Secure Page

Welcome to My Secure Website

This is a demo text that cannot be copied.

No Screenshot

Secure Content

This content is protected from screenshots.

getWindow().setFlags(WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE, WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE); Secure Page

Secure Content

This content cannot be copied or captured via screenshots.

Secure Page

Secure Page

Multi-finger gestures and screenshots are disabled on this page.

getWindow().setFlags(WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE, WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE); Secure Page

Secure Content

This is the protected content that cannot be captured.

Screenshot Detected! Content is Blocked

MOST RESENT$type=carousel

Search This Blog

भागवत तृतीय स्कंध, पञ्चम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

SHARE:

भागवत तृतीय स्कंध, पञ्चम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)।यहाँ भागवत तृतीय स्कंध, पञ्चम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के सभी श्लोकों का क्रमशः हिन्दी अनुवाद दिया है।

भागवत तृतीय स्कंध, पञ्चम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

यह चित्र श्रीमद्भागवत के पञ्चम अध्याय का शांतिपूर्ण दृश्य प्रदर्शित करता है, जहाँ विदुर गंगा तट पर मैत्रेय मुनि के समक्ष श्रद्धापूर्वक बैठे हैं। चित्र में दिव्यता और भक्ति का अद्भुत भाव दिखता है।



भागवत तृतीय स्कंध, पञ्चम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

यहाँ भागवत तृतीय स्कंध, पञ्चम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के सभी श्लोकों का क्रमशः हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है।

श्रीशुक उवाच

श्लोक १: गंगा तट पर मैत्रेय मुनि का दर्शन

द्वारि द्युनद्या ऋषभः कुरूणां
मैत्रेयमासीनमगाधबोधम्।
क्षत्तोपसृत्याच्युतभावसिद्धः
पप्रच्छ सौशील्यगुणाभितृप्तः ॥

हिन्दी अनुवाद:
गंगा नदी के तट पर, कुरुवंश के आदरणीय, असीम ज्ञान के स्वामी महर्षि मैत्रेय बैठे थे। विदुर जी, जो भगवान अच्युत (कृष्ण) के परम भक्त थे और उनकी भक्ति में सिद्ध हो चुके थे, उनके पास पहुँचे। भगवान के दिव्य गुणों और सौम्य स्वभाव से तृप्त होकर, विदुर ने मैत्रेय मुनि से धर्म और भक्ति से जुड़े गूढ़ प्रश्न पूछे।


विदुर उवाच

श्लोक २: कर्म और सुख का प्रश्न

सुखाय कर्माणि करोति लोको
न तैः सुखं वान्यदुपारमं वा।
विन्देत भूयस्तत एव दुःखं
यदत्र युक्तं भगवान् वदेन्नः ॥

हिन्दी अनुवाद:
मनुष्य सच्चा सुख पाने के लिए निरंतर कर्म करता है। लेकिन इन कर्मों से उसे न तो सुख प्राप्त होता है और न ही यह दुःखों से छुटकारा देता है। उल्टा, यही कर्म उसे और अधिक दुःख में डाल देते हैं। हे भगवन्, कृपया बताइए कि ऐसा कौन सा मार्ग है, जिससे मनुष्य सच्चा सुख और शांति प्राप्त कर सकता है।


श्लोक ३: कृष्ण से विमुख लोगों की दुर्दशा

जनस्य कृष्णाद् विमुखस्य दैवाद्
अधर्मशीलस्य सुदुःखितस्य।
अनुग्रहायेह चरन्ति नूनं
भूतानि भव्यानि जनार्दनस्य ॥

हिन्दी अनुवाद:
जो लोग भगवान श्रीकृष्ण से विमुख हो जाते हैं और अधर्म के मार्ग पर चलते हैं, वे अत्यधिक दुःखी और कष्टपूर्ण जीवन जीते हैं। ऐसे पीड़ित और दीन प्राणियों पर दया करने के लिए ही भगवान जनार्दन के भक्त (संतजन) इस संसार में विचरण करते हैं। वे उन्हें धर्म और भक्ति का मार्ग दिखाकर उनके जीवन को सुधारते हैं।


श्लोक ४: भगवान के संतोष का मार्ग

तत्साधुवर्यादिश वर्त्म शं नः
संराधितो भगवान् येन पुंसाम्।
हृदि स्थितो यच्छति भक्तिपूते
ज्ञानं सतत्त्वाधिगमं पुराणम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे श्रेष्ठ साधु, हमें वह मार्ग बताइए जिससे भगवान प्रसन्न होते हैं। भगवान अपने भक्तों के हृदय में निवास करते हैं और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें शुद्ध ज्ञान प्रदान करते हैं। यह ज्ञान व्यक्ति को सत्य का साक्षात्कार कराता है और उसे पुराणों के गूढ़ अर्थ समझने की क्षमता देता है।


