कथा: कमल किशोर और लड्डू गोपाल की अद्भुत लीला, भाग 1: कमल किशोर और उसकी प्रसिद्धि, भाग 2: मित्र की भेंट और अनजाने में छूटी निधि, भाग 3: लड्डू गोपाल ।
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कथा: कमल किशोर और लड्डू गोपाल की अद्भुत लीला |
कमल किशोर और लड्डू गोपाल की अद्भुत लीला
भाग 1: कमल किशोर और उसकी प्रसिद्धि
कमल किशोर सोने और हीरे के गहने बनाने और बेचने का कार्य करता था। उसके बनाए आभूषणों की ख्याति इतनी दूर-दूर तक फैली थी कि लोग अन्य शहरों से भी गहने खरीदने और बनवाने आते थे। चाहे कंगन हो, हार हो, या कुंडल—हर गहने में अत्यंत सुंदर मीनाकारी होती थी, जो हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती।
इतना बड़ा व्यवसाय होने के बावजूद, कमल किशोर अत्यंत शांत, सरल और माया-मोह से परे रहने वाला व्यक्ति था। वह अपनी धुन में मग्न, निस्वार्थ भाव से अपना कार्य करता था।
भाग 2: मित्र की भेंट और अनजाने में छूटी निधि
एक दिन उसका मित्र, जो अपनी पत्नी सहित वृंदावन धाम से लौट रहा था, कमल किशोर की दुकान पर आया। वह अपने साथ श्री लड्डू गोपाल का एक अत्यंत मनमोहक विग्रह और प्रसाद लेकर आया था।
संयोगवश, उसी समय कमल किशोर का एक कारीगर एक हीरे-जड़ित सुंदर हार बनाकर लाया था। कमल किशोर उस हार को निहार ही रहा था कि तभी उसका मित्र दुकान पर पहुँचा और अपनी गोद में विराजमान लड्डू गोपाल को दिखाया।
कमल किशोर जैसे ही श्री लड्डू गोपाल के अलौकिक रूप को निहारा, उसका हृदय आनंदित हो उठा। बिना सोचे-विचारे, उसने अपने हाथ में पकड़ा हुआ बहुमूल्य हार लड्डू गोपाल के गले में पहना दिया और बोला, "देखो, यह हार ठाकुर जी के गले में कितनी सुंदर लग रही है!"
बातों-बातों में समय बीत गया, और उसका मित्र लड्डू गोपाल को हार सहित अपने साथ लेकर चला गया। दोनों को ध्यान ही नहीं रहा कि बहुमूल्य हार अब भी ठाकुर जी के गले में था।
भाग 3: लड्डू गोपाल का अज्ञात यात्रा और बाबू का सौभाग्य
कमल किशोर का मित्र अपनी पत्नी सहित टैक्सी में सवार होकर घर को रवाना हुआ। दुर्भाग्य से, जब वे टैक्सी से उतरे, तो लड्डू गोपाल जी टैक्सी में ही रह गए।
टैक्सी चालक बाबू एक गरीब लेकिन ईमानदार व्यक्ति था, जो अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए दूसरे शहर में टैक्सी चलाता था। जब वह घर पहुँचा और टैक्सी की पिछली सीट पर देखा, तो उसकी दृष्टि उस अलौकिक विग्रह पर पड़ी—बांसुरी पकड़े, शाही पोशाक में सजे, गले में चमचमाता हार पहने हुए लड्डू गोपाल जी वहाँ सुशोभित थे।
पहले तो बाबू घबरा गया, लेकिन फिर श्रद्धा से हाथ धोकर ठाकुर जी को उठाया और अपने घर ले गया।
भाग 4: निसंतान मालती का वात्सल्य भाव
जैसे ही बाबू ने लड्डू गोपाल को घर में प्रवेश कराया, उसकी पत्नी मालती की दृष्टि उन पर पड़ी। इतने सुंदर स्वरूप को देखकर उसकी ममता उमड़ पड़ी। वह पिछले आठ वर्षों से निसंतान थी, लेकिन ठाकुर जी को गोद में उठाते ही उसे ऐसा लगा मानो उसने अपने ही पुत्र को गोद में भर लिया हो।
इसके बाद उसने शीघ्रता से मधु और घी से बनी चूरी और गर्म दूध ठाकुर जी को भोग में अर्पित किया।
भाग 5: कमल किशोर की चिंता और बाबू के जीवन में सुख
उधर, बाबू और मालती दिन-रात ठाकुर जी की सेवा में लीन रहने लगे। उनका स्नेह इतना बढ़ गया कि वे उन्हें अपने पुत्र समान मानने लगे। कुछ समय पश्चात्, ठाकुर जी की कृपा से मालती ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। वे दोनों इसे ठाकुर जी की ही देन मानते थे।
भाग 6: कमल किशोर और बाबू का मिलन
पहले तो कमल किशोर झिझका, लेकिन उसके पास और कोई विकल्प नहीं था।
जब वह बाबू के घर पहुँचा, तो उसने घर के सुव्यवस्थित वातावरण और भीतर फैली दिव्य सुगंध को अनुभव किया। भोजन करने के दौरान, उसकी दृष्टि बार-बार एक दिशा में जा रही थी, जहाँ से उसे एक दिव्य प्रकाश दिख रहा था।
उसने बाबू से पूछा, "क्या मैं देख सकता हूँ कि वहाँ क्या रखा है?"
बाबू और मालती मुस्कुराए और बोले, "वहाँ हमारे सबसे प्रिय सदस्य लड्डू गोपाल जी विराजमान हैं।"
जब कमल किशोर ने ठाकुर जी के दर्शन किए, तो वह स्तब्ध रह गया। यह वही लड्डू गोपाल थे, जिनके गले में उसका दिया हुआ हार सुशोभित था!
कमल किशोर को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह मन ही मन ठाकुर जी से क्षमा याचना करने लगा।
भाग 7: ठाकुर जी की अद्भुत लीला
कमल किशोर ने आश्चर्य से बैग खोला, तो पाया कि उसमें उतने ही पैसे थे, जितनी उस हार की कीमत थी!
उसने श्रद्धा से हाथ जोड़े और कहा, "हे ठाकुर, आप लीला करने में अद्भुत हैं!"
कथासार
"जय श्री राधे!"
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