निबंध विषय: ज्योतिष के अधिकारी – शास्त्रीय दृष्टिकोण,ज्योतिष: ज्योतिष के अधिकारी – शास्त्रीय दृष्टिकोण, भारतीय दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री।
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ज्योतिष: ज्योतिष के अधिकारी – शास्त्रीय दृष्टिकोण |
ज्योतिष: ज्योतिष के अधिकारी – शास्त्रीय दृष्टिकोण
प्रस्तावना
भारतीय संस्कृति में ज्योतिष शास्त्र को वेदों की आँख कहा गया है। यह केवल भविष्य बताने की कला नहीं, अपितु एक दार्शनिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक अनुशासन है, जो मानव जीवन के चारों पुरुषार्थों – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – की दिशा में मार्गदर्शन करता है। किंतु इतना गूढ़, प्रभावशाली और कर्मफल-विवेचक शास्त्र सभी को सिखाया या समझाया जाए, यह उचित नहीं। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि इसके अध्ययन और शिक्षण के लिए शिष्य में कुछ विशेष गुणों का होना अनिवार्य है।
ज्योतिष के अध्ययन और शिक्षण की मर्यादा को स्पष्ट करते हुए ज्योतिष ग्रंथों में निम्नलिखित श्लोक मिलते हैं:
श्लोक 7
शान्ताय गुरुभक्ताय सर्वदा सत्यवादिने ।
आस्तिकाय प्रदातव्यं ततः श्रेयो ह्यथवा अप्स्यति ॥
भावार्थ:
यह शास्त्र केवल शांतचित्त वाले, गुरु के प्रति भक्तिभाव रखने वाले, सदा सत्य बोलने वाले और ईश्वर में विश्वास रखने वाले शिष्य को ही सिखाना चाहिए। ऐसा करने से ही कल्याण संभव है, अन्यथा हानि निश्चित है।
श्लोक 8
न देयं परशिष्याय नास्तिकाय शठाय वा ।
दत्ते प्रतिदिनं दुःखं जायते नात्र संशयः ॥
भावार्थ:
इस शास्त्र का ज्ञान किसी अन्य के शिष्य को, नास्तिक को या कुटिल स्वभाव वाले शिष्य को नहीं देना चाहिए। यदि दिया गया, तो परिणामस्वरूप प्रतिदिन दुःख की ही प्राप्ति होती है, इसमें कोई संदेह नहीं।
गुणों की कसौटी
इन श्लोकों में जिन गुणों का उल्लेख हुआ है, वे केवल साधारण नैतिकता नहीं, अपितु आन्तरिक साधना के परिणाम हैं:
- शान्तता – ज्योतिष का अध्ययन करने वाला मनुष्य यदि चंचल या उत्तेजक होगा, तो वह ग्रहों के गूढ़ प्रभावों को आत्मसात नहीं कर पाएगा।
- गुरुभक्ति – यह केवल सम्मान नहीं, बल्कि पूर्ण समर्पण और शिष्यत्व की भावना है।
- सत्यवादिता – क्योंकि ज्योतिष की वाणी प्रभावकारी होती है, अतः असत्य कहकर किसी के जीवन को भ्रमित करना पापतुल्य है।
- आस्तिकता – ईश्वर में विश्वास, ब्रह्मांड की एकात्म व्यवस्था को स्वीकार करना – यह ज्योतिष के मूल में है।
किसे न सिखाएं?
शास्त्र चेतावनी देता है कि—
- परशिष्य – जो अन्य गुरु का शिष्य है, उसे सिखाना गुरु-द्रोह जैसा माना गया है।
- नास्तिक – जो ईश्वर या कर्मफल सिद्धांत में विश्वास नहीं करता, वह ग्रहों की सूक्ष्मता को केवल तर्क से काटेगा, और अंततः भ्रमित होगा।
- शठ – जो चालाक, कपटी या दुर्भावना से भरा हो, वह इस ज्ञान का दुरुपयोग करेगा।
नैतिक उत्तरदायित्व
ज्योतिष का ज्ञान केवल एक विद्या नहीं, यह उत्तरदायित्व है। इसके द्वारा किसी का जीवन सुधारा भी जा सकता है और बिगाड़ा भी। अतः गुरु को यह विवेक रखना आवश्यक है कि वह ज्ञान केवल उस पात्र को दे जो आत्मशुद्धि, लोककल्याण और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो।
उपसंहार
"ज्योतिष के अधिकारी" विषय केवल ज्ञान देने या पाने की योग्यता नहीं, अपितु एक आध्यात्मिक अनुशासन की कसौटी है। शास्त्रों का यह निर्देश कि "किसे सिखाना चाहिए और किसे नहीं" — शिक्षण के चरम आदर्श को दर्शाता है। यदि इस मार्गदर्शन का पालन किया जाए, तो न केवल ज्योतिष का गौरव अक्षुण्ण रहेगा, अपितु समाज में इसके वास्तविक स्वरूप का पुनः प्रकाश भी होगा।
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