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Venu geet: श्रीमद्भागवत महापुराण – दशम स्कंध, पूर्वार्ध, अध्याय 21 (वेणु गीत – श्रीकृष्ण की वंशी की महिमा)

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Venu geet: श्रीमद्भागवत महापुराण – दशम स्कंध, पूर्वार्ध, अध्याय 21 (वेणु गीत – श्रीकृष्ण की वंशी की महिमा)
Venu geet: श्रीमद्भागवत महापुराण – दशम स्कंध, पूर्वार्ध, अध्याय 21 (वेणु गीत – श्रीकृष्ण की वंशी की महिमा)

Venu geet: श्रीमद्भागवत महापुराण – दशम स्कंध, पूर्वार्ध, अध्याय 21(वेणु गीत – श्रीकृष्ण की वंशी की महिमा)

संस्कृत श्लोक एवं हिन्दी अनुवाद

श्रीशुक उवाच
श्लोक 1

इत्थं शरत् स्वच्छजलं पद्माकरसुगन्धिना।
न्यविशद् वायुना वातं स गोगोपालकोऽच्युतः॥

अनुवाद:
इस प्रकार, शरद ऋतु का स्वच्छ जल और कमल-कुंजों की सुगंध से युक्त मंद वायु प्रवाहित हो रही थी। उसी समय, गोप-गोपालों के साथ श्रीकृष्ण भी वहाँ विश्राम करने लगे।


श्लोक 2

कुसुमितवनराजिशुष्मिभृङ्ग-
द्विजकुलघुष्टसरःसरिन्महीध्रम्।
मधुपतिरवगाह्य चारयन् गाः
सहपशुपालबलश्चुकूज वेणुम्॥

अनुवाद:
फूलों से लदे हुए वृक्षों और लताओं की सुगंध से गूँजता वन, भ्रमरों की गुंजार, पक्षियों के कलरव और सरोवरों की लहरों से शोभायमान था। उस वातावरण में मधुसूदन श्रीकृष्ण, गाएँ चराते हुए, अपने ग्वाल-बालों के साथ वेणु (बाँसुरी) बजाने लगे।


श्लोक 3

तद् व्रजस्त्रिय आश्रुत्य वेणुगीतं स्मरोदयम्।
काश्चित् परोक्षं कृष्णस्य स्वसखीभ्योऽन्ववर्णयन्॥

अनुवाद:
जब व्रज की गोपियों ने श्रीकृष्ण की बाँसुरी की वह मधुर ध्वनि सुनी, तो उनके हृदय में प्रेम का उन्माद जाग उठा। वे आपस में श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करने लगीं।


श्लोक 4

तद् वर्णयितुमारब्धाः स्मरन्त्यः कृष्णचेष्टितम्।
नाशकन् स्मरवेगेन विक्षिप्तमनसो नृप॥

अनुवाद:
वे श्रीकृष्ण की चेष्टाओं का वर्णन करने लगीं, लेकिन प्रेम-भावना से इतनी व्याकुल हो गईं कि उनके मन विचलित हो गए और वे ठीक से वर्णन भी नहीं कर सकीं।


श्लोक 5

बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं।
बिभ्रद्वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम्।
रन्ध्रान् वेणोरधरसुधयापूरयन् गोपवृन्दैः।
वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः॥

अनुवाद:
मोरपंख मुकुट धारण किए हुए, नटश्रेष्ठ के समान मनोहर स्वरूप वाले, कानों में कर्णिकार के फूल पहने हुए, सुनहरे रंग के पीले वस्त्र धारण किए हुए और वैजयन्ती माला से सुशोभित श्रीकृष्ण अपनी वंशी को अपने अधरों की अमृतमयी धारा से भरते हुए ग्वाल-बालों के साथ वृन्दावन में प्रवेश कर रहे थे। उनकी कीर्ति गान के रूप में गूँज रही थी।


श्लोक 6

इति वेणुरवं राजन् सर्वभूतमनोहरम्।
श्रुत्वा व्रजस्त्रियः सर्वा वर्णयन्त्योऽभिरेभिरे॥

