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कनकधारा स्तोत्र: कथा और कनक-धारा स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित

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कनकधारा स्तोत्र: कथा और कनक-धारा स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित
कनकधारा स्तोत्र: कथा और कनक-धारा स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित


कनकधारा स्तोत्र: कथा और कनक-धारा स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित

कनकधारा स्तोत्र की कथा

आदि शंकराचार्य एक महान अद्वैत वेदांताचार्य थे, जो सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए संपूर्ण भारत में भ्रमण कर रहे थे। एक दिन वे भिक्षा मांगने के लिए एक निर्धन ब्राह्मणी के घर गए। वह स्त्री अत्यंत निर्धन थी, परंतु अतिथि को खाली लौटाना उसके लिए असंभव था। उसने घर में चारों ओर देखा, परंतु कुछ भी खाने योग्य नहीं मिला। अंततः, उसने एक मात्र आँवला (भारतीय करौंदा) शंकराचार्य को दान कर दिया।

माँ लक्ष्मी से विनती

आदि शंकराचार्य उस ब्राह्मणी की श्रद्धा और त्याग से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने उसकी दरिद्रता देखकर दयाभाव से भरकर माँ लक्ष्मी से उसकी समृद्धि की प्रार्थना की। रात्रि में जब वे ध्यान-मग्न हुए, तो माँ लक्ष्मी स्वप्न में प्रकट हुईं।

माँ लक्ष्मी ने कहा—

"हे शंकर! यह कैसे संभव है? इस ब्राह्मणी ने अपने पूर्व जन्मों में अपार धन-संपत्ति होते हुए भी कभी किसी को दान नहीं दिया। उसे समृद्धि कैसे मिल सकती है? क्या तुम नहीं जानते कि मैं केवल कर्मानुसार ही फल प्रदान करती हूँ?"

यह सुनकर शंकराचार्य ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया—

"हे माँ! सत्य है कि इस ब्राह्मणी ने अपने पूर्व जन्मों में दान नहीं किया, किंतु इस जन्म में अत्यंत कष्ट होते हुए भी उसने अपनी श्रद्धा और भक्ति से मुझे दान दिया है। यह उसका परम पुण्य है। क्या यह त्याग, यह निस्वार्थता, यह शुद्ध हृदय, उसके लिए समृद्धि अर्जित नहीं कर सकता? क्या सुपात्र को दिया गया एकमात्र दान भी पूर्व जन्मों के पापों को नहीं धो सकता?"

माँ लक्ष्मी शंकराचार्य की करुणा, तर्क और उस ब्राह्मणी की निष्ठा से प्रभावित हुईं और तथास्तु कह दिया।

कनकधारा स्तोत्र की रचना

शंकराचार्य ने उसी क्षण माँ लक्ष्मी की स्तुति करते हुए "कनकधारा स्तोत्र" की रचना की। यह स्तोत्र इतना प्रभावशाली था कि जैसे ही शंकराचार्य ने इसका पाठ किया, स्वर्ग से सोने की वर्षा उस ब्राह्मणी के घर पर होने लगी। उसकी दरिद्रता दूर हो गई और वह सुखपूर्वक रहने लगी।

शिक्षा

इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि—

  1. पूर्व जन्मों के पुण्य कर्म धन-समृद्धि का कारण होते हैं, परंतु यदि वर्तमान जन्म में भी सच्चे हृदय से सुपात्र को दान किया जाए, तो उसके प्रभाव से दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल सकता है।
  2. एक सच्चे संत की प्रार्थना और स्तुति अचूक होती है, क्योंकि वे निःस्वार्थ भाव से दूसरों के कल्याण के लिए कार्य करते हैं।
  3. दान की महिमा अपरंपार है, और विशेष रूप से यदि वह कष्ट के समय भी श्रद्धा-पूर्वक दिया जाए, तो उसका प्रभाव असंख्य गुना बढ़ जाता है।

इस प्रकार, कनकधारा स्तोत्र न केवल माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का माध्यम बना, बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया कि दान, श्रद्धा, और सत्पुरुषों की कृपा के आगे स्वयं देवी-देवताओं को भी झुकना पड़ता है।

कनक-धारा स्तोत्र-पाठ हिन्दी अनुवाद सहित

कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में धन, समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से शुक्रवार, दीपावली, अक्षय तृतीया जैसे पावन अवसरों पर पढ़ने से अत्यधिक फलदायी होता है। यदि प्रतिदिन इसका श्रद्धापूर्वक पाठ किया जाए, तो माँ लक्ष्मी की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। 

