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महिला दिवस विशेष: नारी सृष्टि की अनमोल धरोहर |
महिला दिवस विशेष: नारी – सृष्टि की अनमोल धरोहर
नारी केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि सृष्टि की अमूल्य कृति है। उसकी कोमलता में अपार शक्ति छिपी होती है, उसकी ममता में स्नेह का महासागर समाया होता है, और उसके त्याग में सम्पूर्ण सृष्टि का कल्याण निहित रहता है। वह केवल एक घर की रौनक नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज की आधारशिला है।
माँ: वात्सल्य की प्रतिमूर्ति
माँ के रूप में नारी धरती पर साक्षात् दया और प्रेम का रूप होती है। उसका वात्सल्य किसी भी अन्य प्रेम से श्रेष्ठ और पवित्र होता है। वह अपनी संतान के लिए निस्वार्थ प्रेम और सेवा का परिचय देती है, उनकी उन्नति के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देती है। माँ का स्नेह जीवनभर संतान को संजीवनी की तरह संबल देता है।
पत्नी: त्याग और समर्पण का अनुपम उदाहरण
पत्नी केवल एक जीवनसंगिनी नहीं, बल्कि अपने पति का संबल, प्रेरणा और शक्ति होती है। वह न केवल कठिन परिस्थितियों में पति का साथ देती है, बल्कि उसके सुख-दुःख में सहभागी बनकर परिवार को सुदृढ़ बनाए रखती है। भारतीय संस्कृति में पत्नी को ‘अर्धांगिनी’ कहा गया है, क्योंकि वह अपने पति के जीवन को पूर्णता प्रदान करती है। उसकी निष्ठा, त्याग और समर्पण परिवार को सुदृढ़ आधार देता है।
पुत्री: सेवा और स्नेह का साकार रूप
एक पुत्री माता-पिता के लिए स्नेह, सेवा और श्रद्धा का प्रतीक होती है। वह परिवार में प्रेम और सौहार्द्र की भावना को बनाए रखती है। अपनी कोमल हृदयता से वह परिवार को जोड़ने और सहेजने का कार्य करती है। वह माता-पिता की सेवा और सम्मान को अपना कर्तव्य मानती है और उनके सुख-दुःख की सहभागी बनती है।
नारी के अद्वितीय गुण
नारी केवल रिश्तों की ही आधारशिला नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों की संरक्षिका भी है। उसमें असंख्य गुण समाहित होते हैं, जो उसे अद्वितीय बनाते हैं:
- स्नेह और सेवा – नारी के हृदय में प्रेम का सागर होता है, जो निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा में समर्पित रहता है।
- त्याग और तपस्या – वह अपने परिवार और समाज के कल्याण हेतु स्वयं के सुखों को त्याग देती है।
- सौजन्य और सहृदयता – उसकी कोमलता और करुणा समाज में प्रेम और सौहार्द्र की स्थापना करती है।
- साहस और संघर्षशीलता – नारी कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और साहस से कार्य करती है।
- सहनशीलता और सहिष्णुता – वह अपने ऊपर आए कष्टों को धैर्यपूर्वक सहन कर दूसरों के लिए मार्ग प्रशस्त करती है।
नारी की उदात्त सोच और दर्शन
भारतीय नारी केवल अपने परिवार और समाज के लिए ही नहीं जीती, बल्कि उसकी सोच और दर्शन अत्यंत उच्चकोटि का होता है। जहाँ अधिकांश प्राणी अपनी लंबी आयु और सुख की कामना करते हैं, वहीं नारी अपने प्रियजनों के दीर्घायु और मंगल की प्रार्थना करती है। वह अपने लिए नहीं, बल्कि अपने अपनों के लिए जीती है, व्रत-उपवास रखती है, तपस्या करती है, और यहाँ तक कि अपने पति के पहले इस संसार से विदा होने की भी कामना करती है। यह निस्वार्थ प्रेम और समर्पण का ऐसा उदाहरण है, जो अन्यत्र दुर्लभ है।
नारी का सम्मान – समय की माँग
समाज की प्रगति और समृद्धि नारी के सम्मान और सशक्तिकरण से ही संभव है। हमें नारी की भूमिका को केवल परिवार तक सीमित न रखकर, उसे समाज और राष्ट्र निर्माण का अभिन्न अंग बनाना चाहिए। नारी केवल सहनशीलता और त्याग की मूर्ति नहीं, बल्कि वह शक्ति और सामर्थ्य की भी प्रतीक है। उसके अधिकारों, उसके सम्मान, और उसके योगदान को उचित स्थान देना हमारा नैतिक कर्तव्य है।
आइए, इस महिला दिवस पर हम संकल्प लें कि नारी को उसके वास्तविक सम्मान और अधिकार प्रदान करेंगे। नारी केवल पूजनीय नहीं, बल्कि सहयोगी, सशक्त और समान रूप से समाज की निर्माता भी है।
'नारी' की महिमा पर अद्भुत गीत
शत-शत नमन श्रद्धा सुमन हे सृष्टि की परिचायिका,
तू धुरी घर परिवार की तू राष्ट्र की सम्पोषिका ।
तू रक्षणीया, वंदनीया, श्लाघनीया है सदा
वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है ,तू स्नेह सिन्धु प्रवाहिका।
तू मातृशक्ति समन्विता, है स्नेह की संवाहिका,
प्रेयसी भी,श्रेयसी भी , है जगत् संचालिका ।
कान्ता कभी, माता कभी, दुहिता कभी है अस्मिता,
जन-जन का तू सौभाग्य है साफल्य की है नायिका।
मृदु भाषिणी,मधु भाषिणी , गृहिणी की संज्ञा धारिणी,
साहस की सीमा से परे , तू है असंभव कारिणी ।
चांचल्य की है चारुता , उत्साह से संभूषिता,
अभिनंदनीया नारि हे ! शुभकामना है नंदिता।।
सेवा समर्पण त्याग की , है जगत् में सानी नहीं,
उपवास व्रत अपनों के हित , निज हित कभी जानी नहीं।
गौरवमयी पहचान तेरी , स्वयं की पहचान कर,
शुभकामना श्रद्धा सहित, तू सत् प्रतिष्ठा प्राप्त कर ।।
--- डॉ निशा कान्त द्विवेदी
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏
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