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इकाई - 6 युक्तियुक्त तर्क (Logical Reasoning)
संस्कृत न्यायशास्त्र और तर्कशास्त्र में ‘युक्ति’ को एक प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाता है। तर्क का सही उपयोग करने से हम किसी निष्कर्ष पर उचित ढंग से पहुँच सकते हैं। न्याय दर्शन, वेदांत, मीमांसा तथा आधुनिक तर्कशास्त्र में इसे विभिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है।
1. युक्ति के ढाँचे का बोध (Understanding the Structure of Logic)
तर्क का आधार प्रतिज्ञा (Proposition), हेतु (Reason) और निष्कर्ष (Conclusion) होता है। न्यायशास्त्र में इसे पाँच खंडों में विभाजित किया गया है, जिसे पञ्चावयव तर्क (Five-membered syllogism) कहते हैं। यह पद्धति आधुनिक तर्कशास्त्र के सिलोज़िज्म (Syllogism) से मिलती-जुलती है।
(i) पञ्चावयव तर्क (Five-membered Syllogism)
- प्रतिज्ञा (Proposition) – कोई निश्चित कथन या स्थापना।
- उदाहरण: यह पर्वत अग्निमान है।
- हेतु (Reason) – प्रतिज्ञा को सिद्ध करने का कारण।
- क्योंकि इसमें धुआँ है।
- उदाहरण (Example) – सामान्य सिद्धांत जो तर्क को प्रमाणित करता है।
- जहाँ-जहाँ धुआँ होता है, वहाँ-वहाँ अग्नि होती है, जैसे रसोईघर में।
- उपनय (Application) – तर्क को विशेष रूप से विषय पर लागू करना।
- इस पर्वत में धुआँ है।
- निगमन (Conclusion) – अंतिम निष्कर्ष।
- अतः यह पर्वत अग्निमान है।
2. युक्ति के रूप (Forms of Logic)
तर्क को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जाता है। भारतीय और पाश्चात्य तर्कशास्त्र में इसके रूपों को अलग-अलग परिभाषित किया गया है।
(i) भारतीय दृष्टिकोण
- अनुमान (Inference) – ज्ञात तथ्यों के आधार पर अज्ञात सत्य तक पहुँचना।
- उपमान (Comparison) – किसी समानता के आधार पर निष्कर्ष निकालना।
- शब्द (Verbal Testimony) – प्रामाणिक स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करना।
- अर्थापत्ति (Postulation) – परोक्ष रूप से किसी बात की अनिवार्यता स्वीकार करना।
- संभावना (Probability) – किसी स्थिति के घटित होने की संभावना का आकलन करना।
(ii) पाश्चात्य दृष्टिकोण
- संगति तर्क (Deductive Logic) – जब निष्कर्ष सामान्य नियमों से विशेष निष्कर्ष की ओर जाता है।
- प्रेरणात्मक तर्क (Inductive Logic) – जब विशेष उदाहरणों से सामान्य निष्कर्ष प्राप्त होता है।
- उत्कर्षण तर्क (Abductive Logic) – जब सबसे उपयुक्त व्याख्या के आधार पर निष्कर्ष निकाला जाता है।
3. निरुपाधिक तर्कवाक्य का ढाँचा (Structure of Categorical Propositions)
तर्क वाक्यों का एक निश्चित स्वरूप होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि किस प्रकार निष्कर्ष तक पहुँचना है।
- सार्वत्रिक सकारात्मक (Universal Affirmative) – "सभी मनुष्य नश्वर हैं।"
- सार्वत्रिक नकारात्मक (Universal Negative) – "कोई भी पत्थर जीवित नहीं है।"
- विशेषात्मक सकारात्मक (Particular Affirmative) – "कुछ पक्षी उड़ सकते हैं।"
- विशेषात्मक नकारात्मक (Particular Negative) – "कुछ लोग ईमानदार नहीं होते।"
4. अवस्था और आकृति (Mood and Figure in Logic)