कनकधारा स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जिसमें माँ लक्ष्मी की स्तुति की गई है। यह स्तोत्र संस्कृत में 18 श्लोकों का एक संग्रह है, जो भक्तों के लिए अत्यंत मंगलकारी माना जाता है। नीचे इस स्तोत्र के सभी श्लोक और उनके हिंदी अनुवाद प्रस्तुत हैं:

  1. अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
    भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
    अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
    माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः॥

    अर्थ: जैसे भ्रमरी अर्धविकसित पुष्पों से अलंकृत तमालवृक्ष का आश्रय ग्रहण करती है, वैसे ही भगवान श्रीहरि के रोमांच से शोभायमान माँ लक्ष्मीजी की कटाक्षलीला, श्रीअंगों पर अनवरत पड़ती रहती है, जिसमें समस्त ऐश्वर्य, धन, संपत्ति का निवास है। वह समस्त मंगलों की अधिष्ठात्री माँ लक्ष्मीजी की कटाक्षलीला मेरे लिए मंगलकारी हो।

  2. मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
    प्रेमत्रपा प्रणिहितानि गतागतानि।
    माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
    सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः॥

    अर्थ: जिस प्रकार भ्रमरी कमल पर आती-जाती रहती है, वैसे ही भगवान मुरारी के मुखकमल की ओर प्रेम सहित जाकर और लज्जा से वापस आकर समुद्रतनया लक्ष्मी की मनोहर मुख दृष्टिमाला मुझे खूब धन-संपत्ति प्रदान करे।

  3. विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षं
    आनन्दहेतु रधिकं मुरविद्विषोऽपि।
    ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धं
    इन्दीवरोदर सहोदरमिन्दिरायाः॥

    अर्थ: जो देवताओं के स्वामी इंद्र को भी सबकुछ देने में समर्थ हैं, मुर नामक दैत्य के शत्रु भगवान विष्णु को भी अत्यंत प्रिय हैं, नीलकमल जिसका सहोदर है अर्थात भाई है, ऐसी लक्ष्मी अर्ध खुले हुए नेत्रों की दृष्टि किंचित क्षण के लिए मुझ पर डालें।

  4. आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दं
    आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम्।
    आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
    भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः॥

    अर्थ: जिसकी पुतली एवं भौंहें काम के वशीभूत हो अर्धविकसित एकटक आँखों से देखनेवाले आनंदकंद सत्चिदानंद मुकुंद भगवान को अपने निकट पाकर किंचित तिरछी हो जाती हैं, ऐसे शेष पर शयन करनेवाले भगवान नारायण की अर्द्धांगिनी श्रीमहालक्ष्मीजी के नेत्र हमें धन-संपत्ति प्रदान करें।

  5. बाह्यन्तरे मुरजितः श्रुतिकौस्तुभे या
    हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
    कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
    कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः॥

    अर्थ: भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि से विभूषित वक्षःस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली की तरह जो सुशोभित हैं, उन भगवान के चित्त में काम संचारिणी, कमल निवासिनी लक्ष्मीजी कृपाकटाक्ष मेरा भी सदा-सर्वदा मंगल करें।

  6. कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेः
    धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।
    मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिः
    भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः॥

    अर्थ: जिस प्रकार बिजली चमकती है, उसी प्रकार मधु-कैटभ के शत्रु भगवान विष्णु के काली मेघपंक्ति की तरह सुमनोहर वक्षःस्थल पर आप एक विद्युत के समान देदीप्यमान होती हैं, जो समस्त लोकों की माता हैं, भार्गवापुत्र भगवती महालक्ष्मीजी पूजनीय हैं, वे मुझे कल्याण प्रदान करें।

  7. प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
    माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेऽपि।
    ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धं
    मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः॥

    अर्थ: समुद्रतनया (समुद्र की पुत्री) लक्ष्मी की वह मन्दालस, मन्थर, अर्धोन्मीलित दृष्टि के प्रभावमात्र से कामदेव ने भगवान मधुसूदन के हृदय में स्थान प्राप्त किया था, वही दृष्टि मेरे ऊपर भी पड़े।

  8. दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारां
    अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
    दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं
    नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः॥

    अर्थ: भगवान श्रीहरि की प्रेमिका का नेत्र रूपी मेघ, दयारूपी वायु से प्रेरित होकर दुष्कर्म रूपी धाम को दीर्घकाल के लिए दूर कर, मुझ दुखी सदृश चातक पर धन रूपी जलधारा की वर्षा करे।

  1. गीर्देवतेति गरुडध्वजभामिनीति
    शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
    सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
    तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै॥

