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भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर में दर्शन करते समय यह अवश्य ध्यान रखें
जब भी हम श्रीकृष्ण के मंदिर में जाते हैं, हमें उनके दर्शन श्रद्धा और नियमों के अनुसार करने चाहिए। हिंदू धर्म में मूर्तियों की आराधना और दर्शन की एक विशेष पद्धति होती है, जिसे शास्त्रों में वर्णित किया गया है। विशेष रूप से श्रीकृष्ण के संबंध में एक महत्वपूर्ण मान्यता यह है कि कभी भी उनकी मूर्ति की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए।
इसके पीछे एक गूढ़ कथा जुड़ी हुई है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण और राक्षस कालयवन के बीच हुई घटना से संबंधित है। इस कथा के माध्यम से यह समझा जा सकता है कि श्रीकृष्ण की पीठ के दर्शन क्यों वर्जित माने जाते हैं और इसका आध्यात्मिक अर्थ क्या है।
कालयवन और श्रीकृष्ण की कथा
द्वारका के यादवों को बार-बार जरासंध के आक्रमणों का सामना करना पड़ रहा था। जब जरासंध ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए कालयवन नामक असुर को सहायता के लिए बुलाया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने एक विशेष रणनीति बनाई।
रणभूमि में कालयवन का आगमन
कालयवन अत्यंत शक्तिशाली असुर था, जिसे वरदान प्राप्त था कि वह किसी भी पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र से नहीं मरेगा। जब वह भगवान श्रीकृष्ण से युद्ध करने आया, तो उसने उन्हें ललकारा।
लेकिन श्रीकृष्ण ने उस समय कालयवन से युद्ध नहीं किया, बल्कि रणभूमि से पलायन कर गए। कालयवन उनके पीछे-पीछे भागा। इसी कारण श्रीकृष्ण को "रणछोड़" कहा जाने लगा। लेकिन वास्तव में यह पलायन एक गहरी योजना का हिस्सा था।
भगवान की पीठ के दर्शन और अधर्म का बढ़ना
जब कालयवन भगवान श्रीकृष्ण का पीछा कर रहा था, तो वह लगातार उनकी पीठ के दर्शन कर रहा था। शास्त्रों के अनुसार, भगवान की पीठ के दर्शन करना शुभ नहीं माना जाता।
क्योंकि—
- भगवान का मुख सत्संग, ज्ञान, प्रेम और धर्म का प्रतीक है।
- भगवान की पीठ अधर्म, मोह, माया और संसारिक बंधनों का प्रतीक है।
- जब कोई व्यक्ति भगवान की पीठ की ओर देखता है, तो वह अध्यात्म से दूर हो जाता है।
कालयवन लगातार भगवान की पीठ देखकर उनका पीछा कर रहा था, जिससे उसका अधर्म बढ़ने लगा और उसके पुण्य धीरे-धीरे समाप्त हो गए।
मुचुकुंद की गुफा और कालयवन का अंत
जब श्रीकृष्ण कालयवन को भगाते हुए एक गुफा में पहुँचे, वहाँ राजा मुचुकुंद वर्षों से निद्रासन में थे। उन्हें देवताओं द्वारा यह वरदान प्राप्त था कि जो भी उन्हें निद्रा से जगाएगा, वह उनकी दृष्टि मात्र से भस्म हो जाएगा।
श्रीकृष्ण चुपचाप एक ओर खड़े हो गए और कालयवन ने उन्हें कृष्ण समझकर राजा मुचुकुंद को जगा दिया। जैसे ही मुचुकुंद की दृष्टि कालयवन पर पड़ी, वह तत्काल भस्म हो गया।
इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण ने बिना अस्त्र उठाए ही इस राक्षस का अंत कर दिया।
भगवान श्रीकृष्ण की पीठ के दर्शन क्यों नहीं करने चाहिए?
इस कथा से यह निष्कर्ष निकलता है कि भगवान विष्णु अथवा श्रीकृष्ण की मूर्ति के पीछे खड़े होकर उनके दर्शन करना उचित नहीं है। इसके कारण हैं—
- अधर्म की वृद्धि: जैसे कालयवन के अधर्म में वृद्धि हुई, वैसे ही भगवान की पीठ के दर्शन करने से पुण्य का प्रभाव कम होता है और व्यक्ति मोह-माया में अधिक उलझ जाता है।
- भगवान से दूर होना: भगवान की पीठ देखना यह दर्शाता है कि हम उनसे दूर जा रहे हैं, जबकि हमें उनके मुख की ओर रहना चाहिए।
- आध्यात्मिक उन्नति में बाधा: भगवान के मुख के दर्शन से हमें आशीर्वाद और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है, जबकि पीठ के दर्शन से आध्यात्मिक उन्नति में बाधा आती है।
कैसे करें श्रीकृष्ण के उचित दर्शन?
- जब भी श्रीकृष्ण के मंदिर जाएं, हमेशा उनके मुख की ओर से दर्शन करें।
- यदि मंदिर में परिक्रमा कर रहे हों, तो पीठ की ओर देखने से बचें और मन ही मन भगवान का स्मरण करें।
- दर्शन के समय प्रेम, श्रद्धा और भक्ति से भगवान का स्मरण करें।
- कृष्ण के चरणों को नमन करें और उनके मुखमंडल को हृदय में बसाएं।
निष्कर्ष
भगवान श्रीकृष्ण केवल लीला पुरुषोत्तम नहीं, बल्कि धर्म और नीति के ज्ञाता भी हैं। उन्होंने कालयवन के साथ अपनी लीला के माध्यम से हमें यह संदेश दिया कि हमेशा धर्म का साथ दें और अधर्म से बचें।
इसलिए जब भी हम श्रीकृष्ण के मंदिर में जाएं, हमें उनकी मूर्ति के मुखमंडल के दर्शन श्रद्धा और प्रेम से करने चाहिए, न कि उनकी पीठ के।
"भगवान के मुख के दर्शन करें, उनके आशीर्वाद प्राप्त करें और अपने जीवन को धर्म और भक्ति से भरपूर बनाएं!"
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