भागवत प्रथम स्कन्ध, दशम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)।नीचे दिए गए भागवत प्रथम स्कन्ध, दशम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के श्लोकों का हिन्दी अनुवाद क्रमशः प्रस्तुत...
भागवत प्रथम स्कन्ध, दशम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)
नीचे दिए गए भागवत प्रथम स्कन्ध, दशम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के श्लोकों का हिन्दी अनुवाद क्रमशः प्रस्तुत किया गया है:
श्लोक 1
शौनक उवाच
हत्वा स्वरिक्थस्पृध आततायिनो
युधिष्ठिरो धर्मभृतां वरिष्ठः।
सहानुजैः प्रत्यवरुद्धभोजनः
कथं प्रवृत्तः किमकारषीत्ततः॥
हिन्दी अनुवाद:
शौनक ने पूछा: धर्मराज युधिष्ठिर ने जो अपने अधिकार के विरोधी आततायियों का वध किया और अपने भाइयों सहित भोजन में भी बाधा पाए, वे उसके बाद कैसे प्रवृत्त हुए? उन्होंने क्या किया?
श्लोक 2
सूत उवाच
वंशं कुरोर्वंशदवाग्निनिर्हृतं
संरोहयित्वा भवभावनो हरिः।
निवेशयित्वा निजराज्य ईश्वरो
युधिष्ठिरं प्रीतमना बभूव ह॥
हिन्दी अनुवाद:
सूत जी बोले: संसार के उद्धारक भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुवंश को, जो दावानल से विनष्ट हो चुका था, पुनः स्थापित किया। युधिष्ठिर को उनके राज्य में पुनः बैठाकर भगवान अत्यंत प्रसन्न हुए।
श्लोक 3
निशम्य भीष्मोक्तमथाच्युतोक्तं
प्रवृत्त विज्ञान विधूत विभ्रमः।
शशास गामिन्द्र इवाजिताश्रयः
परिध्युपान्तां अनुजानुवर्तितः॥
हिन्दी अनुवाद:
भीष्म और श्रीकृष्ण के उपदेशों को सुनकर, जो अज्ञान के भ्रम को दूर करते थे, युधिष्ठिर ने अपने संपूर्ण राज्य का शासन वैसा ही किया जैसे इन्द्र करते हैं। वे भगवान श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करते रहे।
श्लोक 4
कामं ववर्ष पर्जन्यः सर्वकामदुघा मही।
सिषिचुः स्म व्रजान् गावः पयसोधस्वतीर्मुदा॥
हिन्दी अनुवाद:
उस समय पर्जन्य (मेघ) सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले वर्षा करते थे, और धरती समृद्ध थी। गौएँ आनंदपूर्वक प्रचुर दूध देती थीं।
श्लोक 5
नद्यः समुद्रा गिरयः सवनस्पतिवीरुधः।
फलन्त्योषधयः सर्वाः कामं अन्वृतु तस्य वै॥
हिन्दी अनुवाद:
नदियाँ, समुद्र, पर्वत, वनस्पतियाँ, लताएँ और औषधियाँ, सभी इच्छाओं को पूर्ण करती थीं। युधिष्ठिर के शासन में सब कुछ कल्याणकारी था।
श्लोक 6
नाधयो व्याधयः क्लेशा दैवभूतात्महेतवः।
अजातशत्रौ अवभवन् जन्तूनां राज्ञि कर्हिचित्॥
हिन्दी अनुवाद:
राजा अजातशत्रु (युधिष्ठिर) के राज्य में किसी भी प्राणी को दैविक, भौतिक, या आत्मिक कष्ट नहीं था। न ही किसी को रोग, शोक या क्लेश होता था।
