किशोर और वयस्क शिक्षार्थियों की विशेषताएँ एवं उनकी अपेक्षाएँ: एक व्यापक विश्लेषण, PAPER I,POINT II,UNIT I,प्रश्नोत्तरी,UGC NET/JRF.
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किशोर और वयस्क शिक्षार्थियों की विशेषताएँ एवं उनकी अपेक्षाएँ: एक व्यापक विश्लेषण |
किशोर और वयस्क शिक्षार्थियों की विशेषताएँ एवं उनकी अपेक्षाएँ: एक व्यापक विश्लेषण
परिचय
शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया में शिक्षार्थियों की आयु, मानसिक विकास, सामाजिक परिस्थितियाँ और व्यक्तिगत भिन्नताएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। किशोर और वयस्क शिक्षार्थियों की आवश्यकताएँ भिन्न होती हैं, इसलिए प्रभावी शिक्षण के लिए उनकी विशेषताओं को समझना आवश्यक है।
1. किशोर शिक्षार्थी की विशेषताएँ और अपेक्षाएँ
किशोरावस्था (12-18 वर्ष) एक परिवर्तनशील अवस्था होती है, जिसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास तीव्र गति से होता है। इस चरण में शिक्षार्थी अपने व्यक्तित्व, आत्म-चेतना और सामाजिक संबंधों का निर्माण करते हैं।
(i) शैक्षिक विशेषताएँ एवं अपेक्षाएँ
- तर्कशीलता और जिज्ञासा – किशोर शिक्षा में जिज्ञासा रखते हैं और तर्क द्वारा ज्ञान को समझने की कोशिश करते हैं। वे ‘क्यों’ और ‘कैसे’ पर अधिक ध्यान देते हैं।
- कार्यपरक (Practical) शिक्षा की ओर रुचि – वे सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक शिक्षा की अपेक्षा रखते हैं, जिससे वे वास्तविक जीवन की समस्याओं का समाधान कर सकें।
- अलग-अलग अधिगम शैलियाँ – कुछ किशोर दृश्य (visual), कुछ श्रव्य (auditory) और कुछ स्पर्शात्मक (kinesthetic) तरीके से बेहतर सीखते हैं।
- प्रेरणा की आवश्यकता – किशोरों को प्रेरित करने के लिए रोचक गतिविधियाँ, खेल, प्रायोगिक कार्य और प्रतियोगिताएँ आवश्यक होती हैं।
- सहकर्मी प्रभाव (Peer Influence) – किशोर अपने साथियों से बहुत प्रभावित होते हैं, इसलिए समूह-आधारित शिक्षा (Collaborative Learning) उनके लिए प्रभावी होती है।
- शिक्षक के साथ संवाद – वे ऐसे शिक्षकों को पसंद करते हैं जो उनके साथ मित्रवत व्यवहार करें और उनकी भावनाओं को समझें।
(ii) सामाजिक और भावनात्मक विशेषताएँ एवं अपेक्षाएँ
- स्वयं की पहचान विकसित करना – किशोर अपने आत्म-सम्मान और आत्म-छवि को लेकर संवेदनशील होते हैं। वे अपनी सामाजिक स्थिति और भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं।
- समूह में स्वीकार्यता की भावना – वे दोस्तों और साथियों के समूह में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। वे सहयोगी और प्रतिस्पर्धी दोनों तरह की गतिविधियों में भाग लेना पसंद करते हैं।
- भावनात्मक अस्थिरता – इस उम्र में मूड में तेजी से बदलाव होते हैं। इसलिए, शिक्षक को धैर्य और समझदारी से व्यवहार करना चाहिए।
- प्रशंसा और समर्थन की आवश्यकता – किशोरों को प्रोत्साहन और सकारात्मक प्रतिक्रिया की जरूरत होती है ताकि वे आत्म-विश्वास के साथ आगे बढ़ सकें।
(iii) संज्ञानात्मक विशेषताएँ एवं अपेक्षाएँ
- संकल्पना (Concept Formation) – किशोर अमूर्त (Abstract) और जटिल अवधारणाओं को समझने में सक्षम होते हैं, लेकिन उन्हें इसे वास्तविक जीवन से जोड़कर समझाने की जरूरत होती है।
- आलोचनात्मक और तार्किक सोच – वे केवल रटने के बजाय ज्ञान के तार्किक विश्लेषण को प्राथमिकता देते हैं।
- निर्णय लेने की क्षमता विकसित होना – किशोरों में धीरे-धीरे स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है, लेकिन वे अभी भी मार्गदर्शन चाहते हैं।
- अनुभवों से सीखना – वे अपनी सफलताओं और असफलताओं से सीखने लगते हैं और इनसे अपनी भविष्य की रणनीति तय करते हैं।
(iv) व्यक्तिगत भिन्नताएँ
- मनोवैज्ञानिक भिन्नताएँ – कुछ किशोर स्वाभाविक रूप से आत्मविश्वासी होते हैं, जबकि कुछ झिझकते हैं।
- सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि – पारिवारिक स्थिति, आर्थिक स्तर और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि उनके सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है।
- रुचियों में भिन्नता – कुछ किशोर विज्ञान में रुचि रखते हैं, कुछ कला में, और कुछ खेलकूद में। उनकी रुचियों के अनुसार शिक्षण को अनुकूलित करना आवश्यक है।
2. वयस्क शिक्षार्थी की विशेषताएँ और अपेक्षाएँ
वयस्क शिक्षार्थी (18 वर्ष से अधिक) किशोरों से अलग होते हैं क्योंकि उनके पास अधिक अनुभव, जिम्मेदारियाँ और व्यावहारिक ज्ञान होता है। वे सीखने के प्रति अधिक आत्मनिर्भर और उद्देश्यपरक होते हैं।
(i) शैक्षिक विशेषताएँ एवं अपेक्षाएँ
- स्व-निर्देशित शिक्षा (Self-Directed Learning) – वयस्क अपने सीखने की प्रक्रिया को स्वयं नियंत्रित करना पसंद करते हैं और अपने अनुभवों के आधार पर नई जानकारी ग्रहण करते हैं।
- उद्देश्यपरक शिक्षा – वे केवल ज्ञान प्राप्ति के लिए नहीं, बल्कि अपने करियर, व्यवसाय, या व्यक्तिगत विकास के लिए सीखना चाहते हैं।
- अधिगम में लचीलापन (Flexibility) – वे काम और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखते हैं, इसलिए वे लचीले पाठ्यक्रम और ऑनलाइन शिक्षा की ओर आकर्षित होते हैं।
- प्रायोगिक (Experiential) शिक्षण – वे सैद्धांतिक ज्ञान की तुलना में व्यावहारिक और अनुभवजन्य शिक्षा को अधिक महत्व देते हैं।
- समस्या-आधारित शिक्षण (Problem-Based Learning) – वे ऐसे पाठ्यक्रम पसंद करते हैं जो उनकी वास्तविक जीवन की समस्याओं का समाधान प्रदान कर सके।
(ii) सामाजिक और भावनात्मक विशेषताएँ एवं अपेक्षाएँ
- आत्म-सम्मान और आत्म-प्रेरणा – वयस्क शिक्षार्थी अपनी शिक्षा को आत्म-सम्मान से जोड़ते हैं, इसलिए उन्हें प्रोत्साहन और सम्मानजनक वातावरण चाहिए।
- स्वायत्तता की आवश्यकता – वे चाहते हैं कि उन्हें स्वतंत्र रूप से सोचने, प्रश्न करने और अपनी राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता मिले।
- सहयोगात्मक शिक्षा (Collaborative Learning) – वे अपने सहपाठियों और प्रशिक्षकों से अनुभव साझा करना पसंद करते हैं।
- शिक्षक को मार्गदर्शक के रूप में देखना – वे शिक्षक को ज्ञान के स्रोत के बजाय एक मार्गदर्शक (Mentor) के रूप में देखना पसंद करते हैं।
(iii) संज्ञानात्मक विशेषताएँ एवं अपेक्षाएँ
- व्यावहारिक ज्ञान की प्राथमिकता – वे केवल सैद्धांतिक ज्ञान के बजाय ऐसे कौशल सीखना चाहते हैं जो उनके कार्य और जीवन में सीधे उपयोगी हों।
- आलोचनात्मक सोच और समस्या समाधान – वे जटिल समस्याओं को हल करने में रुचि रखते हैं और अपने पूर्व अनुभवों को नई जानकारी से जोड़ते हैं।
- धीमी सीखने की प्रक्रिया – कुछ वयस्क शिक्षार्थियों को नई चीजें सीखने में किशोरों की तुलना में अधिक समय लग सकता है, खासकर यदि वे लंबे समय से शिक्षा प्रणाली से बाहर रहे हों।
(iv) व्यक्तिगत भिन्नताएँ
- शैक्षिक पृष्ठभूमि में विविधता – कुछ वयस्क उच्च शिक्षित होते हैं, जबकि कुछ के पास सीमित शिक्षा होती है, जिससे उनकी सीखने की गति अलग हो सकती है।
- तकनीकी ज्ञान की भिन्नता – कुछ शिक्षार्थी नई तकनीकों और डिजिटल उपकरणों को आसानी से अपना लेते हैं, जबकि कुछ को इसके लिए अधिक सहायता की आवश्यकता होती है।
- प्रेरणा के स्रोत अलग-अलग हो सकते हैं – कुछ करियर उन्नति के लिए सीखते हैं, कुछ व्यक्तिगत रुचि के लिए, और कुछ समाज में योगदान देने के लिए।
निष्कर्ष
किशोर और वयस्क शिक्षार्थियों की विशेषताएँ और अपेक्षाएँ भिन्न होती हैं। शिक्षकों को इनके अनुरूप शिक्षण पद्धतियाँ अपनानी चाहिए ताकि अधिगम प्रक्रिया अधिक प्रभावी हो और शिक्षार्थियों को उनकी आवश्यकतानुसार मार्गदर्शन मिल सके।
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