संस्कृत श्लोक: "धनानि भूमौ पशवश्च गोष्ठे" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद, सुभाषितानि, सुविचार, संस्कृत श्लोक, भागवत दर्शन, सूरज कृष्ण शास्त्री, पदच्छेद सहित
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संस्कृत श्लोक: "धनानि भूमौ पशवश्च गोष्ठे" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "धनानि भूमौ पशवश्च गोष्ठे" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक
पदच्छेद एवं शब्दार्थ
- धनानि – धन (संपत्ति)
- भूमौ – भूमि में (धरती में)
- पशवः – पशु (गाय, बैल, आदि)
- च – और
- गोष्ठे – गोशाला में (पशुओं के रहने की जगह)
- भार्या – पत्नी
- गृहद्वारे – घर के दरवाजे तक
- जनः – लोग, परिजन
- श्मशाने – श्मशान तक
- देहः – शरीर
- चितायाम् – चिता पर (अर्थात जलने तक)
- परलोकमार्गे – परलोक जाने के मार्ग में
- कर्मानुगः – कर्मों के अनुसार साथ जाने वाला
- गच्छति – जाता है
- जीवः – जीवात्मा
- एकः – अकेला
हिन्दी अनुवाद
धन भूमि तक ही रहता है, पशु गोशाले तक ही रहते हैं। पत्नी घर के द्वार तक साथ देती है, संबंधी और मित्र केवल श्मशान तक जाते हैं। शरीर चिता पर जलकर समाप्त हो जाता है, लेकिन परलोक के मार्ग पर जीवात्मा के साथ केवल उसके कर्म जाते हैं।
श्लोक का भावार्थ
इस श्लोक में बताया गया है कि मृत्यु के समय कौन-कौन हमारा साथ देता है और कौन हमें छोड़ देता है:
- धन-संपत्ति भूमि में ही रह जाती है।
- पशु अपने स्थान (गोशाला) में ही रहते हैं।
- पत्नी केवल घर के द्वार तक साथ देती है।
- परिवार, मित्र और समाज केवल श्मशान तक जाते हैं।
- शरीर चिता पर जलकर समाप्त हो जाता है।
- परंतु जीवात्मा के साथ केवल उसके कर्म जाते हैं।
शिक्षा एवं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में व्याख्या
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धन और भौतिक वस्तुओं का मोह व्यर्थ है
- लोग धन-संपत्ति इकट्ठा करने में जीवन बिता देते हैं, लेकिन मृत्यु के बाद वह किसी काम नहीं आती। इसीलिए धन को सत्कर्मों में लगाना चाहिए।
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परिवार और संबंधों की सीमा
- परिवार और मित्र हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं, लेकिन वे भी हमें अंत में छोड़ देते हैं। इसलिए जीवन में किसी के प्रति आसक्ति से अधिक, आत्मनिर्भरता और अध्यात्म का मार्ग अपनाना चाहिए।
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शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है
- हमारा शरीर केवल एक साधन है, जो मृत्यु के बाद नष्ट हो जाता है। हमें इसे स्वस्थ और पवित्र रखना चाहिए, लेकिन इसका मोह नहीं करना चाहिए।
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केवल कर्म ही परलोक में साथ जाते हैं
- मृत्यु के बाद केवल हमारे अच्छे और बुरे कर्म ही हमारे साथ जाते हैं। इसलिए हमें सद्कर्मों का संचय करना चाहिए, न कि केवल धन और सांसारिक वस्तुओं का।
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आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता
- आज लोग सांसारिक सुख-सुविधाओं के पीछे भागते हैं, लेकिन वे भूल जाते हैं कि अंत में कुछ भी साथ नहीं जाएगा। यह श्लोक हमें नैतिकता, परोपकार और धर्मपरायण जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
निष्कर्ष
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि हमें सांसारिक मोह से ऊपर उठकर जीना चाहिए और अच्छे कर्म करने चाहिए। धन, परिवार, शरीर – ये सभी नश्वर हैं, परंतु हमारे कर्म ही हमारी पहचान और साथ निभाने वाले हैं। अतः जीवन में धर्म, सदाचार और परोपकार को प्राथमिकता दें।
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