अनुवाद:
राजन! श्रीकृष्ण की बाँसुरी की वह मोहक ध्वनि सभी जीवों के मन को हरने वाली थी। उसे सुनकर व्रज की सभी गोपियाँ उसकी महिमा का वर्णन करने लगीं और अत्यंत आनंद में मग्न हो गईं।


गोप्य ऊचुः

श्लोक 7

अक्षण्वतां फलमिदं न परं विदामः।
सख्यः पशूननु विवेशयतोर्वयस्यैः।
वक्त्रं व्रजेशसुतयोरनवेणुजुष्टं।
यैर्वा निपीतमनुरक्त-कटाक्षमोक्षम्॥

अनुवाद:
गोपियाँ कहने लगीं – हे सखियों! जो श्रीकृष्ण को अपनी आँखों से देख पा रहे हैं, उनके लिए इससे बढ़कर कोई सौभाग्य नहीं हो सकता। श्रीकृष्ण अपने सखा और गोधन के साथ वन में विहार कर रहे हैं और अपनी वेणु बजा रहे हैं। उनके मधुर मुख की ओर प्रेमपूर्ण दृष्टि डालने का जो सौभाग्य हमें नहीं मिल रहा, वह इन पशुओं को मिल रहा है।


 श्लोक 8

चूतप्रवालबर्हस्तबक् उत्पलाब्ज-
मालानुपृक्तपरिधान विचित्रवेशौ।
मध्ये विरेजतुरलं पशुपालगोष्ठ्यां।
रङ्‌गे यथा नटवरौ क्व च गायमानौ॥

अनुवाद:
चूत (आम) की नई कोपलों, मोरपंखों और कमल पुष्पों की मालाओं से अलंकृत, अद्भुत वेश-भूषा में श्रीकृष्ण और बलराम ग्वाल-बालों के मध्य ऐसे चमक रहे हैं मानो कोई नटश्रेष्ठ रंगमंच पर नृत्य कर रहा हो।


श्लोक 9

गोप्यः किमाचरदयं कुशलं स्म वेणुः।
दामोदराधरसुधामपि गोपिकानाम्।
भुङ्‌क्ते स्वयं यदवशिष्टरसं ह्रदिन्यो।
हृष्यत्त्वचोऽश्रु मुमुचुस्तरवो यथाऽऽर्याः॥

अनुवाद:
गोपियाँ कहने लगीं – न जाने इस वेणु (बाँसुरी) ने कौन से पुण्य किए हैं जो स्वयं श्रीकृष्ण के अधरों का अमृत-रस पी रही है! यहाँ तक कि सरिताएँ भी उसके स्पर्श से आनंद विभोर हो रही हैं और वृक्ष भी प्रेमवश अश्रु बहा रहे हैं।


श्लोक 10

वृन्दावनं सखि भुवो वितनोति कीर्तिं।
यद् देवकीसुतपदाम्बु जलब्धलक्ष्मि।
गोविन्दवेणुमनु मत्तमयूरनृत्यं।
प्रेक्ष्याद्रिसान्ववरतान्यसमस्तसत्त्वम्॥

अनुवाद:
हे सखि! यह वृन्दावन धन्य है, जहाँ स्वयं श्रीकृष्ण के चरण कमलों की रज प्राप्त हुई है। श्रीकृष्ण की वेणु ध्वनि सुनकर मोर मतवाले होकर नृत्य कर रहे हैं और अन्य सभी जीव उनकी वंशी की धुन में तल्लीन हो रहे हैं।


श्लोक 11

धन्याः स्म मूढमतयोऽपि हरिण्य एता।
या नन्दनन्दनमुपात्त विचित्रवेशम्।
आकर्ण्य वेणुरणितं सहकृष्णसाराः।
पूजां दधुर्विरचितां प्रणयावलोकैः॥