श्लोक 7
उषित्वा हास्तिनपुरे मासान् कतिपयान् हरिः।
सुहृदां च विशोकाय स्वसुश्च प्रियकाम्यया॥
हिन्दी अनुवाद:
श्रीकृष्ण ने हस्तिनापुर में कुछ महीने बिताए ताकि अपने मित्रों और स्वजनों को शोकमुक्त कर सकें और अपनी प्रिय बहन सुभद्रा को प्रसन्न कर सकें।
नीचे शेष श्लोकों का क्रमशः हिन्दी अनुवाद दिया गया है:
श्लोक 8
आमंत्र्य चाभ्यनुज्ञातः परिष्वज्याभिवाद्य तम्।
आरुरोह रथं कैश्चित् परिष्वक्तोऽभिवादितः॥
हिन्दी अनुवाद:
श्रीकृष्ण ने सभी से विदा ली, उनसे अनुमति प्राप्त की, प्रेमपूर्वक गले लगाया और आदरपूर्वक अभिवादन किया। फिर वे रथ पर सवार हुए, जिन्हें प्रेमपूर्वक विदा किया गया।
श्लोक 9
सुभद्रा द्रौपदी कुन्ती विराटतनया तथा।
गान्धारी धृतराष्ट्रश्च युयुत्सुः गौतमो यमौ॥
हिन्दी अनुवाद:
सुभद्रा, द्रौपदी, कुन्ती, विराट की कन्या (उत्तर), गांधारी, धृतराष्ट्र, युयुत्सु, कृपाचार्य और नकुल-सहदेव आदि सभी उन्हें विदा देने आए।
श्लोक 10
वृकोदरश्च धौम्यश्च स्त्रियो मत्स्यसुतादयः।
न सेहिरे विमुह्यन्तो विरहं शार्ङ्गधन्वनः॥
हिन्दी अनुवाद:
भीम, धौम्य और अन्य स्त्रियाँ जैसे विराट की पुत्री और अन्य सदस्य श्रीकृष्ण के वियोग को सहन नहीं कर पा रहे थे और अत्यंत व्याकुल थे।
श्लोक 11
सत्सङ्गात् मुक्तदुःसङ्गो हातुं नोत्सहते बुधः।
कीर्त्यमानं यशो यस्य सकृत् आकर्ण्य रोचनम्॥
हिन्दी अनुवाद:
सज्जनों के संग से जो व्यक्ति सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है, वह भी श्रीकृष्ण के यश का वर्णन सुनकर उनसे दूर नहीं रह सकता।
श्लोक 12
तस्मिन् न्यस्तधियः पार्थाः सहेरन् विरहं कथम्।
दर्शनस्पर्शसंलाप शयनासन भोजनैः॥
हिन्दी अनुवाद:
पार्थ (पाण्डव), जिन्होंने अपना मन श्रीकृष्ण में लगा दिया था, उनके दर्शन, स्पर्श, संवाद, शयन, आसन और भोजन के बिना उनके वियोग को कैसे सह सकते थे?
श्लोक 13
सर्वे तेऽनिमिषैः अक्षैः तं अनु द्रुतचेतसः।
वीक्षन्तः स्नेहसम्बद्धा विचेलुस्तत्र तत्र ह॥
हिन्दी अनुवाद:
सभी पाण्डव, जिनकी दृष्टि श्रीकृष्ण पर स्थिर थी, अत्यंत व्याकुल मन से उन्हें निहारते हुए और स्नेह से बंधे हुए, यहाँ-वहाँ विचलित हो रहे थे।
श्लोक 14
न्यरुन्धन् उद्गलत् बाष्पं औत्कण्ठ्यात् देवकीसुते।
निर्यात्यगारात् नोऽभद्रं इति स्यात् बान्धवस्त्रियः॥
हिन्दी अनुवाद:
देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण के विदा होने पर घर की स्त्रियाँ, अत्यंत उत्कंठा से आँसुओं को रोकने का प्रयास करती रहीं ताकि अशुभ संकेत न हो।
श्लोक 15
मृदङ्गशङ्खभेर्यश्च वीणापणव गोमुखाः।