    अर्थ: वाणी की देवी सरस्वती, गरुड़ध्वज (विष्णु) की प्रिया लक्ष्मी, शाकम्भरी (दुर्गा) और शशिशेखर (शिव) की प्रिया पार्वती—जो सृष्टि, स्थिति और प्रलय की लीला में संलग्न हैं, उन त्रिभुवन के एकमात्र गुरु (ईश्वर) की तरुणी (शक्ति) को मेरा प्रणाम।

  2. श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
    रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
    शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
    पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै॥

    अर्थ: श्रुति (वेद) को नमस्कार है, जो शुभ कर्मों के फल प्रदान करती हैं; रति (कामदेव की पत्नी) को नमस्कार है, जो रमणीय गुणों की अर्णव (महासागर) हैं; शक्ति को नमस्कार है, जो शतपत्र (कमल) का निवास स्थान हैं; पुष्टि (पोषण) को नमस्कार है, जो पुरुषोत्तम (विष्णु) की प्रिया हैं।

  3. नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
    नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूम्यै।
    नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
    नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै॥

    अर्थ: कमल के समान मुख वाली लक्ष्मी को नमस्कार है; क्षीरसागर की पुत्री को नमस्कार है; सोम (चंद्रमा) और अमृत की बहन को नमस्कार है; नारायण की प्रिया को नमस्कार है।

  4. नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
    नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै।
    नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
    नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै॥

    अर्थ: स्वर्ण कमल के आसन पर विराजमान लक्ष्मी को नमस्कार है; भूमंडल की नायिका को नमस्कार है; देवताओं पर दया करने वाली को नमस्कार है; शार्ङ्गधनुषधारी विष्णु की प्रिया को नमस्कार है।

  5. नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
    नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै।
    नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
    नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै॥

    अर्थ: भृगुनंदन (भृगु की पुत्री) देवी को नमस्कार है; विष्णु के वक्षःस्थल पर स्थित लक्ष्मी को नमस्कार है; कमलालय (कमल में निवास करने वाली) लक्ष्मी को नमस्कार है; दामोदर (विष्णु) की प्रिया को नमस्कार है।

  6. नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
    नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै।
    नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
    नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै॥

    अर्थ: कांति (प्रभा) को नमस्कार है; कमल नेत्रों वाली को नमस्कार है; संपत्ति और भुवन की उत्पत्ति करने वाली को नमस्कार है; देवताओं द्वारा अर्चित (पूजित) को नमस्कार है; नंदात्मज (कृष्ण) की प्रिया को नमस्कार है।

  7. सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
    साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
    त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
    मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये॥

    अर्थ: हे कमलनयनी माँ! आपके वंदन (स्तुति) से संपत्ति, सभी इंद्रियों को आनंद, साम्राज्य का दान और महान ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं; ये दुरित (पाप) हरने में सक्षम हैं। हे मान्ये (आदरणीय) माँ! वे सदा मेरी रक्षा करें।

  8. यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
    सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
    सन्तनोति वचनाङ्गमानसैः
    त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे॥

    अर्थ: हे मुरारि (विष्णु) के हृदय की रानी! आपकी कटाक्ष (कृपादृष्टि) की उपासना विधि सेवक के सभी अर्थ (धन, संपत्ति) की संपदाओं को वचन, अंग और मन से बढ़ाती है। मैं आपकी भक्ति करता हूँ।

  1. कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
    करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः।
    अवलोकय मामकिञ्चनानां
    प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः॥

    अर्थ: हे कमलनयनी, कमल के समान नेत्रों वाले भगवान विष्णु की प्रिया! आप अपनी करुणा की तरंगित दृष्टि से मुझ अकिंचन (निर्धन) पर कृपादृष्टि डालें। मैं आपकी स्वाभाविक दया का प्रथम पात्र हूँ।

  2. स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
    त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
    गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
    भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः॥

    अर्थ: जो लोग प्रतिदिन इन स्तुतियों से वेदत्रयी स्वरूपा, त्रिभुवन की माता, श्रीराम (लक्ष्मी) की स्तुति करते हैं, वे गुणवान, महान सौभाग्यशाली और पृथ्वी पर विद्वानों द्वारा सम्मानित होते हैं।

इस प्रकार, कनकधारा स्तोत्र के सभी 18 श्लोक और उनके हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किए गए हैं।

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भागवत दर्शन: कनकधारा स्तोत्र: कथा और कनक-धारा स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित
कनकधारा स्तोत्र: कथा और कनक-धारा स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित
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