कहानी: लकड़हारा और धारदार कुल्हाड़ी, रोचक कहानियाँ,शिक्षाप्रद कहानियाँ, भागवत दर्शन, सूरज कृष्ण शास्त्री
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कहानी: लकड़हारा और धारदार कुल्हाड़ी |
कहानी: लकड़हारा और धारदार कुल्हाड़ी
एक समय की बात है, एक कुशल लकड़हारा रोज़ जंगल में जाकर लकड़ियाँ काटता और अपनी जीविका चलाता था। समय के साथ उसे और अधिक काम की तलाश थी, ताकि वह अपने परिवार के लिए बेहतर जीवन व्यतीत कर सके।
नई नौकरी और उत्साहपूर्ण शुरुआत
एक दिन, वह एक बड़े लकड़ी के व्यापारी के पास गया और वहाँ उसे लकड़ी काटने की नौकरी मिल गई। व्यापारी ने उसे एक तेज़ कुल्हाड़ी दी और जंगल में पेड़ काटने का कार्य सौंप दिया। नौकरी की तनख्वाह अच्छी थी, लेकिन मेहनत भी बहुत करनी थी।
लकड़हारे ने पूरे जोश और मेहनत के साथ अपना काम शुरू किया। पहले ही दिन उसने अठारह पेड़ काट दिए। उसकी मेहनत को देखकर व्यापारी ने उसकी बहुत सराहना की और कहा,
"तुम बहुत मेहनती हो! इसी लगन से काम करते रहो।"
परिश्रम का घटता प्रभाव
व्यापारी की शाबाशी से प्रेरित होकर लकड़हारा अगले दिन और अधिक मेहनत से काम करने लगा। परंतु इस बार वह केवल पंद्रह पेड़ ही काट सका।
तीसरे दिन उसने पहले से भी अधिक जोर लगाया, लेकिन वह सिर्फ दस पेड़ ही काट पाया।
अब यह सिलसिला और तेज़ी से गिरने लगा। हर दिन उसके द्वारा काटे गए पेड़ों की संख्या कम होती जा रही थी।
आत्मविश्लेषण और चिंता
इन सवालों से परेशान होकर वह व्यापारी के पास गया और क्षमायाचना करते हुए बोला,
"स्वामी! मैं अपनी पूरी मेहनत कर रहा हूँ, फिर भी मेरी कार्यक्षमता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि ऐसा क्यों हो रहा है।"
बुद्धिमान व्यापारी की सीख
व्यापारी मुस्कराया और लकड़हारे से एक सरल-सा प्रश्न पूछा,
"बेटा! तुमने अपनी कुल्हाड़ी को अंतिम बार धार कब दिया था?"
लकड़हारा चकित होकर बोला,
"धार...? मेरे पास समय ही कहाँ है धार लगाने का! मैं तो दिनभर पेड़ काटने में व्यस्त रहता हूँ!"
व्यापारी ने गंभीरता से कहा,
"यही तो तुम्हारी सबसे बड़ी भूल है! जब कुल्हाड़ी की धार कुंद हो जाएगी, तो चाहे तुम कितनी भी मेहनत कर लो, तुम्हारी कार्यक्षमता कम होती जाएगी। यदि तुम समय-समय पर कुल्हाड़ी की धार तेज़ करते रहोगे, तो तुम्हारा परिश्रम अधिक फलदायी होगा।"
कहानी की सीख
यह कथा हमारे जीवन की एक महत्वपूर्ण सच्चाई को प्रकट करती है।
आज के समय में, हम सभी किसी न किसी कार्य में अत्यधिक व्यस्त हैं। परंतु, यह देखना आवश्यक है कि कहीं हम अपने "औजार" को कुंद तो नहीं कर रहे?
"कुल्हाड़ी की धार" का अर्थ केवल औजारों को तेज़ करना नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं की ओर भी संकेत करता है—
- शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य – लगातार परिश्रम करने से शरीर थक जाता है, अतः उसे विश्राम और पोषण की आवश्यकता होती है।
- परिवार और रिश्ते – यदि हम केवल अपने काम में ही लगे रहेंगे, तो परिवार और अपनों के साथ समय बिताने का समय नहीं मिलेगा।
- ज्ञान और आत्मविकास – लगातार सीखते रहना, चिंतन करना और नए कौशल विकसित करना भी उतना ही आवश्यक है, जितना कि परिश्रम करना।
- आध्यात्मिकता एवं आत्मचिंतन – ध्यान, प्रार्थना और आत्मनिरीक्षण से हमारा मन संतुलित रहता है, और हम अपने कार्यों में अधिक प्रभावशाली बनते हैं।
निष्कर्ष
"परिश्रम आवश्यक है, परंतु बिना सही दृष्टिकोण के वह निष्फल हो सकता है।"
इसलिए, यह सुनिश्चित करें कि आप केवल कठिन परिश्रम ही नहीं, बल्कि सही तरीके से, सही रणनीति के साथ परिश्रम कर रहे हैं। समय-समय पर अपनी "कुल्हाड़ी" को धार देना न भूलें, ताकि आपका जीवन और कर्म दोनों प्रभावशाली बने रहें।
"कार्य में सफलता केवल परिश्रम से नहीं, बल्कि सही दिशा में किए गए परिश्रम से मिलती है!"
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