विभिन्न प्रकार के तर्कों को समझने के लिए इनकी अवस्थाएँ और आकृतियाँ महत्वपूर्ण होती हैं। न्याय दर्शन में ‘हेत्वाभास’ (Fallacies) को समझने के लिए इस सिद्धांत का उपयोग किया जाता है।
(i) अवस्था (Mood)
यह उस स्वरूप को दर्शाता है जिसमें तर्क प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरण के लिए –
- यदि वर्षा होती है, तो पृथ्वी गीली होगी। वर्षा हो रही है, अतः पृथ्वी गीली होगी।
(ii) आकृति (Figure)
तर्क के तीन पदों (Major, Minor, Middle) की व्यवस्था को आकृति कहते हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि किस क्रम में तर्क व्यवस्थित किए गए हैं।
5. औपचारिक एवं अनौपचारिक युक्ति दोष (Formal and Informal Fallacies)
(i) औपचारिक युक्ति दोष (Formal Fallacies)
- असंगत मध्य (Undistributed Middle) – जब मध्य पद ठीक से परिभाषित नहीं होता।
- अवर्गीकृत निष्कर्ष (Illicit Major/Minor) – जब निष्कर्ष गलत वर्गीकरण से आता है।
- विषयांतर (Non Sequitur) – जब निष्कर्ष कथनों से तार्किक रूप से नहीं निकलता।
(ii) अनौपचारिक युक्ति दोष (Informal Fallacies)
- विषयनिष्ठता (Ad Hominem) – तर्क को खारिज करने के लिए व्यक्ति पर हमला करना।
- ग़लत द्वंद्व (False Dichotomy) – केवल दो विकल्प प्रस्तुत करना जबकि अन्य संभावनाएँ भी हो सकती हैं।
- चक्रवाक्य दोष (Circular Reasoning) – जब निष्कर्ष ही प्रमाण के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
6. भाषा का प्रयोग (Use of Language in Logic)
भाषा तर्क को स्पष्ट करने और उसकी व्याख्या करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(i) शब्दों का लक्ष्यार्थ और वस्त्वार्थ (Lakshyartha and Vastyartha of Words)
- लक्ष्यार्थ (Implied Meaning) – जब शब्द का अर्थ उसके सामान्य अर्थ से हटकर कुछ और व्यक्त करता है।
- वस्त्वार्थ (Literal Meaning) – जब शब्द अपने मूल रूप में प्रयुक्त होता है।
उदाहरण –
- "गंगा स्नान करती है।" (लक्ष्यार्थ – गंगा का जल पवित्र करता है।)
- "गंगा हिमालय से निकलती है।" (वस्त्वार्थ – गंगा एक नदी है जो हिमालय से निकलती है।)
7. विरोध का परंपरागत वर्ग (Traditional Classification of Opposition)
(i) विरोध के चार प्रकार
- सर्वत्र विरोध (Contradiction) – जब दो कथन एक-दूसरे का पूर्णतः खंडन करते हैं।
- विपर्यय विरोध (Contrariety) – जब दो कथन एक साथ सत्य नहीं हो सकते, परंतु दोनों असत्य हो सकते हैं।
- अव्याप्ति विरोध (Sub-contrariety) – जब दो कथन एक साथ असत्य नहीं हो सकते, परंतु दोनों सत्य हो सकते हैं।
- आवयव विरोध (Sub-alternation) – जब एक कथन से दूसरा निष्कर्ष रूप में निकलता हो।
निष्कर्ष (Conclusion)
युक्तियुक्त तर्क हमें तर्कपूर्ण ढंग से सोचने, तर्क में दोष निकालने और उचित निर्णय लेने में सहायता करता है। यह केवल दर्शनशास्त्र या न्यायशास्त्र तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उपयोग आधुनिक विज्ञान, भाषा अध्ययन और गणित में भी किया जाता है। भारतीय तर्कशास्त्र हमें व्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप से चिंतन करने की प्रेरणा देता है।
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