संस्कृत श्लोक: "उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद, सुभाषितानि,सुविचार,संस्कृत श्लोक, भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री।
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संस्कृत श्लोक: "उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक:
हिन्दी अनुवाद:
परिश्रमी एवं सिंह के समान पराक्रमी पुरुष के पास ही लक्ष्मी (समृद्धि) आती है। कायर व्यक्ति (आलसी) यह कहते हैं कि भाग्य ही सब कुछ देता है। इसलिए, भाग्य पर निर्भर न रहकर, अपने पुरुषार्थ और आत्मशक्ति के बल पर कर्म करो। यदि पूर्ण प्रयास करने के बाद भी सफलता न मिले, तो इसमें तुम्हारा क्या दोष?
शाब्दिक विश्लेषण:
- उद्योगिनं – परिश्रमी, कर्मशील व्यक्ति
- पुरुषसिंहम् – सिंह के समान पराक्रमी पुरुष
- उपैति – प्राप्त होती है, समीप आती है
- लक्ष्मीः – समृद्धि, धन, ऐश्वर्य
- दैवेन – भाग्य द्वारा
- देयम् – दिया जाता है, प्रदान किया जाता है
- कापुरुषाः – कायर, निर्बल लोग
- वदन्ति – कहते हैं
- दैवं निहत्य – भाग्य को छोड़कर, परास्त करके
- कुरु – करो
- पौरुषम् – पुरुषार्थ, परिश्रम
- आत्मशक्त्या – अपनी शक्ति से
- यत्ने कृते – प्रयास करने पर
- यदि न सिध्यति – यदि सफलता न मिले
- कोऽत्र दोषः – इसमें क्या दोष है?
व्याकरणीय विश्लेषण:
- उद्योगिनं – द्वितीया विभक्ति (कर्मकारक), उद्योगी व्यक्ति के लिए प्रयुक्त।
- पुरुषसिंहम् – द्वितीया विभक्ति (उपमा द्वारा) "पुरुष-सिंह" को इंगित करता है।
- उपैति – धातु "उप√इ" से बना हुआ, जिसका अर्थ है "निकट आना, प्राप्त होना"।
- दैवं निहत्य – "निहत्य" अव्यय रूप में प्रयुक्त है, जिसका अर्थ है "हराकर, नष्ट करके"।
- यत्ने कृते यदि न सिध्यति – यहाँ "यदि" और "न" शर्तीय प्रयोग में हैं, जो असफलता की स्थिति को दर्शाते हैं।
आधुनिक संदर्भ में व्याख्या:
यह श्लोक कर्मयोग और पुरुषार्थ को महत्त्व देने का संदेश देता है। आधुनिक जीवन में इसे निम्नलिखित रूपों में समझा जा सकता है—
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कर्मठता और सफलता –यह श्लोक बताता है कि सफलता उन्हीं को मिलती है जो मेहनती होते हैं। उद्योगी व्यक्ति, जो शेर के समान साहसी होता है, वही लक्ष्मी (संपत्ति और सफलता) प्राप्त करता है।
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भाग्यवादी सोच का त्याग –कई लोग यह सोचते हैं कि भाग्य ही सब कुछ तय करता है, और वे प्रयास नहीं करते। यह श्लोक बताता है कि केवल कायर व्यक्ति ही ऐसा सोचते हैं। असल में, अपने पुरुषार्थ से ही हम अपने भाग्य का निर्माण कर सकते हैं।
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आत्मशक्ति और परिश्रम का महत्त्व –केवल भाग्य के भरोसे बैठने की बजाय, अपनी शक्ति और योग्यता पर भरोसा करके प्रयास करना चाहिए। यह "स्व-निर्भरता" (Self-Reliance) और "आत्म-निर्भर भारत" जैसे सिद्धांतों को भी बल देता है।
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असफलता का सामना कैसे करें? –यदि पूरा प्रयास करने के बाद भी सफलता न मिले, तो इसका अर्थ यह नहीं कि हम दोषी हैं। यह हमें आगे के सुधार और नए प्रयासों के लिए प्रेरित करता है।
निष्कर्ष:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि सफलता केवल भाग्य पर निर्भर नहीं होती, बल्कि कर्म और परिश्रम से प्राप्त होती है। जो लोग कड़ी मेहनत करते हैं और अपनी शक्ति पर विश्वास रखते हैं, वे ही लक्ष्मी को आकर्षित करते हैं। अगर प्रयास करने पर भी सफलता न मिले, तो उसमें कोई दोष नहीं, बल्कि हमें और अधिक प्रयास करना चाहिए।
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