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रामायण रहस्य: भगवान राम द्वारा हनुमानजी के अहंकार का नाश
यह कथा उस समय की है जब भगवान श्रीराम ने लंका जाने के लिए समुद्र तट पर रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना की थी। इस घटना के दौरान हनुमानजी को अपने सामर्थ्य पर थोड़ा अहंकार हो गया, जिसे श्रीराम ने अपनी लीला से नष्ट किया। यह कथा भक्तों को यह सीख देती है कि भक्ति में अहंकार का स्थान नहीं होता और भगवान अपने भक्तों का कल्याण करने के लिए समय-समय पर उन्हें सीख देते रहते हैं।
शिवलिंग की स्थापना हेतु हनुमानजी को काशी भेजना
जब समुद्र पर सेतुबंध (रामसेतु) का कार्य हो रहा था, तब भगवान श्रीराम ने वहां गणेशजी एवं नवग्रहों की स्थापना की और शिवलिंग स्थापित करने का संकल्प लिया। इसके लिए उन्होंने शुभ मुहूर्त देखकर हनुमानजी को काशी से शिवलिंग लाने के लिए भेजा।
हनुमानजी अत्यंत वेग से काशी (वर्तमान में वाराणसी) पहुँचे और वहाँ के विश्वनाथ महादेव के समक्ष प्रणाम करके निवेदन किया—
"हे प्रभु! प्रभु श्रीराम ने रामेश्वरम में आपकी स्थापना का संकल्प लिया है, अतः कृपया मेरे साथ चलें।"
महादेव प्रसन्न होकर बोले—
"पवनपुत्र! भगवान श्रीराम दक्षिण में मेरी स्थापना करवा रहे हैं, यह स्वयं मेरी भी इच्छा थी। महर्षि अगस्त्य द्वारा विंध्य पर्वत को झुकाने के बाद वे मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे, परंतु अब तुम्हारे माध्यम से मैं वहाँ जा सकता हूँ।"
यह सुनकर हनुमानजी गर्वित हो गए और उन्होंने सोचा कि केवल वे ही शिवलिंग को शीघ्र वहाँ पहुँचा सकते हैं। यही क्षण उनके अहंकार के जन्म का था।
भगवान श्रीराम की लीला—बालू का शिवलिंग
हनुमानजी जब काशी से शिवलिंग लाने निकले, तब भगवान श्रीराम ने उनके मन के भाव को जान लिया। वे सदैव अपने भक्तों के कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं। श्रीराम ने विचार किया कि यदि हनुमानजी का अहंकार बढ़ गया, तो उनकी भक्ति में बाधा आ सकती है। अतः उन्होंने उनके अभिमान को दूर करने का निश्चय किया।
श्रीराम ने वानरराज सुग्रीव को बुलाकर कहा—
"हे कपिश्रेष्ठ! शुभ मुहूर्त समाप्त होने वाला है और अभी तक हनुमान नहीं पहुँचे। इसलिए मैं बालू (रेत) का शिवलिंग बनाकर उसकी स्थापना कर देता हूँ।"
इसके बाद उन्होंने ऋषि-मुनियों की अनुमति लेकर विधिपूर्वक बालू का शिवलिंग बनाया और उसकी स्थापना कर दी।
श्रीराम ने जब पूजन समाप्त किया, तो उन्होंने ऋषि-मुनियों को दक्षिणा देने के लिए अपनी कौस्तुभ मणि का स्मरण किया। मणि प्रकट होते ही वहाँ दान-दक्षिणा, अन्न, वस्त्र, रत्न और सोना प्रकट हो गए, जिन्हें उन्होंने मुनियों को भेंट कर दिया।
हनुमानजी का लौटना और उनका क्रोध
इस बीच, जब हनुमानजी शिवलिंग लेकर रामेश्वरम पहुँचे, तो मार्ग में उन्होंने ऋषियों को देखा। उन्होंने पूछा—
"मुनिवर! आप सब कहाँ से आ रहे हैं?"
