"सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी: 'रेवड़ी संस्कृति' से मेहनतकशों पर बोझ, अर्थव्यवस्था पर संकट!"सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, फ्रीबीज. Bhagwat Darshan
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"सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी: 'रेवड़ी संस्कृति' से मेहनतकशों पर बोझ, अर्थव्यवस्था पर संकट!" |
"सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी: 'रेवड़ी संस्कृति' से मेहनतकशों पर बोझ, अर्थव्यवस्था पर संकट!"
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सरकारी योजनाओं के तहत दी जाने वाली मुफ्त सुविधाओं (फ्रीबीज) को लेकर सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि इस तरह की रेवड़ी संस्कृति से लोगों में काम करने की प्रवृत्ति कम हो रही है और आर्थिक असंतुलन बढ़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
- जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने टिप्पणी की कि "जो लोग मेहनत कर रहे हैं, वे करों का भुगतान कर रहे हैं, जबकि काम न करने वालों को मुफ्त की सुविधाएं दी जा रही हैं।"
- कोर्ट ने सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि "उनके पास उन लोगों को मुफ्त सुविधाएं देने के लिए पर्याप्त धन है जो काम नहीं कर रहे, लेकिन जिला अदालतों में न्यायाधीशों के वेतन और पेंशन के लिए वे पैसे की कमी का हवाला देते हैं।"
- इस टिप्पणी के बाद यह बहस फिर से तेज हो गई कि क्या फ्रीबीज देना एक अच्छी नीति है या इससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
- मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि चुनावी वादों में मुफ्त योजनाओं की घोषणा को रोकने के लिए आयोग के पास सीमित अधिकार हैं, क्योंकि यह पूरी तरह एक आर्थिक विषय है।
- हालांकि, चुनाव आयोग अब एक नया प्रपत्र ला रहा है, जिसमें राजनीतिक दलों को यह बताना होगा कि वे जिन फ्रीबीज का वादा कर रहे हैं, उनके लिए धन कहां से आएगा और इसका आर्थिक प्रभाव क्या होगा।
'रेवड़ी संस्कृति' पर पुरानी बहस
- यह मुद्दा पहली बार तब जोर पकड़ता दिखा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 'रेवड़ी संस्कृति' कहकर इसकी आलोचना की थी।
- इस पर बहस दो धाराओं में बंटी है:
- समर्थकों का तर्क: गरीबों को सरकारी सहायता मिलनी चाहिए ताकि वे मूलभूत सुविधाओं से वंचित न रहें।
- विरोधियों का तर्क: यह योजनाएं राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) को बढ़ाती हैं और जनता को काम करने से हतोत्साहित करती हैं।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- विशेषज्ञों का मानना है कि फ्रीबीज का सीधा असर सरकारी खजाने पर पड़ता है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास प्रभावित होता है।
- उदाहरण के लिए, पंजाब, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में मुफ्त बिजली, राशन और अन्य सुविधाओं के कारण कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ा है।
- RBI की एक रिपोर्ट में भी चेतावनी दी गई थी कि कुछ राज्य अत्यधिक कर्ज और मुफ्त सुविधाओं की वजह से दिवालियापन की ओर बढ़ सकते हैं।
क्या समाधान हो सकता है?
- फ्रीबीज की स्पष्ट परिभाषा:
- सरकार को तय करना होगा कि कौन-सी मुफ्त सुविधाएं जरूरी हैं और कौन-सी सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के तहत दी जा रही हैं।
- आर्थिक संतुलन:
- राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके चुनावी वादों से राज्य की अर्थव्यवस्था पर बोझ न बढ़े।
- शिक्षा और कौशल विकास पर जोर:
- मुफ्त योजनाओं के बजाय शिक्षा और रोजगार बढ़ाने की योजनाओं पर ध्यान देने की जरूरत है।
- चुनावी सुधार:
- चुनाव आयोग के नए प्रस्ताव के अनुसार, पार्टियों को अपने घोषणापत्र में यह स्पष्ट करना होगा कि वे मुफ्त योजनाओं के लिए धन कहां से लाएंगे।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी संकेत देती है कि सरकारों को मुफ्त सुविधाएं देने से पहले उनकी वित्तीय स्थिरता का आकलन करना चाहिए। चुनाव आयोग भी इस पर सख्ती दिखा सकता है। हालांकि, यह बहस जारी है कि गरीबों की मदद के लिए सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए और किस हद तक फ्रीबीज दी जानी चाहिए।
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