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माँ नर्मदा जन्मोत्सव विशेष: धार्मिक महत्व, शास्त्रीय सन्दर्भ, पौराणिक कथा और नर्मदा स्तोत्र सहित

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माँ नर्मदा जन्मोत्सव विशेष: धार्मिक महत्व, शास्त्रीय सन्दर्भ, पौराणिक कथा और नर्मदा स्तोत्र सहित, भागवत दर्शन, सूरज कृष्ण शास्त्री, जयंती, जन्मोत्सव।

माँ नर्मदा जन्मोत्सव विशेष: धार्मिक महत्व, शास्त्रीय सन्दर्भ, पौराणिक कथा और नर्मदा स्तोत्र सहित
माँ नर्मदा जन्मोत्सव विशेष: धार्मिक महत्व, शास्त्रीय सन्दर्भ, पौराणिक कथा और नर्मदा स्तोत्र सहित


माँ नर्मदा जन्मोत्सव विशेष: धार्मिक महत्व, शास्त्रीय सन्दर्भ, पौराणिक कथा और नर्मदा स्तोत्र सहित

भारतीय पंचाग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन हर वर्ष नर्मदा जयंती महोत्सव मनाया जाता है। मां नर्मदा के जन्मस्थान अमरकंटक में ये उत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। जनवरी माह में मकर संक्रांति के त्योहार के बाद नर्मदा जयंती उत्सव मनाया जाता है। भारत में सात धार्मिक नदियां हैं जिसमें से मां नर्मदा को भगवान शिव ने देवताओं के पाप धोने के लिए उत्पन्न किया था। माना जाता है कि इसके पवित्र जल में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। नर्मदा महोत्सव को हिंदुओं द्वारा पर्व के रुप में मनाया जाता है। 

माँ नर्मदा धार्मिक महत्त्व

महाभारत और रामायण ग्रंथों में इसे “रेवां” के नाम से पुकारा गया है, अत: यहाँ के निवासी इसे गंगा से भी पवित्र मानते हैं. लोग ऐसा मानते हैं कि साल में एक बार गंगा स्वयम् एक काली गाय के रूप में आकर इसमें स्नान करती एवं अपने पापों से मुक्त हो श्वेत होकर लौटती है.

नर्मदा, समूचे विश्व मे दिव्य व रहस्यमयी नदी है, इसकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है. इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकण्टक के मैकल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा 12 वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया. महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया. इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में 10000 दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है।

प्रलय में भी मेरा नाश न हो. मैं विश्व में एकमात्र पाप-नाशिनी प्रसिद्ध होऊं. मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो. विश्व में हर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है. कई लोग जो इस रहस्य को नहीं जानते वे दूसरे पाषाण से निर्मित शिवलिंग स्थापित करते हैं ऐसे शिवलिंग भी स्थापित किये जा सकते हैं परन्तु उनकी प्राण-प्रतिष्ठा अनिवार्य है. जबकि श्री नर्मदेश्वर शिवलिंग बिना प्राण के पूजित है।

अकाल पड़ने पर ऋषियों द्वारा तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य नदी नर्मदा 12 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई तब ऋषियों ने नर्मदा की स्तुति की. तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे (नर्मदा के) तट पर देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही प्रभु शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है।

ग्रंथों में नर्मदा का उल्लेख

रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं. पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था. गुप्तकालीन अमरकोश में भी नर्मदा को ‘सोमोद्भवा’ कहा है. कालिदास ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है. रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है. मेघदूत में रेवा या नर्मदा का सुन्दर वर्णन है।

गंगा हरिद्वार तथा सरस्वती कुरुक्षेत्र में अत्यंत पुण्यमयी कही गई है, किन्तु नर्मदा चाहे गाँव के बगल से बह रही हो या जंगल के बीच से, वे सर्वत्र पुण्यमयी हैं।

सरस्वती का जल तीन दिनों में, यमुनाजी का एक सप्ताह में तथा गंगाजी का जल स्पर्श करते ही पवित्र कर देता है, किन्तु नर्मदा का जल केवल दर्शन मात्र से पावन कर देता है।

