कथा: हनुमानजी द्वारा भीम को तीन बाल देने की कथा, रामायण रहस्य, महाभारत रहस्य, भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री। राजसूय यज्ञ और पुरुषमृगा ऋषि को आमंत्रण
कथा: हनुमानजी द्वारा भीम को तीन बाल देने की कथा
राजसूय यज्ञ और पुरुषमृगा ऋषि को आमंत्रण
महाभारत काल में जब पांडव इंद्रप्रस्थ में राज्य कर रहे थे, तब एक दिन देवर्षि नारद युधिष्ठिर के दरबार में आए। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा—
"राजन! स्वर्ग में आपके पिता महाराज पांडु बहुत दुखी हैं, क्योंकि वे अपने जीवनकाल में राजसूय यज्ञ करना चाहते थे, परंतु ऐसा नहीं कर सके। यदि आप इस यज्ञ का आयोजन करें, तो उनकी आत्मा को शांति मिलेगी।"
युधिष्ठिर ने अपने भाइयों और श्रीकृष्ण से परामर्श कर इस यज्ञ के आयोजन का निर्णय लिया। यह यज्ञ अत्यंत भव्य और दिव्य होना चाहिए था, अतः इसमें अनेक विद्वानों, ऋषि-मुनियों और तपस्वियों को आमंत्रित किया गया। इन्हीं में से एक थे ऋषि पुरुषमृगा, जो भगवान शिव के परम भक्त थे और जिनका स्वरूप अद्भुत था—उनका ऊपरी शरीर मनुष्य का था, लेकिन उनका निचला शरीर हिरण के समान था।
पुरुषमृगा ऋषि को बुलाने का उत्तरदायित्व भीम को सौंपा गया
यज्ञ को संपन्न कराने के लिए जब विभिन्न ऋषियों को आमंत्रित किया जाने लगा, तब यह निर्णय हुआ कि पुरुषमृगा ऋषि को भी बुलाया जाए। वे अत्यंत सिद्ध तपस्वी थे और उनकी गति इतनी तीव्र थी कि कोई भी उनसे स्पर्धा नहीं कर सकता था। उनके पास जाने और उन्हें आमंत्रित करने का कार्य भीम को सौंपा गया, क्योंकि वे बलशाली और साहसी थे।
भीम जैसे ही उनके आमंत्रण के लिए जाने लगे, श्रीकृष्ण ने उन्हें सावधान किया—
"भीम! पुरुषमृगा ऋषि अत्यंत तेज गति से दौड़ सकते हैं। यदि वे तुमसे शर्त रख दें कि जो पहले पहुंचेगा, वही विजेता होगा, तो तुम पराजित हो सकते हो। सावधान रहना, अन्यथा वे तुम्हें मार सकते हैं।"
श्रीकृष्ण की यह चेतावनी सुनकर भीम कुछ चिंतित हुए, परंतु अपने कर्तव्य को निभाने के लिए वे हिमालय की ओर चल पड़े।
भीम और हनुमानजी की भेंट
जब भीम हिमालय के जंगलों से गुजर रहे थे, तभी उनकी भेंट हनुमानजी से हुई।
हनुमानजी ने उनसे पूछा—
"भीम, तुम इतने चिंतित क्यों दिख रहे हो?"
भीम ने पूरी घटना बताई कि उन्हें पुरुषमृगा ऋषि को यज्ञ में आमंत्रित करने जाना है, परंतु उनकी गति अत्यंत तीव्र है और यदि वे शर्त रखते हैं, तो उनसे आगे निकल पाना असंभव हो जाएगा।
हनुमानजी ने यह सुनकर कहा—
"यह सत्य है कि पुरुषमृगा ऋषि बहुत तेज गति से दौड़ सकते हैं। यदि वे तुमसे दौड़ में प्रतिस्पर्धा करेंगे, तो तुम उनसे जीत नहीं सकोगे। परंतु एक उपाय है जिससे उनकी गति को मंद किया जा सकता है।"
"वे भगवान शिव के परम भक्त हैं, और उनकी एक विशेषता यह है कि यदि वे मार्ग में कोई शिवलिंग देखें, तो उनकी पूजा किए बिना आगे नहीं बढ़ते। यदि तुम्हारे मार्ग में कई शिवलिंग स्थापित कर दिए जाएं, तो वे प्रत्येक शिवलिंग की पूजा करने रुकेंगे और इससे तुम्हें आगे बढ़ने का समय मिल जाएगा।"
इसके बाद हनुमानजी ने भीम को अपने तीन केश (बाल) दिए और कहा—
"जब भी तुम्हें लगे कि पुरुषमृगा तुम्हें पकड़ने वाले हैं, तो तुम इन बालों में से एक को गिरा देना। यह बाल 1000 शिवलिंगों में परिवर्तित हो जाएगा। पुरुषमृगा अपने स्वभाव के अनुसार प्रत्येक शिवलिंग की पूजा करेंगे और इस दौरान तुम आगे निकल जाना।"
भीम ने हनुमानजी को प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद लेकर आगे बढ़ गए।
पुरुषमृगा ऋषि से भेंट और शर्त
कुछ दूर जाने पर भीम को पुरुषमृगा ऋषि मिले। वे भगवान शिव की स्तुति में ध्यानमग्न थे। भीम ने उन्हें प्रणाम किया और अपने आने का उद्देश्य बताया।
पुरुषमृगा ऋषि ने कहा—
"मैं तुम्हारे साथ यज्ञ में अवश्य चलूंगा, किंतु इसके लिए तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी।"
भीम ने पूछा—
"मुनिवर! आपकी क्या शर्त है?"