ऋषियों ने उत्तर दिया—
"हनुमान! श्रीराम ने शुभ मुहूर्त में बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया है और उसकी विधिपूर्वक पूजा भी संपन्न हो चुकी है।"
यह सुनकर हनुमानजी को बहुत आश्चर्य एवं क्रोध हुआ। वे तुरंत श्रीराम के पास पहुँचे और बोले—
"प्रभु! यदि आपको बालू का ही शिवलिंग स्थापित करना था, तो आपने मुझे काशी क्यों भेजा? आपने मेरे भक्तिभाव का उपहास किया है!"
भगवान श्रीराम ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया—
"हे पवनपुत्र! शुभ मुहूर्त समाप्त हो रहा था, इसलिए मैंने यह शिवलिंग स्थापित कर दिया। परंतु मैं तुम्हारे परिश्रम को व्यर्थ नहीं जाने दूँगा। यदि तुम चाहो तो इस शिवलिंग को उखाड़ दो, ताकि हम तुम्हारे लाए हुए शिवलिंग की स्थापना कर सकें।"
हनुमानजी प्रसन्न हो गए और बोले—
"ठीक है प्रभु! मैं इसे उखाड़कर फेंक दूँगा।"
हनुमानजी का अहंकार नाश
हनुमानजी ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर शिवलिंग को उखाड़ने का प्रयास किया, लेकिन वे उसे हिला तक नहीं सके। फिर उन्होंने अपनी पूँछ से लपेटकर उखाड़ने का प्रयास किया, किंतु फिर भी शिवलिंग नहीं हिला।
अब हनुमानजी का सारा अहंकार चूर-चूर हो गया। उन्होंने समझ लिया कि भगवान की इच्छा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। वे श्रीराम के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगे और बोले—
"प्रभु! मेरी बुद्धि अहंकार से ढक गई थी। अब मुझे ज्ञात हुआ कि आपकी कृपा के बिना मैं कुछ भी करने में असमर्थ हूँ। कृपया मुझे क्षमा करें।"
भगवान श्रीराम ने मुस्कराकर कहा—
"पवनपुत्र! भक्त का अहंकार ही उसके पतन का कारण बनता है। किंतु तुम मेरे प्रिय भक्त हो, इसलिए मैंने तुम्हें यह सीख दी।"
हनुमानजी द्वारा लाए गए शिवलिंग की स्थापना
भगवान श्रीराम ने कहा—
"जहाँ मैंने बालू का शिवलिंग स्थापित किया है, उसके उत्तर में तुम्हारे द्वारा लाए गए शिवलिंग को भी स्थापित किया जाएगा। किंतु यह नियम होगा कि पहले तुम्हारे शिवलिंग की पूजा होगी और फिर मेरे शिवलिंग की। तभी भक्तों को संपूर्ण पुण्य प्राप्त होगा।"
हनुमानजी अत्यंत प्रसन्न हुए। भगवान श्रीराम ने विधिपूर्वक हनुमानजी द्वारा लाए गए शिवलिंग की भी स्थापना करवाई।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
इस प्रकार भगवान श्रीराम ने रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना की, जो भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह स्थान अत्यंत पावन तीर्थ माना जाता है। आज भी वहाँ पहले हनुमानजी द्वारा लाए गए शिवलिंग की पूजा होती है और फिर श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग की।
इस कथा से क्या शिक्षा मिलती है?
- भक्त को अहंकार से बचना चाहिए – हनुमानजी जैसे महान भक्त को भी अहंकार आ सकता है, तो हम साधारण मनुष्य भी अहंकार से अछूते नहीं रह सकते।
- भगवान भक्त का अहित नहीं करते – वे सदैव भक्त का कल्याण चाहते हैं, भले ही कुछ घटनाएँ हमें विपरीत लगें।
- अहंकार का विनाश ही सच्ची भक्ति है – भक्ति में अहंकार का स्थान नहीं होना चाहिए।
- भगवान की लीला अपरंपार है – वे अपने भक्तों को सही मार्ग दिखाने के लिए विभिन्न लीलाएँ करते हैं।
उपसंहार
इस कथा में भगवान श्रीराम ने अपने प्रिय भक्त हनुमानजी के अहंकार का नाश कर उन्हें सच्ची भक्ति का मार्ग दिखाया। यह कथा हमें सिखाती है कि ईश्वर की कृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं और अहंकार का त्याग ही सच्चे भक्त का लक्षण है।
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