संस्कृत श्लोक: "किमप्यसाध्यं महतां सिद्धिमेति लघीयसाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद, सुभाषितानि,सुविचार,संस्कृत श्लोक, भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री।
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संस्कृत श्लोक: "किमप्यसाध्यं महतां सिद्धिमेति लघीयसाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "किमप्यसाध्यं महतां सिद्धिमेति लघीयसाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक:
हिन्दी अनुवाद:
जो कार्य महान व्यक्तियों के लिए असंभव हो, उसे कभी-कभी छोटे व्यक्ति भी पूरा कर सकते हैं। जैसे कि एक छोटा दीपक भूमिगत घरों के अंधकार को दूर कर सकता है, जहाँ सूर्य की किरणें भी नहीं पहुँच पातीं।
शाब्दिक विश्लेषण:
- किमपि – कुछ भी
- असाध्यम् – असंभव, जो पूरा न हो सके
- महताम् – महान व्यक्तियों के लिए
- सिद्धिम् – सफलता
- एति – प्राप्त करता है
- लघीयसाम् – छोटे व्यक्तियों के लिए, कम महत्व के लोगों द्वारा
- प्रदीपः – दीपक, दीप
- भूमिगेहान्तम् – भूमिगत घर के अंदर
- ध्वान्तम् – अंधकार
- हन्ति – नष्ट करता है
- न भानुमान् – सूर्य नहीं (सूर्य यह कार्य नहीं कर सकता)
व्याकरणीय विश्लेषण:
- सिद्धिमेति – "सिद्धिम्" (सफलता) + "एति" (प्राप्त करता है)
- ध्वान्तं हन्ति – "ध्वान्तम्" (अंधकार) + "हन्ति" (नष्ट करता है)
- न भानुमान् – "भानुमान्" (सूर्य) लिंग रूप में पुल्लिंग, प्रथमा विभक्ति।
आधुनिक संदर्भ में व्याख्या:
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि किसी भी कार्य की सफलता केवल व्यक्ति के आकार या प्रतिष्ठा पर निर्भर नहीं करती, बल्कि उसकी उपयोगिता और सही स्थान पर सही प्रयास करने की क्षमता पर निर्भर करती है।
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छोटे प्रयास भी बड़े प्रभाव डाल सकते हैं –
- कभी-कभी साधारण व्यक्ति ऐसे कार्य कर सकते हैं, जो बड़े और प्रतिष्ठित लोग नहीं कर सकते।
- जैसे कि एक छोटा सा दीपक भी उस स्थान पर रोशनी कर सकता है जहाँ सूर्य की किरणें नहीं पहुँच सकतीं।
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योग्यता और अवसर का महत्व –
- सफलता केवल बाहरी शक्ति पर निर्भर नहीं करती, बल्कि यह इस बात पर भी निर्भर करती है कि कौन कहाँ और कैसे कार्य करता है।
- कई बार बड़े नेता या शक्तिशाली लोग किसी कार्य को पूरा नहीं कर पाते, लेकिन एक छोटा कार्यकर्ता या विशेषज्ञ अपनी सूझ-बूझ से उसे सफल बना सकता है।
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प्रैक्टिकल जीवन में उपयोगिता –
- व्यापार और उद्योग – छोटी कंपनियाँ कभी-कभी बड़े उद्योगों को टक्कर दे सकती हैं।
- शिक्षा और ज्ञान – एक अच्छा शिक्षक किसी छात्र के जीवन को बदल सकता है, भले ही वह विश्वप्रसिद्ध न हो।
- प्रेरणा और आत्मविश्वास – कोई भी व्यक्ति, चाहे वह छोटा ही क्यों न हो, अपने कार्य और बुद्धिमत्ता से महान कार्य कर सकता है।
निष्कर्ष:
इस श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हम अपनी क्षमताओं को कम न आँकें। हर व्यक्ति, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, अपने स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। सफलता केवल शक्ति और प्रतिष्ठा से नहीं मिलती, बल्कि सही स्थान पर सही प्रयास करने से मिलती है।
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