धुन्धुर्यानक घण्टाद्या नेदुः दुन्दुभयस्तथा॥
हिन्दी अनुवाद:
श्रीकृष्ण की विदाई के समय मृदंग, शंख, भेरी, वीणा, पनव, गोमुख, धुंधुरी, आनक और घंटा जैसे वाद्ययंत्रों की ध्वनि गूँजने लगी।
श्लोक 16
प्रासादशिखरारूढाः कुरुनार्यो दिदृक्षया।
ववृषुः कुसुमैः कृष्णं प्रेमव्रीडास्मितेक्षणाः॥
हिन्दी अनुवाद:
कुरुवंश की नारियाँ, जो महलों की छतों पर खड़ी होकर श्रीकृष्ण को देखने आईं थीं, उनके ऊपर प्रेम, लज्जा और मुस्कान भरी दृष्टि से पुष्पों की वर्षा कर रही थीं।
नीचे शेष श्लोकों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है:
श्लोक 17
सितातपत्रं जग्राह मुक्तादामविभूषितम्।
रत्नदण्डं गुडाकेशः प्रियः प्रियतमस्य ह॥
हिन्दी अनुवाद:
श्रीकृष्ण ने सुगंधित और सफेद वस्त्र पहनकर, मुक्ताहार और आभूषणों से सुसज्जित, रत्न से जड़ी हुई छड़ी (दण्ड) पकड़ी, जो उनके प्रियतम रुक्मिणी के लिए थी।
श्लोक 18
उद्धवः सात्यकिश्चैव व्यजने परमाद्भुते।
विकीर्यमाणः कुसुमै रेजे मधुपतिः पथि॥
हिन्दी अनुवाद:
उद्धव और सात्यकि ने विशेष रूप से पुण्यपूर्ण स्थानों पर श्रीकृष्ण के मार्ग का अनुसरण किया, और मधुपतिं (श्रीकृष्ण) को पुष्पों की वर्षा के साथ श्रद्धा से सम्मानित किया।
श्लोक 19
अश्रूयन्ताशिषः सत्याः तत्र तत्र द्विजेरिताः।
नानुरूपानुरूपाश्च निर्गुणस्य गुणात्मनः॥
हिन्दी अनुवाद:
वहां-वहां ब्राह्मणों द्वारा सत्य आशीर्वाद की ध्वनि सुनाई दे रही थी, जो निर्गुण भगवान में गुण देखने की बात कर रहे थे।
श्लोक 20
अन्योन्यमासीत् संजल्प उत्तमश्लोकचेतसाम्।
कौरवेन्द्रपुरस्त्रीणां सर्वश्रुतिमनोहरः॥
हिन्दी अनुवाद:
वहां कौरवों के परिवार की स्त्रियाँ, जो भगवान श्रीकृष्ण की महिमा से आकंठ भरी थीं, एक-दूसरे से उनके बारे में बातें करतीं हुईं मनोहर शरण में थीं।
श्लोक 21
स वै किलायं पुरुषः पुरातनो
य एक आसीदविशेष आत्मनि।
अग्रे गुणेभ्यो जगदात्मनीश्वरे
निमीलितात्मन्निशि सुप्तशक्तिषु॥
हिन्दी अनुवाद:
वह एक ही प्राचीन पुरुष हैं, जो विशेष आत्मा में स्थित हैं। वे भगवान के रूप में स्थित होकर सम्पूर्ण जगत के आत्मा हैं और उनकी शक्तियाँ अव्यक्त होती हैं।
श्लोक 22
स एव भूयो निजवीर्यचोदितां
स्वजीवमायां प्रकृतिं सिसृक्षतीम्।
अनामरूपात्मनि रूपनामनी
विधित्समानोऽनुससार शास्त्रकृत्॥
हिन्दी अनुवाद:
वह फिर से अपने शौर्य से प्रेरित होकर जीवात्मा के रूप में प्रकृति को जानने के लिए शास्त्रों के अनुसार चलते हैं।
श्लोक 23
स वा अयं यत्पदमत्र सूरयो
जितेन्द्रिया निर्जितमातरिश्वनः।
पश्यन्ति भक्ति उत्कलितामलात्मना
नन्वेष सत्त्वं परिमार्ष्टुमर्हति॥
