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महाभारत कथा: होनी बहुत बलवान है |
महाभारत कथा: होनी बहुत बलवान है
🔹 जन्मेजय का अभिमान और वेदव्यास जी से संवाद
महाभारत के युद्ध के बाद राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय हस्तिनापुर के राजा बने। एक दिन वे वेदव्यास जी के पास पहुंचे और चर्चा के दौरान उन्होंने नाराजगी भरे शब्दों में कहा—
"गुरुदेव! जब महाभारत के युद्ध के समय आप स्वयं वहाँ थे, भगवान श्रीकृष्ण थे, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य जैसे महान ज्ञानी और धर्मराज युधिष्ठिर जैसे सत्यनिष्ठ राजा वहाँ उपस्थित थे, तो फिर भी युद्ध को क्यों नहीं रोका गया? इतने महान लोग होते हुए भी इतना भयंकर विनाश क्यों हुआ? यदि मैं उस समय उपस्थित होता, तो अपने पुरुषार्थ से इस विनाश को रोक सकता था।"
🔹 वेदव्यास जी की भविष्यवाणी
व्यास जी ने जन्मेजय को उसकी आगामी जीवन-घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन किया—
🔹 होनी के समय को कोई नहीं टाल सकता
जन्मेजय ने शिकार पर जाना छोड़ दिया। परंतु जब होनी का समय आया, तो उसके भीतर शिकार पर जाने की बलवती इच्छा जागृत हुई। उसने सोचा कि 'मैं काला घोड़ा नहीं लूंगा', लेकिन उस दिन अस्तबल में केवल काला घोड़ा ही मिला। उसने फिर सोचा 'मैं दक्षिण दिशा में नहीं जाऊंगा', परंतु घोड़ा अनियंत्रित होकर दक्षिण दिशा की ओर ही भागा और समुद्र तट पर पहुंचा।
वहीं उसने एक सुंदर स्त्री को देखा और उस पर मोहित हो गया। जन्मेजय ने ठान लिया कि 'मैं इसे महल तो ले जाऊंगा, लेकिन विवाह नहीं करूंगा।' परंतु कुछ समय बाद उस स्त्री के प्रेम में पड़कर उसने विवाह भी कर लिया।
फिर रानी के कहने पर राजा ने यज्ञ किया। व्यास जी की चेतावनी के बावजूद, यज्ञ के लिए युवा ब्राह्मणों को ही बुलाया गया।
यज्ञ के दौरान किसी प्रसंग में युवा ब्राह्मण रानी पर हंस पड़े। इससे रानी क्रोधित हो गई और जन्मेजय से उनकी सजा की मांग की।
राजा ने क्रोध में आकर सभी युवा ब्राह्मणों को प्राणदंड दे दिया।
अब जन्मेजय घबरा गया और तुरंत वेदव्यास जी के पास पहुंचा।
🔹 महाभारत कथा श्रवण – अंतिम अवसर
अब तक जन्मेजय को व्यास जी की बातों पर पूर्ण विश्वास हो चुका था। उसने संकल्प लिया कि वह पूरी श्रद्धा और विश्वास से कथा श्रवण करेगा।
🔹 अविश्वास के कारण बचा हुआ कुष्ठ रोग
महाभारत कथा का श्रवण प्रारंभ हुआ।
फिर व्यास जी ने अपनी मंत्र शक्ति से आकाश में घूम रहे हाथियों को पृथ्वी की ओर खींचा, और वे नीचे गिरने लगे।
यह देखकर जन्मेजय को अपनी भूल का अहसास हुआ।
🔹 सारांश एवं शिक्षा
👉 इसलिए अहंकार से बचना चाहिए और भाग्य एवं ईश्वर की शक्ति को स्वीकार करना चाहिए।
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