भागवत तृतीय स्कंध, द्वादश अध्याय (श्लोक सहित हिंदी अनुवाद), श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कंध, द्वादश अध्याय (श्लोक सहित हिंदी अनुवाद), इति ते वर्णितः
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भागवत तृतीय स्कंध, द्वादश अध्याय (श्लोक सहित हिंदी अनुवाद) |
भागवत तृतीय स्कंध, द्वादश अध्याय (श्लोक सहित हिंदी अनुवाद)
श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कंध, द्वादश अध्याय
(श्लोक सहित हिंदी अनुवाद)
ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का विस्तार
श्लोक 1
श्लोक 2
श्लोक 3
श्लोक 4
श्लोक 5
श्लोक 6
श्लोक 7
श्लोक 8
श्लोक 9
श्लोक 10
श्लोक 11
श्लोक 12
श्लोक 13
श्लोक 14
श्लोक 15
रुद्र द्वारा सृष्टि और ब्रह्मा की चिंता
श्लोक 16
श्लोक 17
श्लोक 18
श्लोक 19
श्लोक 20
ब्रह्मा द्वारा दस प्रमुख ऋषियों की उत्पत्ति
श्लोक 21
श्लोक 22
श्लोक 23
श्लोक 24
धर्म और अधर्म की उत्पत्ति
श्लोक 25
श्लोक 26
श्लोक 27
ब्रह्मा की पुत्री वाणी (सरस्वती) की उत्पत्ति और मोह
श्लोक 28
श्लोक 29
श्लोक 30
श्लोक 31
ब्रह्मा का आत्मसंयम और दिशाओं की उत्पत्ति
श्लोक 32
श्लोक 33
श्लोक 34
तां दिशो जगृहुर्घोरां नीहारं यद्विदुस्तमः ॥३४॥
ब्रह्मा द्वारा वेदों की उत्पत्ति
श्लोक 35
श्लोक 36
विदुर का प्रश्न
श्लोक 37
ब्रह्मा द्वारा वेदों और शास्त्रों की रचना
श्लोक 38
श्लोक 39
- आयुर्वेद (चिकित्सा विज्ञान)
- धनुर्वेद (युद्ध विज्ञान)
- गांधर्व वेद (संगीत और नृत्य कला)
- स्थापत्य वेद (वास्तुशास्त्र)
श्लोक 40
श्लोक 41
श्लोक 42
- विद्या (ज्ञान)
- दान (परोपकार)
- तप (साधना)
- सत्य (सत्यता)
साथ ही, उन्होंने प्रत्येक आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, और संन्यास) के लिए उचित आचरण और आजीविका का भी निर्धारण किया।
संन्यास आश्रम की विविध शाखाएँ
श्लोक 43
- सावित्र (साधारण गृहस्थ जीवन)
- प्राजापत्य (पुत्रोत्पत्ति में संलग्न गृहस्थ)
- ब्राह्म (धार्मिक जीवन जीने वाले)
- बृहत्त (त्यागपूर्ण गृहस्थ)
श्लोक 44
- कुटीचक (गृह के पास तपस्या करने वाले)
- बह्वोद (ज्ञान प्राप्ति में संलग्न)
- हंस (स्वतंत्र रूप से घूमने वाले)
- निष्क्रिय (परम ध्यानमग्न)
प्रणव (ॐ) और सप्त छंदों की उत्पत्ति
श्लोक 45
- उष्णिक (रोम से)
- गायत्री (त्वचा से)
- त्रिष्टुप (मांस से)
- अनुष्टुप (मज्जा से)
- जगती (अस्थियों से)
प्रणव (ॐ) और सप्त छंदों की उत्पत्ति (जारी)
श्लोक 46
श्लोक 47
श्लोक 48
ब्रह्मा द्वारा ऋषियों की उत्पत्ति
श्लोक 49
श्लोक 50
श्लोक 51
ब्रह्मा का शरीर दो भागों में विभाजित हुआ
श्लोक 52
श्लोक 53
मनु और शतरूपा से मानव सृष्टि का विस्तार
श्लोक 54
श्लोक 55
श्लोक 56
अध्याय सारांश:
इस अध्याय में ब्रह्मा द्वारा वेदों, उपवेदों, शास्त्रों, ऋषियों, प्रणव (ॐ) और मानव सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन किया गया।
- रुद्र की उत्पत्ति और उनके द्वारा सृष्टि के विनाशकारी रूप को देखकर ब्रह्मा ने उन्हें तपस्या करने के लिए कहा।
- दस प्रमुख ऋषियों (मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष, और नारद) की उत्पत्ति हुई।
- चार वेदों, चार उपवेदों, इतिहास-पुराण, और शास्त्रों की उत्पत्ति हुई।
- ब्रह्मा ने धर्म, अधर्म, काम, क्रोध, लोभ, वाणी, तथा अन्य भावनाओं की सृष्टि की।
- मनु और शतरूपा की उत्पत्ति से मानव समाज का विकास प्रारंभ हुआ।
- मनु के पुत्र-पुत्रियों से आगे चलकर संपूर्ण सृष्टि की विस्तार हुआ।
(अध्याय समाप्त)
अब संपूर्ण अध्याय का हिंदी अनुवाद पूरा हुआ। यदि आप किसी विशेष श्लोक की व्याख्या या चित्रण चाहते हैं, तो बताइए!
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