हिन्दी अनुवाद:
वह पद सूर्य के समान है, जिसके शरण में सभी इन्द्रियाँ जीत ली जाती हैं। भक्त आत्मा की पवित्रता से इसे देख सकते हैं और यह सत्त्व को पूर्ण करता है।
श्लोक 24
स वा अयं सख्यनुगीत सत्कथो
वेदेषु गुह्येषु च गुह्यवादिभिः।
य एक ईशो जगदात्मलीलया
सृजत्यवत्यत्ति न तत्र सज्जते॥
हिन्दी अनुवाद:
वह भगवान ही हैं, जो सख्य से प्रेरित होकर सत्कथाओं का गान करते हैं, और वेदों में छुपे हुए गूढ़ ज्ञान को प्रकट करते हैं। वह ईश्वर ही जगत के आत्म रूप में अपनी लीला करते हैं।
श्लोक 25
यदा ह्यधर्मेण तमोधियो नृपा
जीवन्ति तत्रैष हि सत्त्वतः किल।
धत्ते भगं सत्यमृतं दयां यशो
भवाय रूपाणि दधत् युगे युगे॥
हिन्दी अनुवाद:
जब धर्म के विपरीत राजा और मूर्ख लोग शासन करते हैं, तो भगवान सत्य, अमृत, दया और यश के रूप में अपने रूपों को प्रकट करते हैं और युग-युग में उसकी आवश्यकता होती है।
श्लोक 26
अहो अलं श्लाघ्यतमं यदोः कुलं
अहो अलं पुण्यतमं मधोर्वनम्।
यदेष पुंसां ऋषभः श्रियः पतिः
स्वजन्मना चङ्क्रमणेन चाञ्चति॥
हिन्दी अनुवाद:
यदु वंश कितना महान है, और मथुरा क्षेत्र कितना पुण्यपूर्ण है! वह भगवान जो श्रेणी के पुरुषों के लिए ब्राह्मणों के स्वामी हैं, स्व जन्म और कर्म से अपने रूप में प्रतिष्ठित होते हैं।
श्लोक 27
अहो बत स्वर्यशसः तिरस्करी
कुशस्थली पुण्ययशस्करी भुवः।
पश्यन्ति नित्यं यदनुग्रहेषितं
स्मितावलोकं स्वपतिं स्म यत्प्रजाः॥
हिन्दी अनुवाद:
यदु वंश के लोग हमेशा भगवान के श्रीमुख की ओर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए देखते रहते हैं। स्वराज्य और पुण्य के प्रतीक, वे भगवान की कृपा से प्रजा के जीवन को सँवारते हैं।
श्लोक 28
नूनं व्रतस्नानहुतादिनेश्वरः
समर्चितो ह्यस्य गृहीतपाणिभिः।
पिबंति याः सख्यधरामृतं मुहुः
व्रजस्त्रियः सम्मुमुहुः यदाशयाः॥
हिन्दी अनुवाद:
जो लोग भगवान के दर्शन करके भक्ति करते हैं, वे उनका अमृत रस पीते रहते हैं। व्रज की स्त्रियाँ भगवान श्रीकृष्ण की दृष्टि में मुग्ध होकर, पुनः-पुनः भगवान की ओर आकर्षित होती हैं।
श्लोक 29
या वीर्यशुल्केन हृताः स्वयंवरे
प्रमथ्य चैद्यः प्रमुखान्हि शुष्मिणः।
प्रद्युम्न साम्बाम्ब सुतादयोऽपरा
याः चाहृता भौमवधे सहस्रशः॥
हिन्दी अनुवाद:
वह स्त्रियाँ जो अपनी वीरता के कारण स्वयंवर में जितनी थीं, और जो शुष्मिण (दुर्योधन) की शक्तियों के चलते भौम (द्वारका) में खो गई थीं, वे सब अब श्रीकृष्ण के सान्निध्य में सुखी हो रही हैं।
श्लोक 30
एताः परं स्त्रीत्वमपास्तपेशलं
निरस्तशौचं बत साधु कुर्वते।
यासां गृहात् पुष्करलोचनः पतिः