नर्मदा में स्नान से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है. प्रात:काल उठकर नर्मदा का कीर्तन करता है, उसका सात जन्मों का किया हुआ पाप उसी क्षण नष्ट हो जाता है. नर्मदा के जल से तर्पण करने पर पितरोंको तृप्ति और सद्गति प्राप्त होती है. नर्मदा में स्नान करने, गोता लगाने, उसका जल पीने तथा नर्मदा का स्मरण एवं कीर्तन करने से अनेक जन्मों के घोर पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं. नर्मदा समस्त सरिताओं में श्रेष्ठ है. वे सम्पूर्ण जगत् को तारने के लिये ही धरा पर अवतीर्ण हुई हैं. इनकी कृपा से भोग और मोक्ष, दोनो सुलभ हो जाते हैं।

नर्मदा में प्राप्त होने वाले लिंग (नर्मदेश्वर) का महत्त्व 

हिन्दू धर्म के विभिन्न शास्त्रों तथा धर्मग्रंथों के अनुसार माँ नर्मदा को यह वरदान प्राप्त था की नर्मदा का हर बड़ा या छोटा पाषण (पत्थर) बिना प्राण प्रतिष्ठा किये ही शिवलिंग के रूप में सर्वत्र पूजित होगा अतः नर्मदा के हर पत्थर को नर्मदेश्वर महादेव के रूप में घर में लाकर सीधे ही पूजा अभिषेक किया जा सकता है।

धर्मग्रन्थों में नर्मदा में प्राप्त होने वाले लिंग (नर्मदेश्वर) की बडी महिमा बतायी गई है। नर्मदेश्वर (लिंग) को स्वयंसिद्ध शिवलिंग माना गया है। इनकी प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होती। आवाहन किए बिना इनका पूजन सीधे किया जा सकता है कल्याण के शिवपुराणांक में वर्तमान श्री विश्वेश्वर-लिंग को नर्मदेश्वर लिङ्ग बताया गया है मेरुतंत्रके चतुर्दश पटल में स्पष्ट लिखा है कि नर्मदेश्वरके ऊपर चढे हुए सामान को ग्रहण किया जा सकता है। शिव-निर्माल्य के रूप उसका परित्याग नहीं किया जाता। बाणलिङ्ग (नर्मदेश्वर) के ऊपर निवेदित नैवेद्य को प्रसाद की तरह खाया जा सकता है। इस प्रकार नर्मदेश्वर गृहस्थों के लिए सर्वश्रेष्ठ शिवलिंग है। नर्मदा का लिङ्ग भुक्ति और मुक्ति, दोनों देता है। नर्मदा के नर्मदेश्वरअपने विशिष्ट गुणों के कारण शिव-भक्तों के परम आराध्य हैं। भगवती नर्मदा की उपासना युगों से होती आ रही हैं।

नर्मदा जन्मोत्सव की पौराणिक कथा

माना जाता है कि एक बार देवताओं ने अंधकासुर नाम के राक्षस का विनाश किया और उस वध में देवताओं ने कई पाप किए। इस स्थिति के चलते भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी सभी देवताओं के साथ भगवान शिव के पास गए। उस समय भगवान शिव तपस्या में लीन थे। देवताओं ने उनसे अनुरोध किया कि प्रभु राक्षसों का वध करते हुए हम भी पाप के भागीदारी हो गए हैं। हमारे पापों का नाश करने का कोई उपाए सुझाएं। भगवान शिव की आराधना खत्म होती है और जैसी ही वो अपने नेत्र खोलते हैं तभी उनकी भौओं से एक प्रकाशमय बिंदु पृथ्वी पर अमरकंटक के मैखल पर्वत पर गिरता है और वहां एक कन्या ने जन्म लिया। वह कन्या बहुत ही रुपवान होती है, इस कारण से भगवान विष्णु और अन्य देव उस कन्या का नाम नर्मदा रखते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव ने देवों के पाप धोने के लिए नर्मदा को उत्पन्न किया था।

 एक अन्य कथा के अनुसार माना जाता है कि उत्तर में बहने वाली गंगा के तट पर नर्मदा ने कई सालों तक भगवान शिव की आराधना की थी। भगवान शिव उनकी आराधना से प्रसन्न होकर वरदान देते हैं जो अन्य किसी नदी को प्राप्त नहीं हैं। नर्मदा ने भगवान शिव से वरदान मांगा कि मेरा नाश किसी भी परिस्थिति में नहीं हो चाहे प्रलय क्यों नहीं आ जाए, मैं पृथ्वी पर एक मात्र ऐसी नदी रहूं जो पापों का नाश करे। मेरा हर पत्थर बिना किसी प्राण प्रतिष्ठा के भी पूजनीय हो, मेरे तट पर सभी देवताओं का निवास रहे। इस कारण से नर्मदा का कभी विनाश नहीं होता, वो सभी के पापों को हरने वाली नदी मानी जाती है। इस नदी के पत्थरों को कई मंदिर में शिवलिंग के रुप में स्थापित किया गया है। इस नदी में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है।