पुरुषमृगा ऋषि ने उत्तर दिया—
"तुम्हें मुझसे पहले हस्तिनापुर पहुंचना होगा। यदि तुम मुझसे पहले पहुंच गए, तो मैं यज्ञ में भाग लूंगा। यदि तुम हार गए, तो मैं तुम्हें खा जाऊंगा।"
भीम ने अपने भाई की इच्छा को ध्यान में रखते हुए हां कर दी और हस्तिनापुर की ओर पूरी शक्ति से दौड़ पड़े।
हनुमानजी के बालों का चमत्कार
भीम पूरी गति से भाग रहे थे, लेकिन जब उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, तो पुरुषमृगा ऋषि उनसे केवल कुछ ही कदम पीछे थे। भीम भयभीत हो गए और तभी हनुमानजी के दिए बालों की याद आई।
उन्होंने तुरंत एक बाल गिरा दिया। गिरते ही वह 1000 शिवलिंगों में परिवर्तित हो गया।
पुरुषमृगा ऋषि भगवान शिव के परम भक्त थे, अतः वे हर शिवलिंग के समक्ष रुककर उनकी पूजा करने लगे। इस दौरान भीम तेजी से आगे बढ़ गए।
भीम ने ऐसा तीन बार किया और प्रत्येक बार पुरुषमृगा ऋषि पूजा में व्यस्त हो जाते, जिससे भीम को आगे निकलने का अवसर मिल जाता।
हस्तिनापुर के द्वार पर न्याय
जब भीम हस्तिनापुर के द्वार में प्रवेश करने ही वाले थे, तभी पुरुषमृगा ऋषि ने उन्हें पकड़ लिया।
हालांकि, भीम ने छलांग लगा दी थी, जिससे उनका शरीर द्वार के अंदर चला गया, लेकिन उनके पैर द्वार के बाहर रह गए।
पुरुषमृगा ऋषि ने कहा—
"मैंने शर्त के अनुसार भीम को पकड़ लिया है, अब मैं इन्हें खा सकता हूं।"
इस पर श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर वहाँ पहुँचे। पुरुषमृगा ऋषि ने युधिष्ठिर से न्याय करने को कहा।
युधिष्ठिर ने कहा—
"भीम का संपूर्ण शरीर हस्तिनापुर में प्रवेश कर चुका है, केवल उनके पैर बाहर रह गए हैं। इसलिए न्याय के अनुसार, आप केवल उनके पैर खाने के अधिकारी हैं।"
युधिष्ठिर के इस न्यायपूर्ण निर्णय से पुरुषमृगा ऋषि अत्यंत प्रसन्न हो गए। उन्होंने भीम को क्षमा कर दिया और राजसूय यज्ञ में भाग लिया तथा पांडवों को आशीर्वाद दिया।
इस कथा से मिलने वाली सीख
- हनुमानजी की कृपा अपरंपार है – जब भी संकट आए, यदि व्यक्ति सच्चे हृदय से भक्ति करे और ईश्वर पर भरोसा रखे, तो उसे मार्ग अवश्य मिलेगा।
- बुद्धिमत्ता और रणनीति से भी जीत संभव है – केवल बल ही नहीं, चतुराई और सही रणनीति भी विजय का मार्ग प्रशस्त करती है।
- धर्म और न्याय का महत्व – युधिष्ठिर का न्याय सिद्ध करता है कि न्यायप्रियता सबसे बड़ी शक्ति है।
- आत्मसंयम और भक्ति का महत्व – पुरुषमृगा ऋषि का चरित्र यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति के मार्ग पर चलते हुए व्यक्ति को हर परिस्थिति में भगवान का स्मरण करना चाहिए।
🚩 जय श्रीराम! जय बजरंगबली! 🚩
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