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संघ की हुंकार: एकता के संकल्प से भारत के परम वैभव तक! |
संघ की हुंकार: एकता के संकल्प से भारत के परम वैभव तक!
बर्धमान, पश्चिम बंगाल – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने आज एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए हिंदू समाज की एकता और संगठन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत केवल एक भूगोल नहीं, बल्कि एक विशिष्ट सांस्कृतिक स्वभाव का प्रतीक है, और इसी स्वभाव को बनाए रखना राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक है।
कार्यक्रम में हजारों स्वयंसेवकों और गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति देखी गई, जिन्होंने धूप और कठिनाइयों के बावजूद अपनी सहभागिता दर्ज कराई। भागवत ने अपने ओजस्वी संबोधन में कहा, "संघ संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना चाहता है, क्योंकि यही समाज इस राष्ट्र का उत्तरदायी वर्ग है।" उन्होंने हिंदू संस्कृति की विशिष्टता और उसकी सहिष्णुता पर चर्चा करते हुए कहा कि यह समाज विविधता में एकता का वास्तविक प्रतीक है।
संघ का उद्देश्य और राष्ट्र निर्माण
भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ किसी पद, प्रतिष्ठा या राजनीतिक स्वार्थ के लिए कार्य नहीं करता, बल्कि उसका एकमात्र उद्देश्य समाज में संगठन शक्ति का संचार करना है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे इतिहास में कई बार छोटे-छोटे समूहों में बंटा भारतीय समाज विदेशी आक्रमणकारियों का शिकार बना, और यह विभाजन ही हमारे पतन का कारण रहा।
उन्होंने इंग्लैंड के चर्चिल और महाभारत के सात्यकि-अर्जुन-कृष्ण प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताया कि संगठित समाज ही किसी राष्ट्र की असली ताकत होता है। उन्होंने यह भी कहा कि “समस्याओं का होना महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि उनसे निपटने के लिए हमारा तैयार रहना महत्वपूर्ण है।”
संघ कार्य की विशेषताएँ
भागवत ने यह भी बताया कि संघ केवल विचारों से नहीं, बल्कि शाखा साधना के माध्यम से अनुशासन, संगठन और सेवा की भावना को विकसित करता है। उन्होंने यह भी कहा कि संघ स्वयंसेवकों को समाज सेवा, कला, क्रीड़ा, पर्यावरण और अन्य क्षेत्रों में योगदान देने के लिए प्रेरित करता है, ताकि राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को गति दी जा सके।
समाज से आह्वान
अपने संबोधन के अंत में भागवत ने समाज से आग्रह किया कि वह संघ को केवल दूर से देखने के बजाय उसके साथ कदम से कदम मिलाकर कार्य करे। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ में कोई औपचारिक सदस्यता नहीं होती और जो भी राष्ट्र सेवा के इस पथ पर आना चाहता है, उसका स्वागत है।
"हम अपने लिए कुछ नहीं चाहते, हमें सिर्फ एक संगठित और सशक्त भारत चाहिए," – मोहन भागवत
यहाँ भाषण के कुछ प्रमुख बिंदु हैं:
1. संघ का उद्देश्य और संगठन की आवश्यकता
- संघ का मुख्य उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन करना है।
- हिंदू समाज को संगठित करने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि यह भारत का उत्तरदायी समाज है।
- भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक विशिष्ट संस्कृति और स्वभाव से जुड़ा राष्ट्र है।
2. भारतीय संस्कृति और हिंदू समाज की विशेषताएँ
- भारत का संस्कृतिक स्वभाव बहुत प्राचीन है, जो विविधताओं को स्वीकार करता है और सभी को एक साथ लेकर चलता है।
- हिंदू समाज विविधता में एकता के सिद्धांत पर चलता है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति, परिवार, समाज और मानवता के लिए कार्य करता है।
- स्वामी विवेकानंद, महाराणा प्रताप, भगत सिंह और अन्य महापुरुषों के उदाहरण देकर बताया गया कि भारत में केवल धनवानों की नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए त्याग करने वालों की प्रशंसा की जाती है।
3. समाज की शक्ति और संगठित समाज का महत्व
- इंग्लैंड के चर्चिल और द्वितीय विश्व युद्ध के उदाहरण से यह बताया गया कि कोई भी राष्ट्र तभी सुरक्षित और समृद्ध होता है, जब उसका समाज संगठित और संकल्पबद्ध हो।
- समस्याएँ आती हैं, लेकिन समाज यदि मजबूत हो, तो उन समस्याओं का समाधान संभव है।
- महाभारत के एक कथा-प्रसंग (सात्यकि, अर्जुन और कृष्ण की राक्षस से मुठभेड़) के माध्यम से यह समझाया गया कि धैर्य और संगठन शक्ति से ही बड़ी समस्याओं को हराया जा सकता है।
4. हिंदू समाज और उसकी एकता का महत्व
- हिंदू समाज और भारत एकरूप हैं क्योंकि यह समाज भारतीय संस्कृति के आधार पर कार्य करता है।
- हिंदू समाज का आचरण "वसुधैव कुटुंबकम" (संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानना) की भावना पर आधारित है।
- हिंदू समाज का स्वभाव शुद्ध सात्विक प्रेम और त्याग पर आधारित है, और इसी भावना के साथ संघ कार्य कर रहा है।
5. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य और उसकी कार्यपद्धति
- संघ का कार्य केवल विचारों पर आधारित नहीं है, बल्कि शाखा में नित्य साधना और अनुशासन के माध्यम से स्वयंसेवकों का निर्माण किया जाता है।
- 100 वर्षों से संघ समाज को संगठित करने का कार्य कर रहा है, और आज यह देश के हर क्षेत्र में सक्रिय है।
- समाज में सेवा प्रकल्प, कला, क्रीड़ा, सामाजिक कार्य, और सांस्कृतिक उत्थान के लिए स्वयंसेवक कार्य कर रहे हैं।
6. संघ के प्रति गलतफहमियाँ और संघ को समझने का आग्रह
- संघ को लेकर गलतफहमियाँ और दुष्प्रचार होते रहते हैं, लेकिन इसे केवल बाहर से देखने से समझा नहीं जा सकता।
- संघ में कोई औपचारिक सदस्यता नहीं होती, जो चाहे आ सकता है और जिसे ठीक न लगे, वह छोड़ सकता है।
- संघ में आने वाले को स्वार्थ से मुक्त होकर सेवा भाव से कार्य करना पड़ता है।
7. हिंदू समाज और भारत के भविष्य के लिए संघ की अपील
- भारत को परम वैभव संपन्न बनाने के लिए हिंदू समाज को संगठित करना आवश्यक है।
- यदि हिंदू समाज एकजुट होगा, तो भारत विश्व कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ेगा।
- संघ केवल अपने विस्तार के लिए नहीं, बल्कि समाज की जागृति और संगठन के लिए कार्य कर रहा है।
निष्कर्ष
यह भाषण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दृष्टिकोण, संगठन के उद्देश्य, भारतीय संस्कृति की विशेषताओं, और हिंदू समाज की एकता के महत्व को स्पष्ट करता है। भाषण में महापुरुषों, ऐतिहासिक प्रसंगों, और वर्तमान परिस्थितियों के उदाहरण देकर यह समझाया गया कि समाज को जागरूक और संगठित करने की प्रक्रिया ही राष्ट्र के उत्थान का मार्ग है।
यदि आप किसी विशेष हिस्से का विश्लेषण चाहते हैं या कोई प्रश्न है, तो बताइए!
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