शिक्षण: अवधारणाएँ, उद्देश्य, स्तर, विशेषताएँ और मूल अपेक्षाएँ, UGC NET/JRF: शिक्षण की अवधारणाएँ, उद्देश्य, स्तर, विशेषताएँ और मूल अपेक्षाएँ, परीक्षा।
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UGC NET/JRF: शिक्षण की अवधारणाएँ, उद्देश्य, स्तर, विशेषताएँ और मूल अपेक्षाएँ |
शिक्षण: अवधारणाएँ, उद्देश्य, स्तर, विशेषताएँ और मूल अपेक्षाएँ
1. शिक्षण की अवधारणा
शिक्षण एक सजीव, क्रियाशील और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से ज्ञान, कौशल, मूल्यों और विचारों का हस्तांतरण किया जाता है। यह प्रक्रिया केवल सूचनाओं के संप्रेषण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सीखने की एक दिशा निर्धारित करती है, जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी दोनों सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
शिक्षण की प्रमुख परिभाषाएँ:
- गेट्स और अन्य (Gates & Others): "शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें शिक्षक के मार्गदर्शन में विद्यार्थी सीखने की प्रक्रिया को अपनाता है।"
- मौरिसन (Morrison): "शिक्षण एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है, जिसमें शिक्षक पढ़ाता है और विद्यार्थी सीखता है।"
- ऑटवे (Otway): "शिक्षण केवल सूचनाओं का हस्तांतरण नहीं, बल्कि यह ज्ञान और कौशलों के अधिग्रहण की प्रक्रिया है।"
2. शिक्षण के उद्देश्य
शिक्षण केवल सूचनाओं का संग्रह करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण व्यक्तित्व विकास की प्रक्रिया है। शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं:
(क) संज्ञानात्मक (Cognitive) उद्देश्य:
- विषय-वस्तु का ज्ञान देना
- समझ विकसित करना
- तार्किक और विश्लेषणात्मक क्षमता बढ़ाना
- नवीनता और सृजनशीलता को प्रोत्साहित करना
(ख) प्रभावात्मक (Affective) उद्देश्य:
- नैतिक मूल्यों का विकास
- संवेदनशीलता और सहानुभूति बढ़ाना
- सामाजिक मूल्यों की समझ विकसित करना
(ग) मनोदैहिक (Psychomotor) उद्देश्य:
- व्यावहारिक दक्षता (Practical Skills) विकसित करना
- शारीरिक व मानसिक समन्वय स्थापित करना
- आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास बढ़ाना
3. शिक्षण के स्तर (Levels of Teaching)
शिक्षण को विद्यार्थियों की मानसिक क्षमताओं के आधार पर तीन प्रमुख स्तरों में विभाजित किया जाता है:
(1) स्मरण शक्ति स्तर (Memory Level)
- यह सबसे प्रारंभिक स्तर का शिक्षण होता है।
- इसमें विद्यार्थी तथ्यों, परिभाषाओं, संख्याओं और घटनाओं को याद रखते हैं।
- यह शिक्षण निर्देशात्मक (Instructional) होता है, जिसमें शिक्षक मुख्य भूमिका निभाता है।
- उदाहरण: इतिहास की तिथियाँ याद करना, गणित के सूत्र रटना।
(2) समझ स्तर (Understanding Level)
- इस स्तर पर विद्यार्थी केवल रटने की बजाय विषय-वस्तु को समझते हैं।
- इसमें विश्लेषण, तुलना, वर्गीकरण और व्याख्या करने की क्षमता विकसित की जाती है।
- उदाहरण: गणितीय सूत्रों का प्रयोग कर प्रश्न हल करना, साहित्यिक रचनाओं की व्याख्या करना।
(3) विचारात्मक स्तर (Reflective Level)
- यह उच्च स्तरीय शिक्षण होता है, जिसमें विद्यार्थी स्वतंत्र रूप से सोचते हैं और समस्याओं का समाधान करते हैं।
- इसमें आलोचनात्मक चिंतन, तर्क शक्ति और नवाचार को बढ़ावा दिया जाता है।
- उदाहरण: वैज्ञानिक प्रयोग करना, किसी सामाजिक समस्या का समाधान खोजना।
4. शिक्षण की विशेषताएँ
- लक्ष्य पर केंद्रित (Goal-Oriented): शिक्षण का एक निश्चित उद्देश्य होता है, जिसे प्राप्त करने के लिए शिक्षक और विद्यार्थी प्रयासरत रहते हैं।
- गतिशील और लचीला (Dynamic & Flexible): शिक्षण एक स्थिर प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह समय, स्थान, विषयवस्तु और विद्यार्थियों की आवश्यकताओं के अनुसार बदलता रहता है।
- विद्यार्थी-केंद्रित (Learner-Centric): आज के आधुनिक शिक्षण में विद्यार्थी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है।
- संवादात्मक (Interactive): प्रभावी शिक्षण के लिए शिक्षक और विद्यार्थी के बीच संवाद आवश्यक होता है।
- मनोवैज्ञानिक आधार (Psychological Basis): शिक्षण में बाल विकास और शिक्षण मनोविज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग किया जाता है।
- मूल्यांकन और सुधार (Evaluation & Improvement): शिक्षण प्रक्रिया का समय-समय पर मूल्यांकन किया जाता है, जिससे उसमें आवश्यक सुधार किए जा सकें।
5. शिक्षण की मूल अपेक्षाएँ
- शिक्षक का ज्ञान और दक्षता (Knowledge & Expertise of Teacher): शिक्षक को अपने विषय का गहन ज्ञान होना चाहिए।
- प्रभावी शिक्षण पद्धतियाँ (Effective Teaching Methods): शिक्षण को रोचक और प्रभावी बनाने के लिए नवीन विधियों का प्रयोग आवश्यक है।
- प्रेरक वातावरण (Motivational Environment): शिक्षण का वातावरण ऐसा होना चाहिए, जिसमें विद्यार्थी सीखने के लिए प्रेरित हों।
- सहायक संसाधनों का उपयोग (Use of Teaching Aids): शिक्षण में पुस्तकों, चार्ट, मॉडल, प्रोजेक्टर और डिजिटल तकनीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- निरंतर मूल्यांकन (Continuous Evaluation): शिक्षण प्रक्रिया की प्रभावशीलता को परखने के लिए निरंतर मूल्यांकन आवश्यक है।
निष्कर्ष
शिक्षण केवल सूचना देने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह संज्ञानात्मक, प्रभावात्मक और मनोदैहिक विकास का साधन है। एक सफल शिक्षक वह होता है, जो विद्यार्थियों को केवल जानकारी नहीं देता, बल्कि उन्हें सोचने, समझने और अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की क्षमता प्रदान करता है।
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