अनुवाद:
ये मृगियाँ (हिरणियाँ) भी धन्य हैं, जो श्रीकृष्ण के दर्शन मात्र से विमोहित हो जाती हैं। वे अपने प्रिय कृष्णसार मृगों के साथ प्रेम भरी दृष्टि से उनका पूजन कर रही हैं।


श्लोक 12

कृष्णं निरीक्ष्य वनितोत्सवरूपशीलं
श्रुत्वा च तत्क्वणितवेणु विविक्तगीतम्।
देव्यो विमानगतयः स्मरनुन्नसारा
भ्रश्यत् प्रसूनकबरा मुमुहुर्विनीव्यः॥

अनुवाद:
स्वर्ग में स्थित देवांगनाएँ जब श्रीकृष्ण के सौंदर्य और उनके वेणु के मधुर संगीत को सुनती हैं, तो वे भी प्रेमवश व्याकुल हो जाती हैं। उनके पुष्पों के गहने ढीले पड़ जाते हैं, वे सुध-बुध खो बैठती हैं और मोहित होकर मूर्छित हो जाती हैं।


श्लोक 13

गावश्च कृष्णमुखनिर्गतवेणुगीत-
पीयूषमुत्तभितकर्णपुटैः पिबन्त्यः।
शावाः स्नुतस्तनपयःकवलाः स्म तस्थुः
गोविन्दमात्मनि दृशाश्रुकलाः स्पृशन्त्यः॥

अनुवाद:
गायें श्रीकृष्ण के मुख से निकली वेणु की मधुर ध्वनि को अमृत के समान अपने कानों से पी रही हैं। उनके बछड़े, जो उनकी गोद से दूध पी रहे थे, वे भी स्तब्ध होकर वेणु-ध्वनि में लीन हो गए। प्रेमविह्वल होकर वे अपनी आँखों से अश्रु बहाने लगीं और श्रीकृष्ण के दर्शन से ही तृप्त हो गईं।


श्लोक 14

प्रायो बताम्ब विहगा मुनयो वनेऽस्मिन्
कृष्णेक्षितं तदुदितं कलवेणुगीतम्।
आरुह्य ये द्रुमभुजान् रुचिरप्रवालान्
श्रृण्वत्यमीलितदृशो विगतान्यवाचः॥

अनुवाद:
हे माता! इस वन के पक्षी भी मानो महान योगी हैं। वे श्रीकृष्ण को निहारते हुए उनकी वेणु-ध्वनि का आस्वादन कर रहे हैं। वे वृक्षों की ऊँची डालियों पर बैठकर अपने नेत्र मूँद लेते हैं और उस संगीत को सुनते हुए ध्यानस्थ हो जाते हैं।


श्लोक 15

नद्यस्तदा तदुपधार्य मुकुन्दगीतम्
आवर्तलक्षित मनोभवभग्नवेगाः।
आलिङ्गनस्थगितमूर्मिभुजैर्मुरारेः
गृह्णन्ति पादयुगलं कमलोपहाराः॥

अनुवाद:
जब नदियाँ श्रीकृष्ण के वेणु-गीत को सुनती हैं, तो उनका प्रवाह धीरे-धीरे कम हो जाता है। प्रेम की तीव्रता से वे अपनी लहरों के माध्यम से श्रीकृष्ण के चरणों को आलिंगनबद्ध कर लेती हैं और कमल पुष्प अर्पित कर उनके प्रति अपना प्रेम प्रकट करती हैं।


श्लोक 16

दृष्ट्वाऽऽतपे व्रजपशून् सह रामगोपैः
सञ्चारयन्तमनु वेणुमुदीरयन्तम्।
प्रेमप्रवृद्ध उदितः कुसुमावलीभिः
सख्युर्व्यधात् स्ववपुषाम्बुद आतपत्रम्॥

अनुवाद:
श्रीकृष्ण जब अपने ग्वाल सखाओं के साथ गायों को चराते हुए वेणु बजा रहे थे, तो आकाश में स्थित बादल उनके प्रेम में पुलकित हो गए। वे प्रेमवश फूलों की वर्षा करने लगे और अपने शरीर से छाया कर श्रीकृष्ण के लिए छत्र (छाया) का कार्य करने लगे।


