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शिक्षण सहायक प्रणाली: परंपरागत, आधुनिक और आईसीटी आधारित |
शिक्षण सहायक प्रणाली: परंपरागत, आधुनिक और आईसीटी आधारित
शिक्षण सहायक प्रणाली (Teaching Support System) शिक्षकों और विद्यार्थियों को सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सहायता प्रदान करने वाले साधनों, संसाधनों और विधियों का एक समुच्चय है। समय के साथ शिक्षण की यह प्रणाली विभिन्न चरणों से गुजरी है—परंपरागत प्रणाली, आधुनिक प्रणाली और आईसीटी (ICT) आधारित प्रणाली। इन तीनों का शिक्षण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इस लेख में हम इन तीनों प्रणालियों की गहराई से विवेचना करेंगे।
1. परंपरागत शिक्षण सहायक प्रणाली
(क) विशेषताएँ
परंपरागत शिक्षण प्रणाली मुख्य रूप से गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित रही है। इसमें मौखिक शिक्षा (श्रवण व स्मरण), पांडुलिपियों का अध्ययन, तथा व्याख्यान पद्धति (Lecture Method) का प्रमुख स्थान रहा है। यह प्रणाली शिक्षक-केंद्रित होती थी और इसमें अनुशासन, स्मरण शक्ति, और विचारों के स्पष्ट प्रस्तुतीकरण पर विशेष बल दिया जाता था।
(ख) प्रमुख साधन
- गुरु-शिष्य परंपरा: ज्ञान का आदान-प्रदान व्यक्तिगत रूप से गुरु द्वारा शिष्य को मौखिक रूप से किया जाता था।
- पाठ्यपुस्तकें और हस्तलिखित पांडुलिपियाँ: अध्ययन का मुख्य आधार ग्रंथ और हस्तलिखित नोट्स थे।
- ब्लैकबोर्ड और चॉक: आधुनिक विद्यालयी शिक्षा में अध्यापन के लिए ब्लैकबोर्ड और चॉक का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाने लगा।
- व्याख्यान पद्धति (Lecture Method): शिक्षक कक्षा में पाठ्य सामग्री को व्याख्यान के रूप में प्रस्तुत करता था।
- मौखिक मूल्यांकन: शिक्षा का मूल्यांकन मुख्य रूप से मौखिक प्रश्नोत्तरी के माध्यम से किया जाता था।
(ग) परंपरागत प्रणाली की सीमाएँ
- छात्र अधिकतर शिक्षक पर निर्भर रहते थे, जिससे उनकी स्वायत्तता (Independence) सीमित हो जाती थी।
- स्मृति-आधारित शिक्षण को अधिक महत्व दिया जाता था, जिससे आलोचनात्मक (Critical) और सृजनात्मक (Creative) सोच का विकास कम होता था।
- शिक्षण के संसाधन सीमित थे, जिससे सभी छात्रों तक समान अवसर नहीं पहुँच पाते थे।
2. आधुनिक शिक्षण सहायक प्रणाली
(क) विशेषताएँ
आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने शिक्षण को अधिक सहभागी (Interactive), छात्र-केंद्रित (Learner-Centered) और प्रयोगात्मक (Experimental) बनाया है। इसमें केवल शिक्षक द्वारा ज्ञान देना ही पर्याप्त नहीं माना जाता, बल्कि छात्र की सक्रिय भागीदारी आवश्यक मानी जाती है।
(ख) प्रमुख साधन और तकनीकें
- ऑडियो-विजुअल तकनीक:
- प्रोजेक्टर, टेलीविज़न, फिल्में और स्लाइड शो का उपयोग शिक्षण को रोचक बनाने के लिए किया जाता है।
- स्मार्ट क्लासरूम:
- स्मार्ट बोर्ड और डिजिटल शिक्षण सामग्री (PowerPoint, वीडियो) का उपयोग शिक्षण में किया जाता है।
- मल्टीमीडिया शिक्षण:
- एनिमेशन, सिमुलेशन और डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से जटिल विषयों को सरल बनाया जाता है।
- कार्यशालाएँ एवं प्रयोगशालाएँ:
- विज्ञान, गणित और भाषा प्रयोगशालाओं में व्यावहारिक अनुभव प्रदान किए जाते हैं।