श्लोक ५: भगवान की सृष्टि रचना और संचालन

करोति कर्माणि कृतावतारो
यान्यात्मतंत्रो भगवान् त्र्यधीशः।
यथा ससर्जाग्र इदं निरीहः
संस्थाप्य वृत्तिं जगतो विधत्ते ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान, जो पूर्ण स्वतंत्र और तीनों लोकों के स्वामी हैं, अपने अवतारों में अद्भुत कार्य करते हैं। उन्होंने इस सृष्टि की रचना की और इसे व्यवस्थित रूप से संचालित किया। भगवान अपने कर्मों से यह सुनिश्चित करते हैं कि सृष्टि का हर हिस्सा सुव्यवस्थित ढंग से कार्य करे और जीवों का कल्याण हो।


श्लोक ६: सृष्टि का समापन और भगवान की योगनिद्रा

यथा पुनः स्वे ख इदं निवेश्य
शेते गुहायां स निवृत्तवृत्तिः।
योगेश्वराधीश्वर एक एतद्
अनुप्रविष्टो बहुधा यथाऽऽसीत् ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान इस सृष्टि को अपने भीतर समेट लेते हैं और गहन योगनिद्रा में स्थित हो जाते हैं। वे योगियों के भी स्वामी हैं और अपनी माया शक्ति से सृष्टि को प्रकट और समाप्त करते हैं। वे एक होते हुए भी, विभिन्न रूपों में सृष्टि का संचालन करते हैं और इसे सुव्यवस्थित रखते हैं।


श्लोक ७: भगवान की लीलाएँ और उनका अमृतमय चरित्र

क्रीडन् विधत्ते द्विजगोसुराणां
क्षेमाय कर्माण्यवतारभेदैः।
मनो न तृप्यत्यपि शृण्वतां नः
सुश्लोकमौलेश्चरितामृतानि ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान ब्राह्मणों, गायों और देवताओं के कल्याण के लिए अनेक अवतारों में प्रकट होते हैं। वे अपनी लीलाओं से भक्तों का उद्धार करते हैं। उनके अमृतमय चरित्रों को सुनकर भी मन कभी तृप्त नहीं होता। उनकी लीलाएँ इतनी मधुर हैं कि बार-बार सुनने पर भी और अधिक सुनने की इच्छा होती है।


श्लोक ८: माया से सृष्टि के नियम

यैस्तत्त्वभेदैः अधिलोकनाथो
लोकानलोकान् सह लोकपालान्।
अचीकॢपद्यत्र हि सर्वसत्त्व
निकायभेदोऽधिकृतः प्रतीतः ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान ने अपनी माया शक्ति से सृष्टि के लोकों और उनके नियम बनाए। लोकपालों और प्राणी समूहों के कार्य और भूमिकाएँ भी भगवान की कृपा से निर्धारित होती हैं। उनकी माया शक्ति के प्रभाव से सभी जीव अपने-अपने कर्म और कर्तव्यों का पालन करते हैं।


श्रीशुक उवाच

श्लोक ९: भगवान की सृष्टि के नियम

येन प्रजानामुत आत्मकर्म
रूपाभिधानां च भिदां व्यधत्त।
नारायणो विश्वसृगात्मयोनिः
एतच्च नो वर्णय विप्रवर्य ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान नारायण, जो सृष्टि के आदिकर्ता और आत्मस्वरूप हैं, ने जीवों के कर्म, उनके स्वरूप और उनके नामों के अनुसार उन्हें विभिन्न प्रकार के कार्य और कर्तव्य प्रदान किए। हे महान ज्ञानी, कृपया हमें भगवान की इस अद्भुत सृष्टि रचना और उसकी विधियों का विस्तार से वर्णन कीजिए।


श्लोक १०: कृष्ण कथा का अमृत रस

परावरेषां भगवन् व्रतानि
श्रुतानि मे व्यासमुखादभीक्ष्णम्।
अतृप्नुम क्षुल्लसुखावहानां
तेषामृते कृष्णकथामृतौघात् ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे प्रभु, मैंने भगवान के ऊँच-नीच स्वरूपों और उनके व्रतों की कथा व्यास जी के मुख से कई बार सुनी है। लेकिन वे विषय मुझे तृप्ति नहीं दे सके। मेरे मन को केवल कृष्ण कथा रूपी अमृत धारा ही संतोष प्रदान कर सकती है, क्योंकि सांसारिक सुख अल्प और क्षणिक होते हैं।


श्लोक ११: तीर्थ की महिमा

कस्तृप्नुयात्तीर्थपदोऽभिधानात्
सत्रेषु वः सूरिभिरीड्यमानात्।
यः कर्णनाडीं पुरुषस्य यातो
भवप्रदां गेहरतिं छिनत्ति ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान, जिनके चरण तीर्थ स्थानों के समान हैं और जिन्हें ऋषि-मुनि सत्रों में आदरपूर्वक पूजते हैं, उनकी कथा सुनने के बाद कौन तृप्त नहीं होगा? उनके चरित्रों की महिमा सुनते ही मनुष्य की सांसारिक आसक्ति और मोह छिन्न-भिन्न हो जाते हैं, और वह भक्ति के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है।


