संस्कृत श्लोक: "पेशलमपि खलवचनं दहतितरां मानसं सुतत्त्वविदाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद, सुभाषितानि,सुविचार,संस्कृत श्लोक, भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त
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संस्कृत श्लोक: "पेशलमपि खलवचनं दहतितरां मानसं सुतत्त्वविदाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "पेशलमपि खलवचनं दहतितरां मानसं सुतत्त्वविदाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक:
शब्दार्थ:
- पेशलम् – कोमल, मधुर
- अपि – भी
- खलवचनम् – दुष्ट व्यक्ति के वचन
- दहति – जलाता है
- इतराम् – अत्यधिक
- मानसं – मन
- सुतत्त्वविदाम् – वास्तविकता को भली-भाँति जानने वालों का (बहुवचन षष्ठी विभक्ति)
- परुषम् – कठोर
- अपि – भी
- सुजनवाक्यम् – सज्जन व्यक्ति का वचन
- मलयजरसवत् – चंदन के रस के समान
- प्रमोदयति – हर्षित करता है
व्याकरणिक विश्लेषण:
- पेशलमपि – विशेषण (मधुर होने पर भी)
- खलवचनं – द्वितीया विभक्ति एकवचन (खल के वचन को)
- दहतितरां – धातु ‘दह्’ (जलाना) से लृट् (वर्तमानकाल), परस्मैपदी, प्रथम पुरुष एकवचन
- मानसं – द्वितीया विभक्ति एकवचन (मन को)
- सुतत्त्वविदाम् – षष्ठी विभक्ति बहुवचन (सच्चे तत्व को जानने वालों का)
- परुषमपि – विशेषण (कठोर होने पर भी)
- सुजनवाक्यम् – द्वितीया विभक्ति एकवचन (सज्जन का वचन)
- मलयजरसवत् – सप्तमी विभक्ति एकवचन (मलयज अर्थात चंदन के रस के समान)
- प्रमोदयति – धातु ‘मुद्’ (प्रसन्न करना) से लृट् (वर्तमानकाल), परस्मैपदी, प्रथम पुरुष एकवचन
हिन्दी अनुवाद:
दुष्ट व्यक्तियों के वचन भले ही मधुर लगें, परन्तु जो लोग सच्ची स्थिति को भली-भाँति जानते हैं, उनके मन को बहुत पीड़ा पहुँचाते हैं। दूसरी ओर, सज्जन व्यक्ति के वचन, भले ही कठोर प्रतीत होते हों, परन्तु वे चंदन के लेप के समान हृदय को शीतलता और प्रसन्नता प्रदान करते हैं।
आधुनिक सन्दर्भ में व्याख्या:
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वर्तमान समाज में इसका प्रभाव:
- इस श्लोक का सार यह है कि हमें केवल शब्दों की कोमलता पर नहीं जाना चाहिए, बल्कि यह देखना चाहिए कि उनका वास्तविक प्रभाव क्या है। आज के समय में भी कई लोग मीठे बोलते हैं, पर उनका उद्देश्य स्वार्थसिद्धि हो सकता है।
- इसके विपरीत, कुछ लोग सत्य बोलते हैं, जो सुनने में कठोर लग सकता है, पर वह हमारे जीवन के लिए हितकारी होता है।
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प्रायोगिक जीवन में इसका महत्व:
- सोशल मीडिया और राजनीति में अक्सर लोग आकर्षक शब्दों का प्रयोग करके जनता को भ्रमित कर देते हैं। लेकिन जो लोग यथार्थ को समझते हैं, उन्हें ऐसे मधुर वचनों की वास्तविकता ज्ञात हो जाती है।
- माता-पिता और गुरुजन कभी-कभी कठोर शब्दों में शिक्षा देते हैं, परंतु उनका उद्देश्य हमारे कल्याण की ओर होता है।
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महापुरुषों का दृष्टिकोण:
- श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को गीता में यही शिक्षा दी थी कि मधुर शब्दों से अधिक सत्य एवं धर्मसंगत वचन महत्वपूर्ण होते हैं।
- तुलसीदास जी भी कहते हैं – "सत्य कहौ तो मारन धावै, झूठ कहौ तो पावत मान।" सत्य बोलने पर लोग क्रोधित होते हैं, परंतु झूठ बोलने वाले को समाज सम्मान देता है।
निष्कर्ष:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि मीठे शब्दों के पीछे की मंशा को समझना आवश्यक है। हमें सत्य और न्याय के पक्ष में खड़े रहने का साहस रखना चाहिए, चाहे वह कठोर ही क्यों न लगे। सत्य ही अंततः कल्याणकारी होता है, ठीक वैसे ही जैसे चंदन कठोर होकर भी शीतलता प्रदान करता है।
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