जो अपराधु भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई॥सुनु सुरेस रघुनाथ सुभाऊ। निज अपराध रिसाहिं न काऊ।।, रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण, भागवत दर्शन
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जो अपराधु भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई॥ |
जो अपराधु भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई॥
भगवान श्रीहरि की भक्ति, उनके भक्तों के प्रति उनकी अपार कृपा और दुष्टों के विनाश की लीला का वर्णन वेदों, उपनिषदों, पुराणों और श्रीरामचरितमानस में विस्तार से किया गया है। यह सिद्धांत केवल हिंदू धर्म का ही नहीं, बल्कि समस्त वैदिक परंपरा का मूल आधार है।
1. श्रीराम का भक्तवत्सल स्वभाव
(रामचरितमानस, लंका कांड 65.2-3)
देवराज इंद्र! श्रीराम का स्वभाव सुनो। वे अपने प्रति किए गए अपराध से कभी रुष्ट नहीं होते। लेकिन यदि कोई उनके भक्त का अपराध करता है, तो वह श्रीराम के क्रोध की अग्नि में जल जाता है।
श्रीराम की सहनशीलता और भक्तों की रक्षा
भगवान श्रीराम अपने प्रति किए गए अपराधों को सहन कर लेते हैं, किंतु जब बात उनके भक्तों की आती है, तो वे सहन नहीं कर सकते। यह भक्तवत्सलता की पराकाष्ठा है। इस सिद्धांत को हम विभिन्न प्रसंगों में देखते हैं—
- शबरी की भक्ति: शबरी एक भीलनी थी, जो श्रीराम की प्रतीक्षा में दिन-रात भक्ति में लीन रहती थी। श्रीराम ने जाति-पाति के बंधनों को तोड़कर उसकी भक्ति को स्वीकार किया और उसके झूठे बेर प्रेमपूर्वक खाए।
- केवट प्रसंग: केवट ने भगवान के चरण धोकर ही उन्हें पार उतारा, परन्तु उसकी भक्ति देखकर श्रीराम ने उसे गले लगाया।
- हनुमानजी की भक्ति: जब भरतजी ने हनुमानजी को पहचान नहीं पाया और तीर चढ़ा लिया, तब श्रीराम ने तुरंत कहा—"भरत! हनुमान पर तीर मत छोड़ना, क्योंकि यदि इसे कुछ हो गया, तो मैं प्राण नहीं रहूंगा।"
2. भगवान का समभाव और भक्तों के प्रति विशेष कृपा
(भगवद्गीता 9.29)
समभाव और भक्तों के प्रति विशेष प्रेम
भगवान किसी के प्रति द्वेष नहीं रखते। वे नास्तिकों से भी घृणा नहीं करते, लेकिन जो उन्हें प्रेम से भजते हैं, वे उन्हें विशेष प्रिय होते हैं।
इस सिद्धांत को समझाने के लिए एक दृष्टांत दिया जाता है—
"सूर्य का प्रकाश सबके लिए समान होता है। लेकिन जो सूर्य के प्रकाश में खुलकर आते हैं, वे उसका पूरा लाभ उठाते हैं, और जो छाया में रहते हैं, वे सूर्य की ऊष्मा से वंचित रह जाते हैं।"
भगवान भी सब पर समान कृपा करते हैं, लेकिन जो उन्हें प्रेमपूर्वक भजते हैं, वे उनकी विशेष कृपा प्राप्त करते हैं।
3. भगवान भी अपने भक्तों की भक्ति करते हैं
(भागवत पुराण 10.86.59)
राजन्! जैसे भक्त भगवान की भक्ति करते हैं, वैसे ही भगवान भी अपने भक्तों की भक्ति करते हैं।
भगवान भक्तों की भक्ति क्यों करते हैं?
भगवान को किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं है। वे पूर्ण हैं, फिर भी वे अपने भक्तों की सेवा को स्वीकार करते हैं।
- सुदामा प्रसंग: श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा के लिए निर्धनता का हर लिया।
- विदुर के घर भोजन: भगवान श्रीकृष्ण ने विदुराणी के प्रेम से ओतप्रोत केले के छिलके तक खा लिए।
4. साधु-संतों की रक्षा और दुष्टों का विनाश
(भगवद्गीता 4.8)
"मैं साधुओं की रक्षा के लिए, दुष्टों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए युग-युग में अवतार लेता हूँ।"
भगवान के अवतारों का उद्देश्य
भगवान अपने भक्तों की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए अवतार लेते हैं।
- नृसिंह अवतार: भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान ने हिरण्यकशिपु का संहार किया।
- रामावतार: श्रीराम ने रावण का वध किया, जिसने साधुजनों पर अत्याचार किया था।
- कृष्णावतार: श्रीकृष्ण ने कंस, शिशुपाल, दुर्योधन आदि का विनाश कर धर्म की स्थापना की।
5. जब अधर्म बढ़ता है, तब भगवान अवतार लेते हैं
(रामचरितमानस, उत्तरकांड 44.1)
जब धर्म की हानि होती है और अधर्मी दुष्टों का अभिमान बढ़ता है, तब भगवान कृपा करके सज्जनों की पीड़ा हरने के लिए अवतार लेते हैं।
6. भगवान दुष्टों को भी मोक्ष प्रदान करते हैं
(रामचरितमानस, लंका कांड 79.2)
श्रीराम ने रावण को एक ही बाण से मार दिया, लेकिन दीन जानकर उसे अपने धाम में स्थान दिया।
दुष्टों का विनाश भी उनके कल्याण का माध्यम
भगवान अपने शत्रुओं को भी मोक्ष देते हैं।
- कंस को मोक्ष: श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया, लेकिन उसे अपने स्वरूप में लीन कर लिया।
- रावण को मोक्ष: श्रीराम ने रावण को मारा, लेकिन उसे अपने चरणों में स्थान दिया।
निष्कर्ष
भगवान की करुणा सबके लिए समान है, लेकिन भक्तों की रक्षा करना उनका स्वभाव है। वे दुष्टों का नाश भी करुणा के कारण करते हैं, ताकि वे मोक्ष प्राप्त कर सकें।
इसलिए, हमें सदैव भगवान की भक्ति में लगे रहना चाहिए, जिससे हम उनकी कृपा के पात्र बन सकें।
॥ जय श्रीराम ॥
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