श्लोक १२: भगवान की कथाओं का प्रभाव

मुनिर्विवक्षुर्भगवद्‍गुणानां
सखापि ते भारतमाह कृष्णः।
यस्मिन् नृणां ग्राम्यसुखानुवादैः
मतिर्गृहीता नु हरेः कथायाम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान की दिव्य कथाएँ, जो उनके गुणों और लीलाओं को प्रकट करती हैं, मनुष्य को सांसारिक सुखों के प्रति असक्त होने से रोकती हैं। केवल कृष्ण कथा सुनने से ही मनुष्य की मति संसार की मोह-माया से हटकर भगवान की भक्ति में लगती है। यह कथा सभी प्रकार के मोह को समाप्त कर देती है।


श्लोक १३: भक्ति और वैराग्य का उदय

सा श्रद्दधानस्य विवर्धमाना
विरक्तिमन्यत्र करोति पुंसः।
हरेः पदानुस्मृतिनिर्वृतस्य
समस्तदुःखाप्ययमाशु धत्ते ॥

हिन्दी अनुवाद:
श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान की कथा सुनने से मनुष्य के हृदय में वैराग्य और ज्ञान का उदय होता है। जो व्यक्ति भगवान के चरणों का स्मरण करता है, वह संसार के समस्त दुःखों से शीघ्र ही मुक्त हो जाता है। भगवान की भक्ति ही जीवन का अंतिम समाधान है।


श्लोक १४: हरेः कथा में विमुख लोगों का दुर्भाग्य

तान् शोच्यशोच्यान् अविदोऽनुशोचे
हरेः कथायां विमुखानघेन।
क्षिणोति देवोऽनिमिषस्तु येषां
आयुर्वृथावादगतिस्मृतीनाम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
जो लोग भगवान की कथा सुनने से विमुख रहते हैं और अधर्म में फँसे रहते हैं, उनका जीवन व्यर्थ है। उनके पास शाश्वत सुख पाने का कोई साधन नहीं है। वे निरंतर अपने आयु और समय को नष्ट करते रहते हैं। ऐसे लोग वास्तव में दया के पात्र हैं।


श्लोक १५: हरेः कथा की महिमा

तदस्य कौषारव शर्मदातुः
हरेः कथामेव कथासु सारम्।
उद्धृत्य पुष्पेभ्य इवार्तबन्धो
शिवाय नः कीर्तय तीर्थकीर्तेः ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे महर्षि मैत्रेय, कृपया भगवान की उन कथाओं का वर्णन करें जो समस्त कथाओं का सार हैं। वे कथा भक्तों के कष्टों को दूर करने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। जैसे एक फूल से मधुर सुगंध निकलती है, वैसे ही भगवान की कथाएँ भक्तों के जीवन में मधुरता लाती हैं।


श्लोक १६: भगवान के अवतार और कर्म

स विश्वजन्मस्थितिसंयमार्थे
कृतावतारः प्रगृहीतशक्तिः।
चकार कर्माण्यतिपूरुषाणि
यानीश्वरः कीर्तय तानि मह्यम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान, जो सृष्टि के जन्म, पालन और संहार के लिए अवतरित होते हैं, अपनी शक्ति से असाधारण कर्म करते हैं। हे महर्षि, कृपया भगवान के उन अद्भुत कर्मों का वर्णन कीजिए, जिन्हें जानकर हम उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा में डूब सकें।


श्रीशुक उवाच 

श्लोक १७: विदुर के प्रश्न पर मैत्रेय मुनि का सम्मान

स एवं भगवान् पृष्टः क्षत्त्रा कौषारविर्मुनिः।
पुंसां निःश्रेयसार्थेन तमाह बहु मानयन् ॥

हिन्दी अनुवाद:
इस प्रकार भगवान की महिमा और सृष्टि के रहस्यों पर विदुर जी द्वारा किए गए प्रश्न को सुनकर कौषारव (मैत्रेय मुनि) अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने विदुर जी का आदर करते हुए, इस महत्वपूर्ण विषय पर उनका उत्तर देने का निश्चय किया, क्योंकि यह मनुष्यों के परम कल्याण से जुड़ा हुआ था।


श्लोक १८: मैत्रेय मुनि का विदुर की प्रशंसा करना

साधु पृष्टं त्वया साधो लोकान् साध्वनुगृह्णता।
कीर्तिं वितन्वता लोके आत्मनोऽधोक्षजात्मनः ॥

हिन्दी अनुवाद:
मैत्रेय मुनि ने कहा: हे साधु विदुर, आपने बहुत ही उत्तम प्रश्न किया है। आप न केवल अपने कल्याण के लिए, बल्कि समस्त लोकों का भला करने के लिए यह प्रश्न पूछ रहे हैं। आपके इस प्रयास से भगवान अधोक्षज (कृष्ण) की कीर्ति और महिमा संसार में और अधिक फैलेगी।


श्लोक १९: विदुर की भक्ति की विशेषता

नैतच्चित्रं त्वयि क्षत्तः बादरायणवीर्यजे।
गृहीतोऽनन्यभावेन यत्त्वया हरिरीश्वरः ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे विदुर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि आप ऐसे पवित्र प्रश्न पूछ रहे हैं। आप व्यासजी के वंश में उत्पन्न हुए हैं और आपने अनन्य भाव से भगवान हरि की भक्ति को ग्रहण किया है। आपकी भक्ति से ही आप इतने उत्कृष्ट प्रश्न कर पा रहे हैं।


