Shloka: "स स्निग्धोऽकुशलान्निवारयति" श्लोक एवं उसकी व्याख्या, सुविचार, संस्कृत श्लोक, संस्कृत के सुन्दर श्लोक, भागवत दर्शन, सूरज कृष्ण शास्त्री।
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Shloka: "स स्निग्धोऽकुशलान्निवारयति" श्लोक एवं उसकी व्याख्या |
श्लोक एवं उसकी व्याख्या:
शब्दार्थ:
- स स्निग्धः — वही प्रिय/स्नेही है
- अकुशलात् निवारयति — जो बुरे कर्मों से रोकता है
- तत् कर्म निर्मलं — वही कर्म शुद्ध है
- सा स्त्री यानुविधायिनी — वही स्त्री (पत्नी) उत्तम है, जो पति के सत्कर्मों का अनुकरण करती है
- स मतिमान्यः सद्भिः अभ्यर्च्यते — वही बुद्धिमान सम्माननीय है, जिसका सत्पुरुष सम्मान करते हैं
- सा श्रीः या न मदं करोति — वही संपत्ति श्रेष्ठ है, जो अहंकार न उत्पन्न करे
- स सुखी यः तृष्णया मुच्यते — वही सुखी है, जो इच्छाओं से मुक्त हो
- तत् मित्रं यदकृत्रिमं — वही मित्र सच्चा है, जो बनावटी न हो
- स पुरुषः यः खिद्यते न इन्द्रियैः — वही सच्चा पुरुष है, जो इंद्रियों के वश में न हो
व्याख्या:
यह श्लोक जीवन के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों को उजागर करता है:
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सच्चा मित्र कौन?➤ जो हमें बुरे कार्यों से रोकता है और सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है, वही सच्चा मित्र है। मित्रता का अर्थ केवल साथ निभाना नहीं, बल्कि सही और गलत का भान कराना भी है।
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श्रेष्ठ कर्म क्या है?➤ वही कर्म उत्तम और पवित्र है, जिसमें कोई मलिनता (दोष) न हो। कर्म ऐसा होना चाहिए, जो आत्मा को भी शुद्ध करे।
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उत्तम पत्नी कौन?➤ वह स्त्री उत्तम मानी जाती है, जो पति के अच्छे कार्यों का अनुसरण करे, उसका सम्मान करे और सद्गुणों को अपनाए।
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आदरणीय बुद्धिमान कौन?➤ वह विद्वान और बुद्धिमान व्यक्ति सम्मान का पात्र होता है, जिसका आदर सज्जन पुरुष करते हैं। केवल ज्ञान प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि सज्जनों में उसकी प्रतिष्ठा भी होनी चाहिए।
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संपत्ति कैसी होनी चाहिए?➤ वह धन श्रेष्ठ है, जो अभिमान उत्पन्न न करे। सच्ची संपत्ति वही है, जिससे सेवा, दान और परोपकार हो, न कि अहंकार और मद।
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सच्चा सुख किसे मिलता है?➤ वही व्यक्ति सुखी है, जो तृष्णा (अत्यधिक इच्छाओं) से मुक्त हो। इच्छाओं का अंत ही वास्तविक आनंद का आरंभ है।
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सच्चा मित्र कौन?➤ वही मित्र वास्तविक होता है, जो स्वार्थहीन और निष्कपट हो। मित्रता का आधार विश्वास और निःस्वार्थता होनी चाहिए।
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सच्चा पुरुष कौन?➤ वह व्यक्ति सच्चा पुरुष कहलाने योग्य है, जो इंद्रियों के वश में नहीं होता, बल्कि उन पर नियंत्रण रखता है। इंद्रियों पर नियंत्रण ही आत्म-संयम और आत्म-शक्ति का प्रतीक है।
निष्कर्ष:
यह श्लोक हमें सच्ची मित्रता, पवित्र कर्म, उत्तम पत्नी, विद्वान व्यक्ति, श्रेष्ठ धन, वास्तविक सुख, सच्चे मित्र और पुरुषार्थी व्यक्ति के गुणों की शिक्षा देता है। यदि हम इन आदर्शों को अपने जीवन में अपनाएँ, तो निश्चित रूप से हम एक सफल, शांतिपूर्ण और सन्मार्ग पर चलने वाला जीवन जी सकते हैं।
संस्कृत श्लोकों में जीवन के गहन सत्य और मूल्य छिपे होते हैं, जिनका अनुसरण करने से जीवन दिव्य और सार्थक बनता है।
🌸 धन्यवाद! 🙏
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