न जातु अपैत्याहृतिभिः हृदि स्पृशन्॥
हिन्दी अनुवाद:
यह स्त्रियाँ जो श्रीकृष्ण के चरणों में निरंतर भक्ति करती हैं, वे शुद्ध हो जाती हैं और उनके घर में श्रीकृष्ण की उपस्थिति से सभी शुद्धता और पुण्य प्राप्त करती हैं।
श्लोक 31
एवंविधा गदन्तीनां स गिरः पुरयोषिताम्।
निरीक्षणेन अभिनन्दन् सस्मितेन ययौ हरिः॥
हिन्दी अनुवाद:
श्रीकृष्ण ने स्त्रियों को उनके विशिष्ट गुफ्त संवादों द्वारा सुखी किया, और मुस्कान सहित उन्हें आशीर्वाद दिया। इसके बाद वे अपनी दिशा में प्रस्थान कर गए।
श्लोक 32
अजातशत्रुः पृतनां गोपीथाय मधुद्विषः।
परेभ्यः शङ्कितः स्नेहात् प्रायुङ्क्त चतुरङ्गिणीम्॥
हिन्दी अनुवाद:
अजातशत्रु (युधिष्ठिर) ने अपने शत्रु के प्रति कोई द्वेष नहीं रखा और अपने घेरों में बन्धनों से मुक्त होकर भगवान की शरण में अपना प्रेम समर्पित किया।
श्लोक 33
अथ दूरागतान् शौरिः कौरवान् विरहातुरान्।
सन्निवर्त्य दृढं स्निग्धान् प्रायात्स्वनगरीं प्रियैः॥
हिन्दी अनुवाद:
श्रीकृष्ण ने कौरवों से दूर स्थित अपने प्रियजनों को देखा और बडी श्रद्धा से उनका वियोग समाप्त किया।
श्लोक 34
कुरुजाङ्गलपाञ्चालान् शूरसेनान् सयामुनान्।
ब्रह्मावर्तं कुरुक्षेत्रं मत्स्यान् सारस्वतानथ॥
हिन्दी अनुवाद:
श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र, कौरव वंश, शूरसेन, और यमुनानदी के क्षेत्र में जाने का निर्णय लिया।
श्लोक 35
मरुधन्वमतिक्रम्य सौवीराभीरयोः परान्।
आनर्तान् भार्गवोपागात् श्रान्तवाहो मनाग्विभुः॥
हिन्दी अनुवाद:
श्रीकृष्ण ने मरुधन्व, सौवीर, और अनर्त आदि क्षेत्रों से होते हुए बड़े धैर्य से बढ़ते हुए अन्य जगहों में प्रवेश किया।
श्लोक 36
तत्र तत्र ह तत्रत्यैः हरिः प्रत्युद्यतार्हणः।
सायं भेजे दिशं पश्चात् गविष्ठो गां गतस्तदा॥
हिन्दी अनुवाद:
हर दिशा में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति प्रकट की और अंत में गविष्ठ (गोपियाँ) की ओर प्रस्थान किया।
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां प्रथमस्कन्धे श्रीकृष्णद्वारकागमनं नाम दशमोऽध्यायः॥ १०॥
इस प्रकार श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रथम स्कंध में श्रीकृष्ण का द्वारका आगमन नामक दसवां अध्याय समाप्त हुआ।
यह है भागवत प्रथम स्कन्ध, दशम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) श्लोकों का पूर्ण अनुवाद। कैसा लगा यह भागवत प्रथम स्कन्ध, दशम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) कमेंट में बताएँ।
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