श्लोक २०: यमराज का शाप और विदुर का जन्म

माण्डव्यशापाद् भगवान् प्रजासंयमनो यमः।
भ्रातुः क्षेत्रे भुजिष्यायां जातः सत्यवतीसुतात् ॥

हिन्दी अनुवाद:
यमराज, जो प्राणियों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं, मांडव्य ऋषि के शाप के कारण पृथ्वी पर जन्म लेने के लिए विवश हुए। सत्यवती के पुत्र (व्यास) ने अपने भाई के क्षेत्र (गर्भ) में यमराज को उत्पन्न किया। इस प्रकार आप विदुर के रूप में जन्मे।


श्लोक २१: विदुर का जीवन भगवान की कृपा से प्रेरित

भवान् भगवतो नित्यं सम्मतः सानुगस्य ह।
यस्य ज्ञानोपदेशाय माऽऽदिशद्‍भगवान् व्रजन् ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे विदुर, आप भगवान के सदा प्रिय हैं और उनके भक्तों के भी प्रिय हैं। भगवान ने स्वयं आपको ज्ञान और उपदेश देने के लिए प्रेरित किया, ताकि आप इस संसार में धर्म और भक्ति का प्रचार कर सकें।


श्लोक २२: भगवान की लीलाओं का वर्णन

अथ ते भगवल्लीला योगमायोरुबृंहिताः।
विश्वस्थिति उद्‌भवान्तार्था वर्णयामि अनुपूर्वशः ॥

हिन्दी अनुवाद:
अब मैं तुम्हें भगवान की उन अद्भुत लीलाओं का वर्णन करूंगा, जो उनकी योगमाया से संपन्न हैं। ये लीलाएँ सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार से जुड़ी हुई हैं। मैं इन्हें क्रमबद्ध रूप से तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत करूंगा।


श्लोक २३: सृष्टि के प्रारंभ में भगवान का स्वरूप

भगवान् एक आसेदं अग्र आत्माऽऽत्मनां विभुः।
आत्मेच्छानुगतावात्मा नानामत्युपलक्षणः ॥

हिन्दी अनुवाद:
सृष्टि के प्रारंभ में, केवल भगवान ही विद्यमान थे। वे आत्मस्वरूप, स्वतंत्र और विभु (सर्वव्यापक) हैं। अपनी इच्छा के अनुसार, उन्होंने स्वयं को विभिन्न रूपों में प्रकट किया, जो सृष्टि के सभी रूपों और गुणों का आधार बने।


श्लोक २४: सृष्टि से पहले का दृश्य

स वा एष तदा द्रष्टा नापश्यद् दृश्यमेकराट्।
मेनेऽसन्तमिवात्मानं सुप्तशक्तिः असुप्तदृक् ॥

हिन्दी अनुवाद:
सृष्टि से पहले, भगवान ने स्वयं को एकमात्र द्रष्टा (साक्षी) के रूप में देखा, क्योंकि देखने के लिए कोई अन्य वस्तु या जीव नहीं था। उन्होंने अपनी सुप्त शक्तियों के साथ स्वयं को असंपृक्त और असार (सृष्टि रहित) अनुभव किया।


श्लोक २५: भगवान की माया शक्ति

सा वा एतस्य संद्रष्टुः शक्तिः सद् असदात्मिका।
माया नाम महाभाग ययेदं निर्ममे विभुः ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान की जो शक्ति है, वह सत्य और असत्य (माया) का संयोग है। इस शक्ति को ही माया कहा जाता है। इसी माया के माध्यम से भगवान ने इस सृष्टि को प्रकट किया। माया उनकी लीला शक्ति है, जिससे संसार उत्पन्न और संचालित होता है।


श्लोक २६: सृष्टि की रचना में काल और माया का योगदान

कालवृत्त्या तु मायायां गुणमय्यामधोक्षजः।
पुरुषेणात्मभूतेन वीर्यमाधत्त वीर्यवान् ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान अधोक्षज ने काल और माया के संयोग से गुणों से भरी इस सृष्टि को रचा। उन्होंने अपनी पुरुष शक्ति के माध्यम से इस सृष्टि को उत्पन्न करने के लिए अपना तेज (वीर्य) स्थापित किया। यह तेज ही सृष्टि के आरंभ का कारण बना।


श्रीशुक उवाच

श्लोक २७: महत्तत्त्व का प्राकट्य

ततोऽभवन् महत्तत्त्वं अव्यक्तात् कालचोदितात्।
विज्ञानात्माऽऽत्मदेहस्थं विश्वं व्यञ्जन् तमोनुदः ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान के प्रभाव और काल की प्रेरणा से अव्यक्त प्रकृति से महत्तत्त्व (प्रकृति का सबसे सूक्ष्म और प्रारंभिक स्वरूप) प्रकट हुआ। यह महत्तत्त्व सृष्टि के विज्ञान का आधार है, जो सभी भौतिक रूपों और उनके गुणों को उजागर करता है। यह तमोगुण का नाश करने वाला है।


