अध्यात्म: प्रभु का पत्र, कोई बात नहीं, मैं धैर्य रखूँगा। शायद कल तुम मुझे याद करो। भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री।
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अध्यात्म: प्रभु का पत्र |
अध्यात्म: प्रभु का पत्र
यह पत्र बहुत ही संवेदनशील और हृदयस्पर्शी है, जो हमें आत्मचिंतन करने पर मजबूर करता है। इसे और अधिक प्रभावी, व्यवस्थित और साहित्यिक रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है ताकि इसका प्रभाव और गहरा हो। यहाँ इसका पुनर्लेखन किया गया है:
प्रभु का पत्र
प्रिय आत्मन,
आज सुबह जैसे ही तुम नींद से जागे, मैं वहीं तुम्हारे पास खड़ा था। मेरी आशा थी कि तुम मुझसे कुछ बात करोगे, बीते दिनों में मिली खुशियों के लिए मुझे धन्यवाद दोगे, या कम से कम एक नज़र मेरी ओर डालोगे। लेकिन तुम तो जल्दी-जल्दी उठे, चाय पी और दिनभर की तैयारियों में व्यस्त हो गए—मुझे देखना तो दूर, मेरा स्मरण भी नहीं किया।
फिर मैंने सोचा, स्नान के समय तो तुम मुझे याद करोगे। लेकिन वहाँ भी तुम्हारा मन इस उलझन में पड़ा रहा कि आज कौन-से कपड़े पहनने हैं!
नाश्ते के दौरान, जब तुम ऑफिस जाने की तैयारी में इधर-उधर भाग रहे थे, मैंने फिर से आशा की कि शायद अब तुम मुझे याद करोगे। लेकिन तुम्हारी व्यस्तता ने तुम्हें मेरे विचार से कोसों दूर कर दिया।
जब तुमने ट्रेन पकड़ी, तब मुझे लगा कि इस यात्रा के कुछ क्षण तुम मेरे साथ बिताओगे। लेकिन तुमने अख़बार खोल लिया और फिर मोबाइल में व्यस्त हो गए। मैं वहाँ भी खड़ा तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहा…
दोपहर के भोजन के समय, जब तुम कुछ क्षणों के लिए इधर-उधर देख रहे थे, मैंने सोचा कि शायद अब तुम्हें मेरी याद आएगी। लेकिन तुमने जल्दी-जल्दी खाना खाया और फिर अपने कामों में लग गए।
शाम को घर लौटने के बाद, तुम्हारे पास पर्याप्त समय था। लेकिन वह समय भी रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारियों और टीवी देखने में बीत गया। फिर रात को तुम बिस्तर पर आए, परिवार को शुभरात्रि कहा, और थककर सो गए।
मैं सारा दिन तुम्हारे साथ था—हर क्षण, हर घड़ी। तुम्हें पुकारना चाहता था, तुम्हारे मन की उलझनों को सुलझाना चाहता था, तुम्हें यह बताना चाहता था कि यदि तुम दिन का एक अंश भी मेरे साथ व्यतीत करो, तो तुम्हारे सभी कार्य सहज हो जाएंगे। लेकिन तुमने एक पल के लिए भी मेरी ओर ध्यान नहीं दिया।
फिर भी, मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। मैं हर दिन प्रतीक्षा करता हूँ कि तुम मुझे याद करोगे, अपनी छोटी-छोटी खुशियों के लिए मुझे धन्यवाद कहोगे। पर तुम केवल तब आते हो, जब तुम्हें कुछ चाहिए होता है—वह भी जल्दबाज़ी में, बिना मेरी ओर देखे, बिना मुझसे मन से जुड़े।
कोई बात नहीं, मैं धैर्य रखूँगा। शायद कल तुम मुझे याद करो, मुझसे संवाद करो, मेरे सान्निध्य में कुछ समय बिताओ। मुझे तुम पर विश्वास है—आखिरकार, मेरा ही दूसरा नाम "आस्था" और "विश्वास" है।
तुम्हारा ईश्वर
"प्रभु सबका कल्याण करें।"
यह प्रस्तुति सरल, भावनात्मक और व्यवस्थित रूप से लिखी गई है, जिससे पाठक को आत्मचिंतन का अवसर मिले। क्या आपको यह पसंद आया?
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