामान्य जनों से परे (योगज, सामान्यलक्षण, आदि)
-
लौकिक – सामान्य इन्द्रियजन्य ज्ञान
प्रमाणभंग:
-
इन्द्रियदोष (नेत्ररोग)
-
विषयदोष (प्रकाश की कमी)
-
संनिकर्षदोष (दूरी या अत्यधिक निकटता)
2. अनुमान (Anumāna) – तर्क पर आधारित ज्ञान
न्याय दर्शन के अनुसार:
"पूर्वदृष्टलिङ्गादुत्तरकालबुद्धिः अनुमानम्।"
अनुमान का त्रैरूप्य (तीन लक्षण):
-
पक्षधर्मता – धूमः पर्वते अस्ति
-
सापक्षसत्त्व – यत्र यत्र धूमः तत्र तत्र वह्निः (रसोई)
-
विपक्षासत्त्व – यत्र वह्निः नास्ति, तत्र धूमः अपि नास्ति (जलाशय)
अनुमान के तीन प्रकार:
प्रकार | उदाहरण | स्वरूप |
---|---|---|
पूर्ववत् | बादल देख वर्षा का अनुमान | कारण से कार्य |
शेषवत् | कीचड़ देख वर्षा का अनुमान | कार्य से कारण |
सामान्यतो दृष्ट | ग्रहण में चंद्र की गति | परोक्ष कारण से अनुमान |
अनुमान त्रिक:
-
हेतु – कारण (धूमः)
-
साध्य – सिद्ध्यर्थ वस्तु (वह्निः)
-
निगमन – निष्कर्ष
3. उपमान (Upamāna) – समानता से ज्ञान
न्यायकार का मत:
"सादृश्यात् तत्संबन्धप्रवृत्तिनामज्ञानं उपमानम्।"
प्रक्रिया:
-
एक ज्ञात वस्तु (गाय)
-
एक अज्ञात वस्तु (गव्य)
-
समानता द्वारा ज्ञान (जैसे गव्य गाय के समान है)
उपयोग:
-
भाषाशिक्षा (शब्दों के अर्थ जानने में)
-
जीव-जंतुओं की पहचान
4. शब्द (Śabda) – आप्तवाक्यजन्य ज्ञान
परिभाषा:
"आप्तवचनजन्यं ज्ञानं शब्दप्रमाणम्।"
आप्त = सत्य भाषण करने वाला, जो त्रिकालदर्शी, पक्षपातरहित हो।
मीमांसा और वेदान्त का दृष्टिकोण:
-
शब्द को स्वतंत्र प्रमाण माना गया है।
-
वेद को अपौरुषेय कहा गया है – अतः उनके वाक्य नित्य और त्रुटिरहित हैं।
दो भेद:
-
वैदिक शब्द – ऋचाएँ, उपनिषद्, ब्राह्मण वाक्य
-
लौकिक शब्द – गुरुवाक्य, इतिहास, पुराण आदि
शर्तें:
-
वक्ता आप्त हो
-
भाषा ज्ञात हो
-
संदर्भ स्पष्ट हो
5. अर्थापत्ति (Arthāpatti) – आवश्यक कल्पना
परिभाषा:
"अन्यथा-अनुपपत्तेः अनिवार्यतः ग्रहणीय कल्पना अर्थापत्तिः।"
न्याय में इसकी स्वीकृति नहीं है, परन्तु मीमांसा और वेदान्त दर्शन में यह प्रमाण रूप में मान्य है।
उदाहरण:
-
"देवदत्त दिन में नहीं खाता, फिर भी मोटा है" → अनिवार्य निष्कर्ष = "वह रात में खाता है।"
दो प्रकार:
-
दृष्टार्थापत्ति – प्रत्यक्ष वस्तु से जुड़ी
-
श्रुतार्थापत्ति – वचनों के अर्थ से जुड़ी
6. अनुपलब्धि (Anupalabdhi) – अभाव का ज्ञान
परिभाषा:
"यत्र यद्भाव उपलभ्यते, तत्र तस्याभावस्य ज्ञानं अनुपलब्धिः।"
केवल वेदान्त और मीमांसा में प्रमाण रूप में मान्य, न्याय में प्रत्यक्ष का ही एक प्रकार मानी जाती है।
उदाहरण:
-
"कक्षे घटः नास्ति" – दृष्टिगोचर क्षेत्र में घट के न दिखने से ज्ञान।
चार भेद:
-
करणानुपलब्धि – कारण के अभाव से कार्य का न होना
-
कार्यानुपलब्धि – कार्य के अभाव से कारण का निषेध
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संयोगानुपलब्धि – युक्त वस्तु का न दिखाई देना
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विरोध्यानुपलब्धि – विरोधी के रहते वस्तु का अभाव
तुलनात्मक सारणी:
प्रमाण | ज्ञान का प्रकार | विशेषता | दर्शनों में स्थिति |
---|---|---|---|
प्रत्यक्ष | इन्द्रियजन्य | तात्कालिक, प्रमाणिक | सर्वदर्शन |
अनुमान | तर्कजन्य | लिंग से साध्य की प्राप्ति | सर्वदर्शन |
उपमान | उपमा-निर्भर | नूतन शब्द ज्ञान | न्यायदर्शन |
शब्द | आप्तवचनजन्य | अपौरुषेय वेद | विशेषतः वेदान्त |
अर्थापत्ति | अनिवार्य कल्पना | अन्यथा असंभवता का निवारण | वेदान्त/मीमांसा |
अनुपलब्धि | नकारात्मक ज्ञान | अभाव का अनुभव | वेदान्त/मीमांसा |
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