श्लोक २८: सृष्टि का स्वरूप और भगवान की दृष्टि

सोऽप्यंशगुणकालात्मा भगवद् दृष्टिगोचरः।
आत्मानं व्यकरोद् आत्मा विश्वस्यास्य सिसृक्षया ॥

हिन्दी अनुवाद:
यह महत्तत्त्व, जो भगवान की दृष्टि और उनकी शक्ति के संयोग से प्रकट हुआ था, सृष्टि की रचना की इच्छा से सक्रिय हो गया। इसने आत्मा के विभिन्न रूपों में प्रकट होकर सृष्टि की विभिन्न अवस्थाओं को प्रकट किया।


श्लोक २९: अहंकार का उद्भव

महत्तत्त्वाद् विकुर्वाणाद् अहंतत्त्वं व्यजायत।
कार्यकारणकर्त्रात्मा भूतेन्द्रियमनोमयः ॥

हिन्दी अनुवाद:
महत्तत्त्व के विकार (परिवर्तन) से अहंकार प्रकट हुआ। यह अहंकार ही सृष्टि के कार्य-कारण (सृष्टि के सभी उपकरणों और इंद्रियों) का मूल है। यह अहंकार भूतों (भौतिक तत्वों), इंद्रियों और मन का आधार बन गया।


श्लोक ३०: अहंकार के तीन रूप

वैकारिकस्तैजसश्च तामसश्चेत्यहं त्रिधा।
अहंतत्त्वाद् विकुर्वाणात् मनो वैकारिकात् अभूत्।
वैकारिकाश्च ये देवा अर्थाभिव्यञ्जनं यतः ॥

हिन्दी अनुवाद:
अहंकार तीन प्रकार का होता है: वैकारिक (सत्वगुण), तैजस (राजोगुण) और तामस (तमोगुण)। वैकारिक अहंकार से मन उत्पन्न हुआ और उसी से देवता उत्पन्न हुए, जो इंद्रियों को क्रियाशील बनाते हैं। यह वैकारिक अहंकार ही सृष्टि के विचारशील तत्वों का मूल है।


श्लोक ३१: इंद्रियों और भौतिक तत्वों का प्राकट्य

तैजसानि इन्द्रियाण्येव ज्ञानकर्ममयानि च।
तामसो भूतसूक्ष्मादिः यतः खं लिङ्गमात्मनः ॥

हिन्दी अनुवाद:
राजोगुण से इंद्रियाँ उत्पन्न हुईं, जिनमें ज्ञानेंद्रियाँ (ज्ञान प्राप्त करने के लिए) और कर्मेंद्रियाँ (कर्म करने के लिए) दोनों शामिल हैं। तमोगुण से सूक्ष्म भौतिक तत्व प्रकट हुए, जिनसे सबसे पहले आकाश (ख) उत्पन्न हुआ, जो आत्मा का पहला सूक्ष्म लक्षण है।


श्लोक ३२: आकाश से वायु का निर्माण

कालमायांशयोगेन भगवद् वीक्षितं नभः।
नभसोऽनुसृतं स्पर्शं विकुर्वन् निर्ममेऽनिलम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान की दृष्टि और काल तथा माया के प्रभाव से आकाश में स्पर्श गुण का संचार हुआ। इस स्पर्श गुण के विकार से वायु का प्राकट्य हुआ, जो स्पर्श गुण से युक्त है।


श्लोक ३३: वायु से अग्नि का निर्माण

अनिलोऽपि विकुर्वाणो नभसोरुबलान्वितः।
ससर्ज रूपतन्मात्रं ज्योतिर्लोकस्य लोचनम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
वायु, जो अपनी शक्ति के कारण आकाश के साथ मिलकर सक्रिय हुआ, उसने रूप तत्व (दृष्टिगोचर स्वरूप) को उत्पन्न किया। इस रूप तत्व से अग्नि का प्राकट्य हुआ, जो संसार में प्रकाश का स्रोत है।


श्लोक ३४: अग्नि से जल का निर्माण

अनिलेन अन्वितं ज्योतिः विकुर्वत् परवीक्षितम्।
आधत्ताम्भो रसमयं कालमायांशयोगतः ॥

हिन्दी अनुवाद:
अग्नि, जो वायु से प्रभावित थी और भगवान की दृष्टि से सक्रिय हुई, उसने रस (स्वाद) तत्व को उत्पन्न किया। इस रस तत्व के कारण जल का निर्माण हुआ, जो जीवन को पोषण देने का कार्य करता है।


श्लोक ३५: जल से पृथ्वी का निर्माण

ज्योतिषाम्भोऽनुसंसृष्टं विकुर्वद् ब्रह्मवीक्षितम्।
महीं गन्धगुणां आधात् कालमायांशयोगतः ॥

हिन्दी अनुवाद:
जल, जो अग्नि के साथ संयोग से उत्पन्न हुआ था और भगवान की दृष्टि के प्रभाव में था, उसने गंध तत्व को उत्पन्न किया। इस गंध तत्व के माध्यम से पृथ्वी का निर्माण हुआ, जो स्थिरता और पोषण का आधार है।


