मत चूको चौहान: वसंत पंचमी का शौर्य – वीर पृथ्वीराज चौहान की गौरवगाथा, ऐतिहासिक घटनाएं, भागवत दर्शन,सूरज कृष्ण शास्त्री,पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी
मत चूको चौहान: वसंत पंचमी का शौर्य – वीर पृथ्वीराज चौहान की गौरवगाथा
वसंत पंचमी केवल विद्या और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की आराधना का पर्व ही नहीं, बल्कि यह दिन हमें हिन्द शिरोमणि सम्राट पृथ्वीराज चौहान के अद्भुत शौर्य और आत्मबलिदान की याद भी दिलाता है। इसी दिन, 1192 ईस्वी में, उन्होंने अपने पराक्रम और वीरता से इतिहास में अमर स्थान प्राप्त किया।
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी का संघर्ष
सम्राट पृथ्वीराज चौहान, जिन्हें उनके अद्वितीय युद्ध-कौशल और शौर्य के लिए जाना जाता है, ने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े। उन्होंने विदेशी आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और हर बार अपनी राजधर्म के अनुरूप उसे जीवनदान दिया।
परंतु, जब सत्रहवीं बार युद्ध हुआ, तो इस बार दुर्भाग्यवश पृथ्वीराज पराजित हो गए। मोहम्मद गौरी, जो पहले ही कई बार हार का अपमान झेल चुका था, ने इस बार पृथ्वीराज को जीवनदान नहीं दिया। उसने उन्हें बंदी बना लिया और काबुल, अफगानिस्तान ले गया।
कैद में वीर सम्राट का साहस
काबुल पहुँचने के बाद गौरी ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं। उसने सम्राट पृथ्वीराज की आंखें फोड़ दीं, जिससे वे पूर्णतः अंधे हो गए। मगर, सम्राट की वीरता और स्वाभिमान अब भी अडिग था।
इस बीच, उनके प्रिय राजकवि चंदबरदाई को जब यह समाचार मिला, तो उन्होंने अपने सम्राट को मुक्त कराने और उनके सम्मान की रक्षा करने की योजना बनाई। वे छलपूर्वक काबुल पहुँचे और गौरी से मिलने की युक्ति खोजी।
शब्दभेदी बाण – एक योजना का प्रारंभ
चंदबरदाई ने गौरी को यह बताया कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने में निपुण हैं। वे केवल ध्वनि को सुनकर ही अपने लक्ष्य को भेद सकते हैं। उसने गौरी को यह प्रदर्शन देखने के लिए आमंत्रित किया और कहा कि सम्राट अपने कौशल से लोहे के सात तवे भेद सकते हैं।
गौरी को यह सुनकर आश्चर्य हुआ और उसने पृथ्वीराज के इस कौशल को देखने की अनुमति दे दी। उसने अपने सभी प्रमुख दरबारियों को भी इस आयोजन के लिए बुलाया।
दरबार में अंतिम युद्ध
निश्चित दिन दरबार सजा, और गौरी एक ऊँचे मंच पर बैठा। सम्राट पृथ्वीराज को उनकी बेड़ियों से मुक्त कर दिया गया और उनके हाथों में धनुष-बाण थमाया गया।
चंदबरदाई ने अपने वीर सम्राट की बिरुदावली गाते हुए निम्न पंक्तियाँ उच्चारित कीं—
इसका अर्थ था— चार बांस (12 फीट), चौबीस गज (72 फीट), और आठ अंगुल की ऊँचाई पर सुल्तान बैठा है, हे चौहान, चूकना मत!
यह पंक्ति सुनते ही पृथ्वीराज चौहान को सुल्तान की सटीक स्थिति का आभास हो गया।
चंदबरदाई ने फिर गौरी से कहा कि चूँकि सम्राट आपके बंदी हैं, इसलिए आप स्वयं उन्हें आज्ञा दें, ताकि वे अपने शब्दभेदी बाण का प्रदर्शन करें।
जैसे ही गौरी ने सम्राट को आज्ञा दी, पृथ्वीराज ने उसी क्षण ध्वनि की दिशा को भांप लिया और अपने तीव्रतम शब्दभेदी बाण से गौरी का वध कर दिया। बाण सीधे जाकर गौरी के सीने में लगा, और वह उसी क्षण धरती पर गिरकर प्राणहीन हो गया।
गौरी के मरते ही दरबार में हाहाकार मच गया। चारों ओर भगदड़ मच गई।
सम्राट का अंतिम बलिदान
गौरी की हत्या के पश्चात चंदबरदाई और पृथ्वीराज जानते थे कि वे अब जीवित नहीं बच सकते। अतः उन्होंने पहले से ही एक योजना बनाई थी कि वे किसी भी हाल में शत्रु के हाथों मारे नहीं जाएँगे।
उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा, कटार निकाली और परस्पर एक-दूसरे को भेदकर आत्मबलिदान कर दिया।
इस प्रकार, वसंत पंचमी के दिन वीर सम्राट पृथ्वीराज चौहान और उनके प्रिय मित्र चंदबरदाई ने मातृभूमि की गरिमा और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
वीरता की प्रेरणा
पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई की यह कथा वीरता, स्वाभिमान और देशभक्ति की अद्वितीय मिसाल है। यह कथा हमें सिखाती है कि पराजय के बाद भी किसी को झुकना नहीं चाहिए और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अंतिम क्षण तक संघर्ष करना चाहिए।
इस गौरवपूर्ण गाथा को हमें अपने बच्चों को अवश्य सुनाना चाहिए, ताकि वे अपनी संस्कृति, इतिहास और पूर्वजों के पराक्रम से प्रेरणा ले सकें।
वंदे मातरम्!
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