- समूह चर्चा और समस्या समाधान पद्धति (Problem Solving Method):
- छात्रों को समूहों में विभाजित करके उन्हें समस्याओं को हल करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
- मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग:
- गार्डनर की बहु-बुद्धि सिद्धांत (Multiple Intelligence Theory) और ब्लूम्स टैक्सोनॉमी का उपयोग शिक्षण में किया जाता है।
(ग) आधुनिक प्रणाली के लाभ
- शिक्षा अधिक सहभागितापूर्ण (Interactive) और रुचिकर होती है।
- छात्रों की आलोचनात्मक और रचनात्मक सोच विकसित होती है।
- सीखने के अधिक अवसर उपलब्ध होते हैं।
(घ) सीमाएँ
- अत्यधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है, जो सभी विद्यालयों में उपलब्ध नहीं होती।
- कुछ शिक्षकों को नई तकनीकों को अपनाने में कठिनाई होती है।
3. आईसीटी (ICT) आधारित शिक्षण सहायक प्रणाली
(क) विशेषताएँ
आईसीटी (Information and Communication Technology) ने शिक्षण को वैश्विक स्तर पर सुलभ और अधिक प्रभावी बना दिया है। यह प्रणाली डिजिटल साधनों, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और इंटरनेट-आधारित संसाधनों पर निर्भर है।
(ख) प्रमुख आईसीटी आधारित संसाधन
- ई-लर्निंग और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म:
- वेबिनार, ऑनलाइन कोर्स (MOOCs - Massive Open Online Courses), और LMS (Learning Management Systems) जैसे Google Classroom, Moodle आदि।
- डिजिटल लाइब्रेरी और ई-बुक्स:
- इंटरनेट पर उपलब्ध पाठ्य सामग्री, जैसे कि NPTEL, e-PG Pathshala, और National Digital Library।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित शिक्षण:
- चैटबॉट्स, डेटा एनालिटिक्स और व्यक्तिगत शिक्षण (Personalized Learning)।
- वर्चुअल और ऑगमेंटेड रियलिटी:
- 3D मॉडलिंग, डिजिटल प्रयोगशालाएँ और सिमुलेशन आधारित शिक्षण।
- शिक्षण एप्लिकेशन और मोबाइल लर्निंग:
- Duolingo, BYJU’s, Udemy, Coursera जैसे ऑनलाइन शिक्षण एप्लिकेशन।
(ग) आईसीटी आधारित प्रणाली के लाभ
- शिक्षण को अधिक रोचक और व्यावहारिक बनाता है।
- शिक्षकों और छात्रों को नवीनतम संसाधनों तक पहुँच प्रदान करता है।
- दूरस्थ शिक्षा (Distance Learning) को संभव बनाता है।
(घ) सीमाएँ
- डिजिटल डिवाइड (Digital Divide) के कारण सभी छात्रों को समान अवसर नहीं मिल पाते।
- अधिक तकनीकी ज्ञान और बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है।
- छात्रों का स्क्रीन टाइम बढ़ जाता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
निष्कर्ष
शिक्षण सहायक प्रणाली का विकास परंपरागत प्रणाली से लेकर आधुनिक और आईसीटी आधारित प्रणाली तक हुआ है। परंपरागत प्रणाली ने नैतिकता और अनुशासन को महत्व दिया, आधुनिक प्रणाली ने शिक्षण को अधिक सहभागितापूर्ण बनाया, और आईसीटी आधारित प्रणाली ने शिक्षण को वैश्विक और तकनीकी रूप से उन्नत बनाया।
आज की शिक्षा व्यवस्था में तीनों प्रणालियों का संतुलित उपयोग आवश्यक है। परंपरागत प्रणाली से नैतिक मूल्य, आधुनिक प्रणाली से रचनात्मकता, और आईसीटी प्रणाली से नवीनतम ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इस संतुलित दृष्टिकोण से ही शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य पूर्ण हो सकता है।
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