श्लोक ३६: भौतिक तत्वों का संयोजन

भूतानां नभआदीनां यद् यद् यद् भव्यावरावरम्।
तेषां परानुसंसर्गाद् यथा सङ्ख्यं गुणान् विदुः ॥

हिन्दी अनुवाद:
आकाश से लेकर पृथ्वी तक के सभी भौतिक तत्व, जो भगवान की माया और गुणों के संयोग से उत्पन्न हुए, अपने-अपने गुणों के आधार पर आपस में मिलकर संसार की विविधता को उत्पन्न करते हैं। इनके विभिन्न गुण ही संसार की संरचना के आधार हैं।


श्लोक ३७: सृष्टि के देवताओं का प्राकट्य

एते देवाः कला विष्णोः कालमायांशलिङ्गिनः।
नानात्वात् स्वक्रियानीशाः प्रोचुः प्राञ्जलयो विभुम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
ये सभी देवता, जो भगवान विष्णु की शक्तियों के रूप हैं और काल, माया तथा गुणों के प्रभाव से युक्त हैं, सृष्टि के संचालन में विभिन्न भूमिकाएँ निभाते हैं। उन्होंने प्रार्थना करते हुए भगवान से अपनी शक्ति और कर्तव्यों के लिए आशीर्वाद मांगा।


श्रीशुक उवाच

श्लोक ३८: देवताओं की प्रार्थना

नमाम ते देव पदारविन्दं
प्रपन्नतापोपशमातपत्रम्।
यन्मूलकेता यतयोऽञ्जसोरु
संसारदुःखं बहिरुत्क्षिपन्ति ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे भगवान, हम आपके चरणकमलों की वंदना करते हैं। ये चरणकमल शरणागतों के ताप और कष्टों को शांत करने वाले छत्र के समान हैं। जिनके हृदय में आपके चरणकमल बसे होते हैं, वे संसार के भारी दुःखों को सरलता से पार कर जाते हैं।


श्लोक ३९: भगवान के चरणों की शरण

धातर्यदस्मिन् भव ईश जीवाः
तापत्रयेणाभिहता न शर्म।
आत्मन् लभन्ते भगवंस्तवाङ्‌घ्रि
च्छायां सविद्यामत आश्रयेम ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे ईश्वर, इस संसार में जीव तीन प्रकार के तापों (आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक) से पीड़ित रहते हैं और उन्हें शांति नहीं मिलती। केवल आपके चरण ही उनकी रक्षा कर सकते हैं। हे प्रभु, कृपया हमें अपनी चरणछाया में शरण दें।


श्लोक ४०: भगवान के चरण तीर्थ स्वरूप हैं

मार्गन्ति यत्ते मुखपद्मनीडैः
छन्दःसुपर्णैः ऋषयो विविक्ते।
यस्याघमर्षोदसरिद्वरायाः
पदं पदं तीर्थपदः प्रपन्नाः ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे भगवान, ऋषि-मुनि वेदों के माध्यम से आपके मुखकमलों के दर्शन करने का प्रयास करते हैं। आपके चरण तीर्थ स्वरूप हैं, जिनके स्मरण मात्र से सभी पापों का नाश हो जाता है। आपकी शरण में आने वाले भक्त इन तीर्थों के माध्यम से सभी बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।


श्लोक ४१: भक्ति से मिलने वाला ज्ञान और वैराग्य

यत् श्रद्धया श्रुतवत्या च भक्त्या
सम्मृज्यमाने हृदयेऽवधाय।
ज्ञानेन वैराग्यबलेन धीरा
व्रजेम तत्तेऽङ्‌घ्रिसरोजपीठम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
श्रद्धा, भक्ति और वेदों के श्रवण से हृदय शुद्ध होता है। जब यह शुद्धता प्राप्त होती है, तो ज्ञान और वैराग्य का उदय होता है। इस ज्ञान और वैराग्य के बल से भक्त आपके चरणकमलों तक पहुँचते हैं और समस्त मोह और बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।


श्लोक ४२: भगवान के चरण स्मरण से भय समाप्त

विश्वस्य जन्मस्थितिसंयमार्थे
कृतावतारस्य पदाम्बुजं ते।
व्रजेम सर्वे शरणं यदीश
स्मृतं प्रयच्छत्यभयं स्वपुंसाम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे ईश्वर, आपने सृष्टि की रचना, पालन और संहार के लिए अवतार लिया। आपके चरणकमलों का स्मरण करने से भक्तों को समस्त प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। हे प्रभु, कृपया हमें अपने चरणों की शरण प्रदान करें।


श्लोक ४३: सांसारिक आसक्ति से मुक्ति

यत्सानुबन्धेऽसति देहगेहे
ममाहं इति ऊढ दुराग्रहाणाम्।
पुंसां सुदूरं वसतोऽपि पुर्यां
भजेम तत्ते भगवन् पदाब्जम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे भगवन्, यह शरीर और इसका घर सांसारिक आसक्ति और अहंकार का कारण बनता है। इस "मैं" और "मेरा" के भाव से जो लोग घिरे रहते हैं, वे आपके चरणों तक नहीं पहुँच सकते। हे प्रभु, हम आपकी शरण में आकर इस मोह और बंधन से मुक्त होना चाहते हैं।


