संस्कृत श्लोक: "मुखं प्रसन्नं विमला च दृष्टिः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद, सुभाषितानि,सुविचार,संस्कृत श्लोक, भागवत दर्शन, सूरज कृष्ण शास्त्री।
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संस्कृत श्लोक: "मुखं प्रसन्नं विमला च दृष्टिः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "मुखं प्रसन्नं विमला च दृष्टिः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक का विश्लेषण
यह श्लोक एक व्यक्ति के भाव-व्यवहार के आधार पर उसके अंतःकरण की स्थिति को प्रकट करता है। किसी व्यक्ति की आंतरिक प्रसन्नता, स्नेह और अनुराग उसके बाह्य हावभाव में किस प्रकार व्यक्त होते हैं, इसका सुंदर वर्णन इसमें किया गया है।
शब्दवार व्याख्या:
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मुखं प्रसन्नं –→ जिसका मुख प्रसन्न हो, अर्थात जो हृदय से प्रसन्नचित्त हो, वही अपने चेहरे पर वास्तविक आनंद प्रकट कर सकता है। यह प्रसन्नता दिखावटी नहीं होती, बल्कि सहज रूप से चेहरे पर झलकती है।
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विमला च दृष्टिः –→ विमला अर्थात् निर्मल, स्वच्छ। जिसका मन शुद्ध और स्पष्ट हो, उसकी दृष्टि भी स्वच्छ और कोमल होती है। निर्मल दृष्टि व्यक्ति के मन की पवित्रता को दर्शाती है।
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कथानुरागो –→ वार्तालाप या संवाद में सच्ची रुचि होना। जब कोई व्यक्ति वार्तालाप में रुचि दिखाता है, तो वह केवल शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं होता, बल्कि मन और आत्मा से उसमें संलग्न होता है। यह उसकी आतंरिक सहानुभूति और जुड़ाव को दर्शाता है।
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मधुरा च वाणी –→ मधुर वाणी व्यक्ति के संतुलित एवं प्रेमपूर्ण स्वभाव को व्यक्त करती है। कठोर या कटु वचन किसी के प्रति अश्रद्धा या उपेक्षा को दर्शाते हैं, जबकि मधुर वाणी स्नेह और अपनत्व को प्रकट करती है।
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स्नेहोऽधिकः –→ जिसमें स्नेह अधिक हो, अर्थात् जो व्यक्ति अपने सामने वाले से विशेष प्रेम और आत्मीयता रखता हो। यह भाव स्वार्थहीन प्रेम और वास्तविक अपनत्व को दर्शाता है।
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सम्भ्रमदर्शनं च –→ सम्भ्रम का अर्थ होता है आदर और सम्मान। जिसका व्यवहार सत्कारपूर्ण और सम्मानसूचक हो, वही वास्तव में सामने वाले व्यक्ति के प्रति सच्ची आत्मीयता रखता है।
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सदानुरक्तस्य जनस्य लक्ष्म –→ सदैव अनुरक्त (प्रेम और सम्मान से युक्त) रहने वाले व्यक्ति के यही लक्षण होते हैं। इस प्रकार का व्यक्ति केवल औपचारिकता नहीं निभाता, बल्कि वह हृदय से जुड़ाव और सम्मान का भाव रखता है।
सारांश:
यह श्लोक दर्शाता है कि जब कोई व्यक्ति वास्तविक प्रेम और सम्मान से किसी के प्रति अनुरक्त होता है, तो उसके हावभाव में स्वाभाविक रूप से कुछ विशेष लक्षण दिखाई देते हैं—
- उसका चेहरा प्रसन्न होता है,
- उसकी दृष्टि निर्मल होती है,
- वह वार्तालाप में रुचि लेता है,
- उसकी वाणी मधुर होती है,
- उसका व्यवहार प्रेमपूर्ण होता है,
- और उसमें विशेष सम्मान का भाव झलकता है।
इन गुणों से युक्त व्यक्ति दूसरों के लिए प्रिय बन जाता है और समाज में सम्मान प्राप्त करता है।
कहानी: सच्चे अनुराग के लक्षण
काशी नगर में एक प्रसिद्ध विद्वान आचार्य वसुदेव रहते थे। उनके पास दूर-दूर से शिष्य अध्ययन करने आते थे। वे केवल शास्त्रों की शिक्षा ही नहीं देते थे, बल्कि आचरण और व्यवहार की शिक्षा भी देते थे।
एक दिन उनके आश्रम में दो नए शिष्य आए—अर्जुन और माधव। वे दोनों बड़े बुद्धिमान थे, परंतु स्वभाव में भिन्नता थी। अर्जुन गंभीर था, कम बोलता था और केवल ज्ञान अर्जित करने में रुचि रखता था। माधव हंसमुख था, सबके साथ प्रेमपूर्वक वार्तालाप करता था और हमेशा अपने गुरु तथा सहपाठियों का सम्मान करता था।
सभी शिष्य अपने-अपने उत्तर देने लगे। अर्जुन ने शास्त्रों से उदाहरण देते हुए कहा, "जो व्यक्ति सच्चा ज्ञानी होता है, वही प्रसन्न रह सकता है। उसे बाहरी व्यवहार की आवश्यकता नहीं होती।"
माधव ने उत्तर दिया, "गुरुदेव! जब कोई व्यक्ति किसी से वार्तालाप करता है और वास्तव में उससे प्रेम करता है, तो उसके मुख पर स्वाभाविक प्रसन्नता होती है, उसकी दृष्टि निर्मल होती है, उसकी वाणी मधुर होती है और उसका व्यवहार स्नेहपूर्ण तथा सम्मानसूचक होता है।"
गुरु वसुदेव मुस्कुराए और बोले, "माधव ने जो कहा, वही सत्य है। यदि किसी के मन में सच्चा अनुराग है, तो वह छल-कपट से मुक्त होगा, उसकी आँखों में निर्मलता होगी, उसकी वाणी मधुर होगी और उसका व्यवहार दूसरों के प्रति प्रेम तथा सम्मान से भरा होगा।"
इसके बाद, अर्जुन ने भी अपने व्यवहार को बदला और केवल ज्ञान अर्जित करने के स्थान पर दूसरों के साथ आत्मीयता से व्यवहार करने का प्रयास किया। धीरे-धीरे सभी शिष्य इस सीख को अपनाने लगे और आश्रम में प्रेम, मधुरता और सम्मान का वातावरण बन गया।
शिक्षा:
सच्चा अनुराग केवल मन में नहीं, बल्कि हमारे मुख, वाणी, दृष्टि और व्यवहार में भी प्रकट होता है।
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