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कहानी: परनिंदा के दुष्परिणाम
हम जाने-अनजाने अपने आसपास के व्यक्तियों की निंदा करते रहते हैं, जबकि हमें उनकी वास्तविक परिस्थितियों का तनिक भी ज्ञान नहीं होता। निंदा करना अनेक लोगों के लिए एक आनंददायक कार्य बन जाता है, क्योंकि यह उन्हें मानसिक रूप से संतुष्टि देता है। किंतु यह एक गंभीर दोष है, जिसके परिणाम अत्यंत भयानक होते हैं। यदि मनुष्य समझ जाए कि परनिंदा से क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं, तो वह इस दोष से सहज ही बच सकता है।
परनिंदा का परिणाम : राजा पृथु की कथा
प्राचीन काल में राजा पृथु अपनी प्रजा के पालन-पोषण में निपुण, धर्मपरायण एवं न्यायप्रिय शासक थे। एक दिन प्रातःकाल वे अपने महल से निकलकर घोड़ों के तबेले में गए। संयोगवश, उसी समय एक साधु भिक्षा मांगने वहाँ पहुँचे। राजा पृथु को यह देखकर क्रोध आ गया कि कोई साधु इतनी सुबह भिक्षा माँगने आ सकता है! उन्होंने बिना विचारे साधु की निंदा करते हुए, क्रोधवश घोड़े की लीद उठाकर साधु के पात्र में डाल दी। साधु अत्यंत शांत स्वभाव के थे, इसलिए उन्होंने कोई प्रतिकार नहीं किया और लीद को लेकर अपनी कुटिया में चले गए।
साधु ने वह लीद अपनी कुटिया के बाहर एक कोने में डाल दी। कुछ समय बाद राजा पृथु शिकार के लिए जंगल गए और उन्होंने उसी साधु की कुटिया के बाहर घोड़े की लीद का एक बड़ा ढेर देखा। वे आश्चर्यचकित रह गए, क्योंकि वहाँ न कोई तबेला था और न ही घोड़े।
राजा ने साधु से पूछा, "महाराज! यहाँ कोई घोड़ा भी नहीं, फिर इतनी अधिक लीद कहाँ से आई?"
साधु मुस्कराए और बोले, "राजन्! यह लीद मुझे एक राजा ने भिक्षा में दी थी, और अब समय आने पर उसे ही इसे भोगना पड़ेगा।"
यह सुनकर राजा पृथु को अपनी भूल का स्मरण हो आया। वे अत्यंत लज्जित हुए और साधु के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगे।
राजा ने विनम्रतापूर्वक पूछा, "महाराज! मैंने तो केवल थोड़ी-सी लीद दी थी, परंतु यह इतनी अधिक कैसे हो गई?"
साधु बोले, "राजन्! जब हम किसी को कुछ भी देते हैं, तो वह समय के साथ कई गुना बढ़कर हमारे पास लौटकर आता है।"
यह सुनकर राजा पृथु की आँखों में आँसू भर आए। वे साधु से प्रायश्चित का उपाय पूछने लगे।
राजा पृथु का प्रायश्चित
साधु ने कहा, "राजन्! यदि आप अपने पाप का प्रायश्चित करना चाहते हैं, तो आपको ऐसा कार्य करना होगा जो देखने में अनुचित लगे, किंतु वास्तव में वह अनुचित न हो। जब लोग आपको गलत समझकर आपकी निंदा करेंगे, तो आपकी बुरी कर्मों का फल निंदा करने वालों में बँट जाएगा।"
राजा पृथु ने इस पर गहन विचार किया और अगले दिन प्रातःकाल वे शराब की एक बोतल लेकर नगर के चौराहे पर बैठ गए।
दिनभर राजा पृथु ऐसे ही बैठे रहे, और लोग उनकी आलोचना करते रहे।
शाम होने पर वे पुनः साधु के पास पहुँचे। उन्होंने देखा कि लीद का विशाल ढेर अब केवल एक मुट्ठी रह गया था। आश्चर्यचकित होकर उन्होंने साधु से पूछा, "महाराज! यह कैसे हुआ? इतना बड़ा ढेर कहाँ चला गया?"
साधु बोले, "राजन्! जब लोगों ने आपकी अनुचित निंदा की, तो आपका पाप उन सबमें समान रूप से बँट गया।"
परनिंदा के दुष्परिणाम
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब हम किसी की निंदा करते हैं, तो हम अनजाने में उसके पापों का बोझ अपने ऊपर ले लेते हैं।
- निंदा करना न केवल हमारे चरित्र को दूषित करता है, बल्कि हमें निंदित व्यक्ति के कर्मों का भागी भी बना देता है।
- हम जो कुछ भी देते हैं, वह बढ़कर हमारे पास लौटकर आता है—चाहे वह प्रेम हो, सहयोग हो या फिर निंदा और अपशब्द।
- यदि हम अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि चाहते हैं, तो हमें परनिंदा से बचना चाहिए और सदैव सद्भावना एवं शुभकामनाएँ देने की आदत डालनी चाहिए।
अतः हमें सदैव दूसरों की आलोचना करने के स्थान पर आत्ममंथन करना चाहिए और अपने कर्मों को सुधारना चाहिए। दूसरों के दोष देखने की बजाय अपने दोषों को दूर करने का प्रयास करना ही सच्चा आत्मोन्नयन है।
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