श्लोक ४४: भगवान के चरणों का सौंदर्य

तान् वै ह्यसद्‌वृत्तिभिरक्षिभिर्ये
पराहृतान्तर्मनसः परेश।
अथो न पश्यन्ति उरुगाय नूनं
ये ते पदन्यासविलासलक्ष्याः ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे प्रभु, जो लोग अधर्म के मार्ग पर चलते हैं और जिनका मन सांसारिक मोह में फँसा रहता है, वे आपके चरणकमलों के सौंदर्य को नहीं देख पाते। आपका चरण-प्रकाशित मार्ग ही उनकी मुक्ति का एकमात्र उपाय है, लेकिन वे उसे समझ नहीं पाते।


श्लोक ४५: भगवान की कथा सुनने का प्रभाव

पानेन ते देव कथासुधायाः
प्रवृद्धभक्त्या विशदाशया ये।
वैराग्यसारं प्रतिलभ्य बोधं
यथाञ्जसान् वीयुरकुण्ठधिष्ण्यम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे प्रभु, आपकी कथा का अमृत सुनने से भक्त का मन पवित्र हो जाता है और उसमें भक्ति बढ़ती है। वह ज्ञान और वैराग्य को प्राप्त करता है। इस ज्ञान और भक्ति के माध्यम से वह आसानी से आपके दिव्य धाम को प्राप्त कर लेता है।


श्लोक ४६: भक्ति का महत्व और फल

तथापरे चात्मसमाधियोग
बलेन जित्वा प्रकृतिं बलिष्ठाम्।
त्वामेव धीराः पुरुषं विशन्ति
तेषां श्रमः स्यान्न तु सेवया ते ॥

हिन्दी अनुवाद:
कुछ लोग आत्म-संयम और योग की शक्ति से प्रकृति के गुणों को जीतने का प्रयास करते हैं। लेकिन हे प्रभु, केवल आपकी सेवा और भक्ति से ही वे आपके दिव्य स्वरूप को प्राप्त कर सकते हैं। केवल तपस्या करने से यह संभव नहीं है।


श्लोक ४७: देवताओं की प्रार्थना

तत्ते वयं लोकसिसृक्षयाद्य
त्वयानुसृष्टास्त्रिभिरात्मभिः स्म।
सर्वे वियुक्ताः स्वविहारतन्त्रं
न शक्नुमस्तत् प्रतिहर्तवे ते ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे प्रभु, आपने हमें सृष्टि का संचालन करने के लिए अपनी शक्तियों के साथ उत्पन्न किया। लेकिन हम केवल आपके आदेश के बिना कुछ भी करने में असमर्थ हैं। हमारी समस्त शक्तियाँ आपकी कृपा पर निर्भर हैं।


श्रीशुक उवाच

श्लोक ४८: भगवान का बलिदान और जीवों का पोषण

यावद्‍बलिं तेऽज हराम काले
यथा वयं चान्नमदाम यत्र।
यथोभयेषां त इमे हि लोका
बलिं हरन्तोऽन्नमदन्त्यनूहाः ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे अज (भगवान), हम आपके द्वारा निर्धारित समय पर बलिदान के रूप में आपको अर्पण करते हैं। इसी बलिदान के कारण हमें अन्न प्राप्त होता है। जीव-जन्तु और लोकपाल भी आपके नियमों का पालन करते हुए बलिदान स्वीकार करते हैं और इस अन्न से जीवन धारण करते हैं।


श्लोक ४९: भगवान की अनादि शक्ति

त्वं नः सुराणामसि सान्वयानां
कूटस्थ आद्यः पुरुषः पुराणः।
त्वं देव शक्त्यां गुणकर्मयोनौ
रेतस्त्वजायां कविमादधेऽजः ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे प्रभु, आप देवताओं और समस्त प्राणियों के आदि कारण हैं। आप ही वह अनादि पुरुष और पुरातन सत्ता हैं, जो सृष्टि के संचालन के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं। आप प्रकृति और गुणों की जननी में अपनी सृजनशील ऊर्जा डालते हैं और सृष्टि की रचना करते हैं।


श्लोक ५०: देवताओं का निवेदन

ततो वयं मत्प्रमुखा यदर्थे
बभूविमात्मन् करवाम किं ते।
त्वं नः स्वचक्षुः परिदेहि शक्त्या
देव क्रियार्थे यद् अनुग्रहाणाम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे भगवान, हम देवगण आपके कार्यों को पूरा करने के लिए उत्पन्न हुए हैं। लेकिन हम केवल आपकी कृपा और मार्गदर्शन से ही अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं। कृपया हमें अपनी दृष्टि प्रदान करें और हमारे कार्यों को संपन्न करने के लिए अपनी शक्ति से हमें समर्थ बनाएं।


इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां तृतीयस्कन्धे विदुरोद्धवसंवादे पञ्चमोऽध्यायः ॥

