कथा: लक्ष्मी जी का निवास — लक्ष्मी जी कहाँ रहती हैं?, पौराणिक कथाएँ,कथा, भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री।
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कथा: लक्ष्मी जी का निवास — लक्ष्मी जी कहाँ रहती हैं? |
कथा: लक्ष्मी जी का निवास — लक्ष्मी जी कहाँ रहती हैं?
पुराने समय की बात है। एक नगर में एक बुजुर्ग सेठ रहते थे। वे खानदानी रईस थे और उनके पास अपार धन-संपत्ति थी। उनकी संपत्ति कई पीढ़ियों से चली आ रही थी, किंतु लक्ष्मी जी का स्वभाव चंचल होता है—आज यहाँ, तो कल वहाँ।
स्वप्न में अद्भुत दृश्य
एक रात सेठ ने स्वप्न में देखा कि एक सुंदर स्त्री उनके घर के दरवाजे से बाहर जा रही है। उन्होंने तुरंत आगे बढ़कर विनम्रता से पूछा—
"हे देवी! आप कौन हैं? मेरे घर में कब आयीं और अब इसे छोड़कर क्यों जा रही हैं?"
वह स्त्री मुस्कुराई और उत्तर दिया—
"सेठ जी! मैं तुम्हारे घर की वैभव लक्ष्मी हूँ। तुम्हारे पूर्वजों के समय से मैं यहाँ निवास कर रही हूँ, पर अब मेरा समय समाप्त हो गया है, इसलिए मैं यहाँ से विदा ले रही हूँ। लेकिन मैं तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूँ क्योंकि जितने समय भी मैं यहाँ रही, तुमने मेरा सदुपयोग किया। तुमने संतों का स्वागत किया, गरीबों को भोजन कराया, धर्मार्थ कार्यों में रुचि ली, कुएँ-तालाब बनवाए, गौशाला और प्याऊ की स्थापना की। तुम्हारे परोपकारी कार्यों ने मुझे प्रसन्न किया है। इसलिए जाते समय मैं तुम्हें एक वरदान देना चाहती हूँ। माँग लो, जो भी चाहो।"
सेठ की परीक्षा
सेठ जी बड़े हर्षित हुए, किंतु उन्होंने सोचा कि इस विषय में अपनी चारों बहुओं से सलाह लेनी चाहिए। वे अपने परिवार के पास गए और अपनी बहुओं को लक्ष्मी जी के वरदान के बारे में बताया।
पहली बहू ने कहा, "पिताजी! लक्ष्मी जी से कहें कि हमारे अन्न के गोदाम भर दें, ताकि हमें कभी भोजन की कमी न हो।"
दूसरी बहू ने सुझाव दिया, "सोने-चाँदी की तिजोरियाँ भरवा लें। इससे हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी सुखी रहेंगी।"
तीसरी बहू ने कहा, "हमें धन-संपत्ति के साथ ही नौकर-चाकर और वैभव भी मिलना चाहिए, ताकि हम शान-शौकत से जीवन व्यतीत कर सकें।"
लेकिन सबसे छोटी बहू, जो धार्मिक परिवार से थी और बचपन से सत्संग में जाती थी, उसने विनम्रता से कहा—
"पिताजी! लक्ष्मी जी को जाना है तो वे अवश्य जाएँगी। लेकिन यदि हमने उनसे सोने-चाँदी, अन्न और धन-संपत्ति माँगी, तो यह सब एक न एक दिन नष्ट हो जाएगा। इससे भी बड़ा संकट यह होगा कि हमारी आने वाली पीढ़ी आलसी और अहंकारी हो जाएगी। अतः हमें उनसे कुछ ऐसा माँगना चाहिए, जो सदा हमारे परिवार के कल्याण का कारण बने। इसलिए आप लक्ष्मी जी से यह वरदान माँगें कि हमारे घर में सदैव हरि-कथा और संतों की सेवा होती रहे तथा परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम बना रहे। क्योंकि जहाँ प्रेम होता है, वहाँ संकट भी सरलता से कट जाते हैं।"
सेठ जी को यह बात बहुत पसंद आई। उन्होंने तय किया कि वे यही वरदान माँगेंगे।
लक्ष्मी जी का चौंकना
अगली रात सेठ ने पुनः स्वप्न में लक्ष्मी जी को देखा। उन्होंने पूछा—
"सेठ जी! क्या तुमने विचार कर लिया? अब बताओ, तुम्हें क्या चाहिए?"
सेठ जी ने आदरपूर्वक उत्तर दिया—
"हे माता! यदि आपको जाना ही है, तो जाइए, परंतु कृपा करके मुझे यह वरदान दें कि मेरे घर में सदा हरि-कथा और संतों की सेवा होती रहे तथा परिवार के सदस्यों में प्रेम बना रहे।"
यह सुनकर लक्ष्मी जी आश्चर्यचकित रह गईं। वे चकित होकर बोलीं—
"सेठ जी! यह तुमने क्या माँग लिया? जिस घर में हरि-कथा और संतों की सेवा होती हो तथा परिवार में परस्पर प्रेम और सौहार्द बना रहता हो, वहाँ तो स्वयं नारायण का वास होता है। और जहाँ नारायण होते हैं, वहाँ मैं भी स्वतः ही निवास करती हूँ। मैं चाहकर भी उस घर को छोड़कर नहीं जा सकती। इस प्रकार, तुमने यह वरदान माँगकर मुझे सदा के लिए अपने घर में रहने को विवश कर दिया है।"
शिक्षा
यह कथा हमें सिखाती है कि धन और वैभव क्षणिक होते हैं, परंतु सत्संग, हरि-कथा और आपसी प्रेम सदा बना रहे, तो सुख-शांति और समृद्धि अपने आप स्थायी हो जाती है।
यह विस्तारित रूप में आपकी कथा है, जिससे इसकी शिक्षाएँ और भी प्रभावी बन सकें। क्या आप इसमें कोई और संशोधन या विस्तार चाहेंगे?
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