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सनातन धर्म: प्रकृति संरक्षण का मार्गदर्शक |
सनातन धर्म: प्रकृति संरक्षण का मार्गदर्शक
प्रकृति संरक्षण की दृष्टि से यदि संपूर्ण विश्व के धर्मों का अध्ययन किया जाए, तो सनातन धर्म (हिंदू धर्म) इसमें सबसे अग्रणी दिखाई देता है। इसका कारण यह है कि इसमें "सर्वे भवन्तु सुखिनः" की भावना के साथ-साथ प्राकृतिक संतुलन और पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) की उपासना का समावेश किया गया है।
1. प्रकृति को ईश्वर का स्वरूप मानना
सनातन धर्म में प्रकृति को मात्र एक संसाधन के रूप में नहीं, बल्कि ईश्वर का सजीव स्वरूप माना गया है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों तथा अन्य शास्त्रों में प्रकृति को देवतुल्य माना गया है, जैसे—
- पृथ्वी माता (भूमाता)
- गंगा, यमुना आदि नदियाँ माताएँ (गंगा माता, यमुना माता)
- सूर्य पिता (सूर्य नारायण)
- वायु देवता (वायुदेव)
- वनस्पतियाँ और वृक्ष पूजनीय (पीपल, तुलसी, बरगद, केले का वृक्ष)
2. वेदों में पर्यावरण संरक्षण का संदेश
वेदों में पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने के लिए अनेक ऋचाएँ दी गई हैं।
(i) पृथ्वी संरक्षण
- "माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:" (अथर्ववेद 12.1.12)→ पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं, अतः हमें इसका सम्मान और संरक्षण करना चाहिए।
(ii) जल संरक्षण
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"आपः पृणीत भेषजं" (ऋग्वेद 1.23.19)→ जल जीवनदायी औषधि है, इसे प्रदूषित नहीं करना चाहिए।
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"इमे ये सर्वे समुना गृहेषु शीभ्यन्ते अश्वैर्वा वाजिभिर्वा।तेभ्यः सर्वेभ्यो नमः संत्याय जलाय च ॥" (यजुर्वेद 36.12)→ जल स्रोतों का आदर करना चाहिए, क्योंकि वे समस्त जीवों के लिए उपयोगी हैं।
(iii) वायु और पर्यावरण संरक्षण
- "वायुरस्मि मखशंसः" (ऋग्वेद 10.168.4)→ वायु देवता हैं, इनकी शुद्धता बनाए रखना आवश्यक है।
3. वृक्ष और वनस्पति संरक्षण
सनातन धर्म में वृक्षों और पौधों की रक्षा को बहुत महत्व दिया गया है।
- "वृक्षान् नमस्यामः" – वृक्षों को नमस्कार करें।
- "दशकूपसमावापी दशवापी समो ह्रदः।दशह्रदसमः पुत्रो दशपुत्रसमो द्रुमः॥" (मनुस्मृति)→ दस कुएँ एक बावड़ी के बराबर हैं, दस बावड़ियाँ एक तालाब के समान हैं, दस तालाब एक पुत्र के समान हैं, लेकिन दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है।
वृक्षों की पूजा और महत्व
- पीपल – इसे विष्णु स्वरूप माना गया है।
- बरगद – दीर्घायु और स्थायित्व का प्रतीक है।
- तुलसी – स्वास्थ्यवर्धक और पवित्रता की प्रतीक है।
- आंवला – इसमें औषधीय गुण होते हैं।
वृक्षारोपण को धर्म से जोड़ना
- वट सावित्री व्रत – महिलाएँ वट वृक्ष की पूजा कर उसकी रक्षा का संकल्प लेती हैं।
- तुलसी विवाह – तुलसी पौधे को लक्ष्मी स्वरूप मानकर उसकी रक्षा की जाती है।
- गोवर्धन पूजा – गोवर्धन पर्वत और प्रकृति की पूजा का पर्व है।
4. गौ-रक्षा और जीवों के प्रति करुणा
सनातन धर्म में जीवों के संरक्षण को विशेष महत्व दिया गया है।
- गाय – इसे माता (गौमाता) कहा गया है और इसका पालन-पोषण करना पुण्य माना गया है।
- साँप (नाग) – नाग पंचमी में नागों की पूजा की जाती है।
- गिद्ध और पक्षी – जटायु (रामायण में), गरुड़ (विष्णु वाहन) को सम्मान प्राप्त है।
5. नदियों और जल स्रोतों का संरक्षण
सनातन धर्म में नदियों को माता (जीवनदायिनी शक्ति) माना गया है।
- गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती जैसी नदियों को पवित्र मानकर उनकी पूजा की जाती है।
- "नदीनां स्रोतांसि शुद्धयन्तु" (यजुर्वेद) → नदियों को स्वच्छ बनाए रखना चाहिए।
6. पर्वतों और जंगलों का संरक्षण
सनातन परंपरा में पर्वतों को देवता का स्वरूप माना गया है—
- गिरिराज गोवर्धन – भगवान कृष्ण ने इसे अपनी छोटी अंगुली पर उठाया था।
- कैलाश पर्वत – भगवान शिव का निवास स्थान।
- हिमालय – तपस्वियों और ऋषियों की साधना स्थली।
7. योग और प्राकृतिक जीवनशैली
योग और आयुर्वेद हमें प्राकृतिक तत्वों के साथ संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
- आयुर्वेद – वनस्पतियों और जड़ी-बूटियों का उपयोग करके स्वास्थ्य को ठीक रखना।
- योग – शरीर, मन और आत्मा को संतुलित कर प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाना।
8. धार्मिक अनुष्ठानों में प्रकृति-संरक्षण का संदेश
- यज्ञ – वातावरण की शुद्धि के लिए किया जाता है।
- तीर्थ यात्रा – नदियों और वनों की पवित्रता बनाए रखने की परंपरा।
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