इस प्रकार, श्रीमद्भागवत महापुराण, जो महान संतों के लिए परम धर्मग्रंथ है, के तृतीय स्कंध के अंतर्गत विदुर और मैत्रेय मुनि के संवाद का यह पाँचवाँ अध्याय समाप्त होता है।


यदि इस भागवत तृतीय स्कंध, पञ्चम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के किसी भी श्लोक, अनुवाद, या विषय में कोई और जानकारी चाहिए, तो कृपया कमेंट में बताएं। 

POPULAR POSTS$type=three$author=hide$comment=hide$rm=hide

TOP POSTS (30 DAYS)$type=three$author=hide$comment=hide$rm=hide

Name

about us,2,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,computer,37,Computer Science,38,contact us,1,CPD,1,darshan,16,Download,4,General Knowledge,34,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,Research techniques,39,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,अध्यात्म,200,अनुसन्धान,22,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,4,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,15,आज का समाचार,27,आधुनिक विज्ञान,22,आधुनिक समाज,151,आयुर्वेद,45,आरती,8,ईशावास्योपनिषद्,21,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,34,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,13,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,122,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,केनोपनिषद्,10,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,खगोल विज्ञान,1,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,2,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,1,चार्वाक दर्शन,3,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,51,तन्त्र साधना,2,दर्शन,35,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,50,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पूजा विधि,1,पौराणिक कथाएँ,64,प्रत्यभिज्ञा दर्शन,1,प्रश्नोत्तरी,29,प्राचीन भारतीय विद्वान्,100,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,39,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,11,भागवत,1,भागवत : गहन अनुसंधान,28,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत अष्टम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत एकादश स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत कथा,134,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,4,भागवत के पांच प्रमुख गीत,3,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत चतुर्थ स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत तृतीय स्कंध(हिन्दी),9,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,91,भागवत दशम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वादश स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत द्वितीय स्कन्ध(हिन्दी),10,भागवत नवम स्कन्ध,38,भागवत नवम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पञ्चम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,22,भागवत प्रथम स्कन्ध(हिन्दी),19,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,18,भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण(संस्कृत),2,भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण(हिन्दी),2,भागवत माहात्म्य(संस्कृत),2,भागवत माहात्म्य(हिन्दी),9,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,53,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत षष्ठ स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत सप्तम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,34,भारतीय अर्थव्यवस्था,8,भारतीय इतिहास,21,भारतीय दर्शन,4,भारतीय देवी-देवता,8,भारतीय नारियां,2,भारतीय पर्व,49,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,37,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय सम्राट,1,भारतीय संविधान,1,भारतीय संस्कृति,4,भाषा विज्ञान,15,मनोविज्ञान,4,मन्त्र-पाठ,8,मन्दिरों का परिचय,1,महाकुम्भ 2025,3,महापुरुष,43,महाभारत रहस्य,34,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,4,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,127,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीय दिवस,4,राष्ट्रीयगीत,1,रील्स,7,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,151,लघुकथा,38,लेख,182,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,9,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,2,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,32,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,10,व्रत एवं उपवास,36,शायरी संग्रह,3,शिक्षाप्रद कहानियाँ,119,शिव रहस्य,1,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,सनातन धर्म,2,सरकारी नौकरी,1,सरस्वती वन्दना,1,संस्कृत,10,संस्कृत गीतानि,36,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,8,सुविचार,5,सूरज कृष्ण शास्त्री,453,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,60,स्वास्थ्य और देखभाल,4,हमारी प्राचीन धरोहर,1,हमारी विरासत,3,हमारी संस्कृति,98,हँसना मना है,6,हिन्दी रचना,33,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,2,
ltr
item
भागवत दर्शन: भागवत तृतीय स्कंध, पञ्चम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)
भागवत तृतीय स्कंध, पञ्चम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)
भागवत तृतीय स्कंध, पञ्चम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)।यहाँ भागवत तृतीय स्कंध, पञ्चम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के सभी श्लोकों का क्रमशः हिन्दी अनुवाद दिया है।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisAaHRFt1sZk0H9tXZX08JlaZYV23IXbms8FjZQN7MzXe1_tFVvmT0Tu5qS-7qd7oeLn6bak2gTOyZK2BxOLe6p57eVA3RGY836rKVpRCX-H9rFj0ksTQ7Rdd_iRC4GXeMo-bXlxMfKY2cF6Wvj2GWzbrbSZ4PlxVt15gApdXIbtOVu95BtTCnavt_15c/s16000/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AF.webp
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisAaHRFt1sZk0H9tXZX08JlaZYV23IXbms8FjZQN7MzXe1_tFVvmT0Tu5qS-7qd7oeLn6bak2gTOyZK2BxOLe6p57eVA3RGY836rKVpRCX-H9rFj0ksTQ7Rdd_iRC4GXeMo-bXlxMfKY2cF6Wvj2GWzbrbSZ4PlxVt15gApdXIbtOVu95BtTCnavt_15c/s72-c/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AF.webp
भागवत दर्शन
https://www.bhagwatdarshan.com/2025/01/blog-post_74.html
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/2025/01/blog-post_74.html
true
1742123354984581855
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content