संस्कृत श्लोक: "अपुत्रस्य गृहं शून्यं सन्मित्ररहितस्य च" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद, सुभाषितानि,सुविचार,संस्कृत श्लोक, भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री।
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संस्कृत श्लोक: "अपुत्रस्य गृहं शून्यं सन्मित्ररहितस्य च" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "अपुत्रस्य गृहं शून्यं सन्मित्ररहितस्य च" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक:
हिन्दी अनुवाद:
जिस व्यक्ति का कोई पुत्र नहीं होता, उसका घर सूना (शून्य) होता है। जिस व्यक्ति के पास सच्चे मित्र नहीं होते, उसके लिए समाज सूना होता है। मूर्ख व्यक्ति को सभी दिशाएँ सूनी लगती हैं (अर्थात् उसे कहीं भी सार्थकता महसूस नहीं होती), लेकिन सबसे अधिक शून्यता दरिद्रता में होती है, क्योंकि दरिद्र व्यक्ति के लिए तो समस्त संसार ही शून्यवत् प्रतीत होता है।
शाब्दिक विश्लेषण:
- अपुत्रस्य – पुत्र रहित व्यक्ति का (षष्ठी विभक्ति)
- गृहं शून्यं – घर सूना (खाली) होता है
- सन्मित्ररहितस्य – अच्छे मित्र से रहित व्यक्ति का
- मूर्खस्य – मूर्ख व्यक्ति का
- दिशः शून्याः – दिशाएँ सूनी होती हैं, अर्थात् उसे मार्गदर्शन नहीं मिलता
- सर्वशून्या – पूर्ण रूप से शून्य, निरर्थक
- दरिद्रता – निर्धनता, गरीबी
व्याकरणीय विश्लेषण:
- अपुत्रस्य, सन्मित्ररहितस्य, मूर्खस्य – सभी षष्ठी विभक्ति (सम्बन्ध कारक) में प्रयुक्त हुए हैं।
- शून्यं, शून्याः, सर्वशून्या – विशेषण रूप में प्रयुक्त हैं, जो क्रमशः "गृह", "दिशः" और "दरिद्रता" की विशेषता बताते हैं।
- दरिद्रता – स्त्रीलिंग शब्द है, इसलिए "सर्वशून्या" विशेषण भी स्त्रीलिंग में प्रयुक्त हुआ है।
आधुनिक संदर्भ में व्याख्या:
यह श्लोक जीवन में परिवार, मित्रता, बुद्धि और आर्थिक स्थिति के महत्व को दर्शाता है। इसे आधुनिक संदर्भ में निम्नलिखित रूप से समझ सकते हैं—
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पुत्रविहीन व्यक्ति का घर सूना होता है –पारिवारिक संरचना में बच्चों का विशेष स्थान होता है। वे केवल वंश को आगे बढ़ाने का कार्य नहीं करते, बल्कि जीवन में एक उद्देश्य, आशा और आनंद भी लाते हैं। संतानहीन व्यक्ति को अपने घर में अक्सर अकेलापन महसूस होता है।
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मित्रविहीन व्यक्ति के लिए समाज सूना होता है –मित्रता व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक जीवन को संबल देती है। अच्छे मित्र जीवन के कठिन क्षणों में सहारा होते हैं। जिस व्यक्ति के पास सच्चे मित्र नहीं होते, उसके लिए समाज और संसार अर्थहीन हो जाता है।
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मूर्ख व्यक्ति के लिए दिशाएँ भी सूनी होती हैं –ज्ञान और विवेक के बिना व्यक्ति जीवन में दिशाहीन हो जाता है। मूर्ख व्यक्ति को मार्गदर्शन नहीं मिलता, न वह सही दिशा में आगे बढ़ पाता है। वह स्वयं को हर ओर से अंधकार में पाता है।
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दरिद्रता ही सबसे बड़ा शून्य है –आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए संसार की हर वस्तु व्यर्थ लगती है। धन केवल विलासिता के लिए नहीं, बल्कि मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक होता है। निर्धन व्यक्ति को हर स्थान पर अभाव और असहायता का अनुभव होता है।
निष्कर्ष:
यह श्लोक चार महत्वपूर्ण जीवन मूल्यों की ओर संकेत करता है—परिवार, मित्रता, बुद्धि और आर्थिक स्थिरता। यदि इनमें से किसी एक की भी कमी हो जाए, तो जीवन अधूरा और शून्यवत् प्रतीत होता है। अतः संतुलित जीवन के लिए इन सभी पहलुओं का ध्यान रखना आवश्यक है।
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