श्री नर्मदा अष्टक स्तोत्र

अथ श्री नर्मदाष्टकम


सविन्दु सिन्धु-सुस्खलत्तरंगभंगरंजितं

द्विषत्सु पापजातजात करिवारी संयुतं ।

कृतांतदूत कालभूत भीतिहारी वर्मदे,

त्वदीय पादपंकजं नमामि देवि नर्मदे ।।1।।

अर्थ 👉 (अंत – समय मे ) यम-दूतों तथा (सर्वदा) कल-भूतों के भय का हरण करके, रक्षा करनेवाली, हे माँ नर्मदा देवि ! अपने जल-कणों द्वारा समुद्र की उछलती हुई लहरों में रोचक दृश्य उत्पन्न करने वाले तथा शत्रुओं के भी पाप-समुदाय को नाश करने वाले, निर्मल जल-सहित आपके चरण कमलों को में नमस्कार करता हूँ ॥1॥

त्वदंबु लीनदीन मीन दिव्य संप्रदायकं,

कलौ मलौघभारहारि सर्वतीर्थनायकं ।

सुमत्स्य, कच्छ, नक्र, चक्र, चक्रवाक शर्मदे,

त्वदीय पादपंकजं नमामि देवि नर्मदे ।।2।।

अर्थ : 👉 मत्स्य (मछ्ली), कच्छ (कछुआ), नक्र (मगर) इत्यादि जल-जींव-समुदाय, तथा चक्रवाक (चकई-चकवा) आदि पक्षी-समुदाय को सुख देनेवाली हे नर्मदा जी ! आपके जल मे मग्न रहनेवाले दीन-दु:खी मतस्यों को दिव्य (स्वर्ग) पद देनेवाले, तथा इस कलियुग के पापपुजरूपी भार को हारनेवाली, और सर्व तीर्थों (जालों) मे श्रेष्ठ ऐसे जल-युक्त आपके चरणकमलों को मै प्रणाम करता हूँ ।।2।।

महागभीर नीरपूर – पापधूत भूतलं,

ध्वनत् समस्त पातकारि दारितापदाचलम् ।

जगल्लये महाभये मृकंडुसूनु – हर्म्यदे,

त्वदिय पादपंकजं नमामि देवि नर्मदे ॥3॥

अर्थ 👉 महान भयंकर संसार के प्रलय में मार्कण्डेय ऋषि को आश्रय देनेवाली, हे नर्मदा देवि ! अत्यंत गंभीर जल के प्रवाह द्वारा पृथ्वी-तल के पापों को धोनेवाले, तथा अपने कलकल शब्दों द्वारा समस्त पातकों को नाश करने वाले तथा संकटों के पर्वतों को विदीर्ण करने वाले, ऐसे आपके जलयुक्त चरण – कमलों को मै प्रणाम करता हूँ ॥3॥

गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा,

मृकण्डुसूनु शौनकासुरारिसेवितं सदा।

पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दु:ख वर्मदे,

त्वदिय पादपंकजं नमामि देवि नर्मदे ॥4॥

अर्थ 👉 मार्कण्डेय, शौनक, तथा देवताओं से निरंतर सेवन किए गए,आपके जल को जिस समय मैंने देखा, उसी समय मेरे जन्म-मरण-रूप दु:ख और संसार-सागर मे उत्पन्न हुए समस्त भय भाग गए । संसाररूपी समुद्र के दु:खों से मुक्त करेने वाली, हे नर्मदा जी ! आपके चरणकमलों को मै प्रणाम करता हूँ ॥4॥

अलक्ष्य-लक्ष किन्नरामरासुरादि पूजितं,

सुलक्ष नीरतीर – धीरपक्षी लक्षकूजितं।

वशिष्ठ शिष्ट पिप्पलादि कर्दमादि शर्मदे,

त्वदिय पादपंकजं नमामि देवि नर्मदे ॥5॥

अर्थ 👉 वसिष्ठ ऋषि, श्रेष्ठ पिप्पलाद ऋषि, तथा कर्दम आदि ऋषियों को सुख देने वाली, हे माँ नर्मदा देवि ! अदृश्य लाखों किन्नरों (देवयोनि विशेष ), देवताओं, तथा मनुष्यों से पूजन किए गए, और प्रत्यक्ष आपके जल के किनारे निवास करने वाले लाखों पक्षियों से कूजित (किलकिलाहट) किए गए, आपके चरण कमलों को मे प्रणाम करता हूँ॥5॥

सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपादि षट्पदैः

घृतंस्वकीय मानसेषु नारदादि षट्पदै: ।

रविंदु रंतिदेव देवराज कर्म शर्मदे,

त्वदिय पादपंकजं नमामि देवि नर्मदे ॥6॥

अर्थ 👉 सूर्य, चन्द्र, रविन्तदेव, और इंद्रादि देवताओं को सुख देनेवाली, हे माँ नर्मदा जी ! सनत्कुमार नाचिकेत, कस्यप, आत्रि, तथा नारदादि ऋषिरूप जो भ्रमर उनसे अपने-अपने मन मैं धारण किए गए, ऐसे आपके चरण कमलों को मैं बार-बार प्रणाम करता हूँ ॥6॥

अलक्ष्यलक्ष्य लक्ष पाप लक्ष सार सायुधं,

ततस्तु जीव जन्तु-तन्तु भुक्ति मुक्तिदायकम्।

विरंचि विष्णु शंकर स्वकीयधाम वर्मदे,

त्वदिय पादपंकजं नमामि देवि नर्मदे ॥7॥

अर्थ 👉 ब्रह्मा, विष्णु, तथा इनको अपना-अपना पद (सामर्थ्य तथा स्थान) देनेवाली, हे माँ नर्मदा देवि ! जिनकी गणना करने को मन भी नहीं पहुचता, ऐसे असंख्य पापों को नाश करने के लिए प्रबल आयुध (तीक्ष्णा तलवार) के समान, तथा आपके किनारे पर रहनेवाले जीव ( बड़े-बड़े प्राणी) जन्तु (छोटे प्राणी) तन्तु (लता-वीरुध) अर्थात् स्थावर-जंगल समस्त प्राणियों को इस लोक का सुख तथा परलोक (मुक्ति) का सुख देनेवाले, ऐसे आपके चरणकमलों को मै प्रणाम करता हूँ ॥7॥

अहोमृतं स्वनं श्रुतं महेशकेशजातटे,

किरात-सूत वाडवेषु पंडिते शठे-नटे ।

दुरन्त पाप-तापहारि सर्वजन्तु शर्मदे,

त्वदिय पादपंकजं नमामि देवि नर्मदे ॥8॥

अर्थ 👉 अहह ! शंकर जी की जटाओं से उत्पन्न रेवा जी के किनारे मैंने अमृत के समान आनंददायक कलकल शब्द सुना, समस्त जाति के प्राणियों को सुख देनेवाली, हे माँ नर्मदा जी ! किरात (भील) सूत ( भाट ) बाडव (ब्राह्मण) पंडित (विद्वान) शठ (धूर्त) और नट, इनके अनंत पाप पुंजों के तापों को हरण करनेवाली, ऐसे आपके चरण कमलों को मै प्रणाम करता हूँ ॥8॥

इदं तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा,

पठंति ते निरंतरं न यान्ति दुर्गतिं कदा ।

सुलभ्य देह दुर्लभं महेशधाम गौरवं,

पुनर्भवा नरा न वै विलोकयन्ति रौरवम् ॥9॥

अर्थ 👉 जो भी इस नर्मदाष्टक का प्रति-दिन तीन कल ( प्रात:, सायं, मध्यान्ह) मे पाठ करते है, वे कभी भी दुर्गति को नहीं प्राप्त होते, तथा अन्य लोकों को दुर्लभ ऐसे सुंदर शरीर धरण का कर शिवलोक को गमन करते है, तथा इस लोक मे सुख पाते है और पुनर्जन्म के बंधन से छूट कर कभी भी रौरवादि नरकों को नहीं देखते ॥9॥

इति श्रीनर्मदाष्टकम सम्पूर्णम्


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भागवत दर्शन: माँ नर्मदा जन्मोत्सव विशेष: धार्मिक महत्व, शास्त्रीय सन्दर्भ, पौराणिक कथा और नर्मदा स्तोत्र सहित
माँ नर्मदा जन्मोत्सव विशेष: धार्मिक महत्व, शास्त्रीय सन्दर्भ, पौराणिक कथा और नर्मदा स्तोत्र सहित
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