संस्कृत श्लोक: "प्रत्यहं प्रत्यवेक्षेत नरश्चरितमात्मनः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद, सुभाषितानि, सुविचार, भागवत दर्शन, सूरज कृष्ण शास्त्री। संस्कृत श्लोक
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संस्कृत श्लोक: "प्रत्यहं प्रत्यवेक्षेत नरश्चरितमात्मनः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "प्रत्यहं प्रत्यवेक्षेत नरश्चरितमात्मनः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक, शब्दार्थ, अन्वय, अनुवाद, शिक्षा
श्लोक:
शब्दार्थ:
- प्रत्यहं – प्रतिदिन
- प्रत्यवेक्षेत – निरीक्षण करे
- नरः – मनुष्य
- चरितम् – आचरण, कर्म
- आत्मनः – अपने (स्वयं के)
- किं – क्या
- नु – निश्चित रूप से, क्या सच में
- मे – मेरा
- पशुभिः – पशुओं के समान
- तुल्यम् – समान
- सत्पुरुषैः – सत्पुरुषों के समान
- इति – इस प्रकार
अन्वय (व्याकरणिक क्रम):
हिन्दी अनुवाद:
मनुष्य को प्रतिदिन अपने आचरण का निरीक्षण करना चाहिए। उसे यह विचार करना चाहिए कि उसका आचरण कहीं पशुओं के समान तो नहीं है, अथवा वह सत्पुरुषों के सदृश है?
शिक्षा:
- नियमित आत्मनिरीक्षण – हर व्यक्ति को प्रतिदिन अपने आचरण, विचार और व्यवहार का मूल्यांकन करना चाहिए।
- मनुष्य और पशु में अंतर – केवल भौतिक इच्छाओं की पूर्ति ही जीवन का उद्देश्य नहीं होना चाहिए; हमें अपने आचरण को उच्च स्तर पर ले जाना चाहिए।
- सत्पुरुषों का अनुसरण – अपने कार्यों को श्रेष्ठ व्यक्तियों के साथ तुलना कर सुधार की दिशा में बढ़ना चाहिए।
- नैतिकता और आत्म-विकास – यदि मनुष्य आत्मनिरीक्षण को अपनी दिनचर्या का भाग बना ले, तो उसका जीवन सद्गुणों से परिपूर्ण हो जाएगा और समाज में नैतिकता का उत्थान होगा।
शाब्दिक विश्लेषण
-
प्रत्यहं (प्रति + अहम्) –
- संयोग: प्रति (प्रत्येक) + अहम् (दिन)
- शब्द प्रकार: अव्यय
- अर्थ: प्रतिदिन, हर दिन
-
प्रत्यवेक्षेत (प्रति + अवेक्षेत) –
- धातु: √अवलोक् (अवेक्षते – परा० लिट् मध्यमपुरुष)
- धातु अर्थ: देखना, निरीक्षण करना
- लकार: विधिलिंग (आग्नेय आदेश)
- वचन: एकवचन
- अर्थ: निरीक्षण करे, अवलोकन करे
-
नरः (नर + सुः) –
- शब्द प्रकार: पुंलिंग, प्रथमा विभक्ति, एकवचन
- अर्थ: मनुष्य
-
चरितम् (चरित + अम्) –
- शब्द प्रकार: नपुंसकलिंग, द्वितीया विभक्ति, एकवचन
- अर्थ: आचरण, कर्म
-
आत्मनः (आत्मन् + षष्ठी विभक्ति) –
- शब्द प्रकार: पुल्लिंग, षष्ठी विभक्ति, एकवचन
- अर्थ: आत्मा का, स्वयं का
-
किं (कः + नु) –
- शब्द प्रकार: सर्वनाम
- अर्थ: क्या
-
नु –
- शब्द प्रकार: अव्यय
- अर्थ: निश्चित रूप से, क्या सच में
-
मे (मद् + चतुर्थी विभक्ति) –
- शब्द प्रकार: सर्वनाम, चतुर्थी विभक्ति, एकवचन
- अर्थ: मेरे लिए
-
पशुभिः (पशु + भिस्) –
- शब्द प्रकार: पुंलिंग, तृतीया विभक्ति, बहुवचन
- अर्थ: पशुओं के साथ, पशुओं के समान
-
तुल्यम् (तुल्य + अम्) –
- शब्द प्रकार: विशेषण, नपुंसकलिंग, द्वितीया विभक्ति, एकवचन
- अर्थ: समान, तुलनीय
-
किं (कः + नु) –
- शब्द प्रकार: सर्वनाम
- अर्थ: क्या
-
नु –
- शब्द प्रकार: अव्यय
- अर्थ: निश्चित रूप से, क्या सच में
-
सत्पुरुषैः (सत्पुरुष + भिस्) –
- शब्द प्रकार: पुंलिंग, तृतीया विभक्ति, बहुवचन
- अर्थ: सत्पुरुषों के साथ, सत्पुरुषों के समान
-
इति –
- शब्द प्रकार: अव्यय
- अर्थ: ऐसा, इस प्रकार
निष्कर्ष:
यह श्लोक हमें आत्मविश्लेषण और चरित्र-निर्माण की प्रेरणा देता है। यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने आचरण की जाँच करके उसे सुधारने का प्रयास करे, तो समाज में नैतिकता, सद्गुण और मानवता की वृद्धि होगी।
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