सेक्युलरिज्म या सेल्फ-डिनायलिज़्म? स्वतंत्र भारत में हिंदू बहुसंख्यक क्यों अल्पसंख्यक-सा व्यवहार करता है? भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री
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सेक्युलरिज्म या सेल्फ-डिनायलिज़्म? स्वतंत्र भारत में हिंदू बहुसंख्यक क्यों अल्पसंख्यक-सा व्यवहार करता है? |
सेक्युलरिज्म या सेल्फ-डिनायलिज़्म? स्वतंत्र भारत में हिंदू बहुसंख्यक क्यों अल्पसंख्यक-सा व्यवहार करता है?
आइए इस लेख को व्यवस्थित और गहराई से विस्तार देते हैं। इसे हम चार प्रमुख खंडों में बाँटकर प्रस्तुत करेंगे:
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – हल्दीघाटी का युद्ध: एक प्रतीक
(क) इतिहास का आईना
हल्दीघाटी का युद्ध केवल मेवाड़ और मुग़ल सत्ता के बीच का संघर्ष नहीं था, बल्कि भारत के आत्मसम्मान और धर्म की रक्षा का संग्राम था।
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एक ओर थे महाराणा प्रताप – जिन्होंने जीवनपर्यंत मुग़लों की अधीनता स्वीकार नहीं की।
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दूसरी ओर थे राजा मानसिंह, राजा लूणकरण, और अन्य राजपूत – जिन्होंने राजनैतिक लाभ और साम्राज्यवादी प्रलोभनों के तहत अकबर की अधीनता स्वीकार की।
(ख) अब्द अल कादिर बदायूंनी का कथन:
"कोई भी मरे, काफिर ही मरेगा – इस्लाम की विजय होगी।"
यह कथन बताता है कि मुग़ल विचारधारा के लिए हिंदू किसी भी पक्ष में हों, वे हमेशा पराजित ही माने जाते हैं।
2. आज का परिदृश्य – वही सोच, नया रूप
(क) वक्फ एक्ट और संसद की सच्चाई
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2023 में संसद में वक्फ एक्ट संशोधन विधेयक को लेकर बहस होती है।
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कुल 288 सांसदों ने समर्थन किया – जिनमें से केवल 24 मुस्लिम सांसद थे।
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शेष 208 हिन्दू सांसदों ने बिल के पक्ष में मतदान किया।
क्या यह वही मानसिंह नहीं हैं जो अकबर के दरबार में बैठकर अपने ही भाइयों पर तलवार उठाते थे?
(ख) वक्फ एक्ट की चिंता
वक्फ एक्ट देश की सार्वजनिक संपत्ति को एक धार्मिक ट्रस्ट को सौंपने की अनुमति देता है —
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कई मामलों में हिंदुओं की ज़मीनें वक्फ घोषित की गईं।
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अदालतों में संघर्ष के बाद भी बहुतेरी संपत्तियाँ वक्फ बोर्ड के नाम चली गईं।
ये संपत्तियाँ भारत की हैं, किसी मजहबी संस्था की नहीं।
3. इतिहास से वर्तमान तक – हिंदू बनाम हिंदू
इतिहास हमें यह सिखाता है कि शत्रु बाहर से जितना नहीं तोड़ सकता, उतना भीतर से तोड़ने वाले अपने कर जाते हैं।
(क) ऐतिहासिक उदाहरण:
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जयचंद ने मोहम्मद गौरी का साथ दिया।
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मानसिंह ने अकबर का साथ दिया।
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कांग्रेस काल में हिंदू हितों को सेक्युलरिज्म के नाम पर दरकिनार किया गया।
(ख) आज के उदाहरण:
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धर्मांतरण के विरुद्ध कानून बनाने में अधिकतर विरोध हिंदू नेताओं से आता है।
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मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण है, जबकि मस्जिदों पर नहीं।
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हिंदू त्योहारों पर पर्यावरण की दुहाई दी जाती है, दूसरों पर नहीं।
यह एक मानसिक गुलामी है – जहां अपने होने से डर लगता है, और पराये को खुश करने में गर्व महसूस होता है।
4. समाधान – चेतना का जागरण
(क) आत्मनिरीक्षण आवश्यक है:
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हमें यह तय करना होगा कि हम किस पक्ष में हैं – प्रताप के या मानसिंह के?
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अपने मताधिकार और जनप्रतिनिधियों के चयन में धर्मनिरपेक्षता की आड़ में आत्मघात ना करें।
(ख) शिक्षा और वैचारिक क्रांति
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इतिहास पढ़ें – सही दृष्टिकोण से, न कि काल्पनिक सेक्युलर नैरेटिव से।
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संविधान और क़ानूनों को समझें, ताकि अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें।
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अपने बच्चों को यह बोध कराएं कि वे कौन हैं, उनका इतिहास क्या है।
(ग) सामाजिक एकता और संगठन
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एकजुटता ही शक्ति है – जिस दिन हिंदू आपसी भेदभाव छोड़ देगा, कोई वक्फ एक्ट पास नहीं हो पाएगा।
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किसी भी दल का अंधभक्त बनने से पहले अपने धर्म और समाज का भक्त बनिए।
उपसंहार:
“इतिहास को केवल पढ़ा नहीं जाता – जिया और सीखा जाता है।”अगर हम इतिहास की गलतियों से नहीं सीखेंगे, तो वर्तमान में भी पराजय और भविष्य में भी विनाश हमारा भाग्य बनेगा।
महाराणा प्रताप की तलवार आज भी प्रतीक्षा में है... लेकिन उससे पहले मानसिंह के भ्रम से बाहर निकलना होगा।
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