श्लोक 17

पूर्णाः पुलिन्द्य उरुगायपदाब्जराग-
श्रीकुङ्कुमेन दयितास्तनमण्डितेन।
तद्दर्शनस्मररुजस्तृणरूषितेन
लिम्पन्त्य आननकुचेषु जहुस्तदाधिम्॥

अनुवाद:
पूर्णा अर्थात गोपियाँ, यमुना किनारे विचरण करते श्रीकृष्ण के चरणों की रज से सुशोभित कुंकुम को अपने वक्षस्थल पर लगाती हैं। वे श्रीकृष्ण के दर्शन-मात्र से प्रेमविह्वल हो जाती हैं और अपनी प्रेम-व्यथा को उनके चरणों की धूल से शांत करने का प्रयास करती हैं।


श्लोक 18

हन्तायमद्रिरबला हरिदासवर्यो
यद् रामकृष्णचरणस्परशप्रमोदः।
मानं तनोति सहगोगणयोस्तयोर्यत्
पानीयसूयवस कन्दरकन्दमूलैः॥

अनुवाद:
यह पर्वत वास्तव में बहुत ही भाग्यशाली है, क्योंकि यह श्रीकृष्ण और बलराम के चरण-स्पर्श से आनंदित होता है। यह पर्वत श्रीकृष्ण और उनके गो-समूह की सेवा करता है, उन्हें मीठे जल, कोमल घास, गुफाएँ और स्वादिष्ट कंद-मूल प्रदान करता है।


श्लोक 19

गा गोपकैरनुवनं नयतोरुदार
वेणुस्वनैः कलपदैस्तनुभृत्सु सख्यः।
अस्पन्दनं गतिमतां पुलकस्तरुणां
निर्योगपाशकृत लक्षणयोर्विचित्रम्॥

अनुवाद:
जब श्रीकृष्ण अपने ग्वाल सखाओं के साथ गाएँ चराते हुए वेणु बजाते हैं, तो सभी प्राणी मोहित हो जाते हैं। जो चलने-फिरने वाले जीव हैं, वे स्थिर हो जाते हैं, और जो जड़ हैं, वे पुलकित हो उठते हैं। यह देखकर लगता है कि वेणु-ध्वनि ने सभी को अपने मोह-पाश में बाँध लिया है।


श्लोक 20

एवंविधा भगवतो या वृन्दावनचारिणः।
वर्णयन्त्यो मिथो गोप्यः क्रीडास्तन्मयतां ययुः॥

अनुवाद:
इस प्रकार, वृन्दावन में विहार करने वाले श्रीकृष्ण की इस अनुपम लीलाओं का वर्णन करते-करते गोपियाँ स्वयं उन लीलाओं में तन्मय हो गईं। वे श्रीकृष्ण की मधुर लीलाओं में ही खो गईं।


इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
दशमस्कन्धे पूर्वार्धे एकविंशोऽध्यायः॥ २१॥

(इस प्रकार श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध के 21वें अध्याय का समापन होता है।)


यह वेणुगीत श्रीकृष्ण की बांसुरी की मधुर ध्वनि के प्रभाव का अद्भुत वर्णन करता है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार श्रीकृष्ण की वेणु-ध्वनि को सुनकर प्रकृति, पशु-पक्षी, गोपियाँ, देवियाँ, सभी प्रेममय हो उठते हैं और उनका हृदय श्रीकृष्ण के प्रति अनुराग से भर जाता है।

जय श्रीकृष्ण!


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भागवत दर्शन: Venu geet: श्रीमद्भागवत महापुराण – दशम स्कंध, पूर्वार्ध, अध्याय 21 (वेणु गीत – श्रीकृष्ण की वंशी की महिमा)
Venu geet: श्रीमद्भागवत महापुराण – दशम स्कंध, पूर्वार्ध, अध्याय 21 (वेणु गीत – श्रीकृष्ण की वंशी की महिमा)
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