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भागवत तृतीय स्कंध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

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भागवत तृतीय स्कंध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद),जिसमें ब्रह्मा और भगवान के संवाद का विस्तृत वर्णन किया गया है।

भागवत तृतीय स्कंध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

यह चित्र श्रीमद्भागवत पुराण से प्रेरित है, जिसमें भगवान विष्णु को उनके दिव्य ब्रह्मांडीय रूप में दिखाया गया है। भगवान विष्णु एक भव्य कमल पर स्थित हैं, और उनके चारों ओर देवता, ऋषि और दिव्य प्राणी उन्हें श्रद्धा और भक्ति से पूजते हैं। ब्रह्मांडीय कमल से उत्पन्न ब्रह्मांड का प्रतीक है, जो सृष्टि, पालन और संहार के चक्र को दर्शाता है।



भागवत तृतीय स्कंध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

 यह पाठ और अनुवाद श्रीमद्भागवत महापुराण के तृतीय स्कंध, नवम अध्याय से है, जिसमें ब्रह्मा और भगवान के संवाद का विस्तृत वर्णन किया गया है। नीचे भागवत तृतीय स्कंध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के श्लोकों का हिंदी अनुवाद किया गया है:


श्लोक 1:

ज्ञातोऽसि मेऽद्य सुचिरान्ननु देहभाजां
न ज्ञायते भगवतो गतिरित्यवद्यम्।
नान्यत्त्वदस्ति भगवन्नपि तन्न शुद्धं
मायागुणव्यतिकराद् यदुरुर्विभासि॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान, आपने मुझे अभी-अभी जो ज्ञान दिया है, वह अत्यंत गूढ़ और सूक्ष्म है। मेरे शरीर के भीतर जो तत्व है, वही भगवद्गति का मुख्य कारण है, और वही तत्व सम्पूर्ण सृष्टि में परिलक्षित होता है, जो भगवान की माया से परे होता है।


श्लोक 2:

रूपं यदेतदवबोधरसोदयेन।
शश्वन्निवृत्ततमसः सदनुग्रहाय।
आदौ गृहीतमवतारशतैकबीजं।
यन्नाभिपद्मभवनाद् अहमाविरासम्॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान का रूप अत्यंत दिव्य है, जो ज्ञान की तरंगों से जागृत हुआ। यह रूप सर्वदा अंधकार को नष्ट करने के लिए है। भगवान का अवतार प्रारंभ में नाभि से उत्पन्न हुआ, जो अनंत शक्तियों का स्रोत बनता है।


श्लोक 3:

नातः परं परम यद्‍भवतः स्वरूपम्।
आनन्दमात्रमविकल्पमविद्धवर्चः।
पश्यामि विश्वसृजमेकमविश्वमात्मन्।
भूतेन्द्रियात्मकमदस्त उपाश्रितोऽस्मि॥

हिंदी अनुवाद:
मैं भगवान के परम स्वरूप को देख रहा हूँ, जो न केवल आनंदमय है, बल्कि संपूर्ण सृष्टि का उत्पत्ति स्रोत भी है। भगवान का रूप अद्वितीय और स्वनिर्भर है, जो सभी भूतों और इंद्रियों के द्वारा अवलोकित होता है।


श्लोक 4:

तद्वा इदं भुवनमङ्गल मङ्गलाय।
ध्याने स्म नो दर्शितं त उपासकानाम्।
तस्मै नमो भगवतेऽनुविधेम तुभ्यं।
योऽनादृतो नरकभाग्भिरसत्प्रसङ्गैः॥

हिंदी अनुवाद:
यह संपूर्ण ब्रह्मांड भगवान के द्वारा मंगलमय रूप से अभिभूत है। हमें यह दिव्य रूप उपासकों को दिखाया गया है। हम भगवान को प्रणाम करते हैं, जिन्होंने ऐसे कष्टों को समाप्त किया है जो नरक के रूप में प्रतीत होते हैं।


श्लोक 5:

ये तु त्वदीयचरणाम्बुजकोशगन्धं।
जिघ्रन्ति कर्णविवरैः श्रुतिवातनीतम्।
भक्त्या गृहीतचरणः परया च तेषां।
नापैषि नाथ हृदयाम्बुरुहात्स्वपुंसाम्॥

हिंदी अनुवाद:
जो लोग आपके चरणों की गंध को अपने कानों से सुनकर उसे आंतरिक रूप से महसूस करते हैं, वे आपके प्रेम में गहरे रूप से समाहित हो जाते हैं। भगवान, ऐसे भक्त कभी आपके चरणों से विमुख नहीं होते हैं, क्योंकि वे आपके हृदय से सदा जुड़े रहते हैं।


श्लोक 6:

तावद्‍भयं द्रविणगेहसुहृन्निमित्तं।
शोकः स्पृहा परिभवो विपुलश्च लोभः।
तावन्ममेत्यसदवग्रह आर्तिमूलं।
यावन्न तेऽङ्‌घ्रिमभयं प्रवृणीत लोकः॥

हिंदी अनुवाद:
भय, दुःख, शोक, लोभ और अन्य बुराइयाँ तभी उत्पन्न होती हैं जब लोग भगवान के चरणों से विमुख हो जाते हैं। ये कष्ट तब तक समाप्त नहीं होते जब तक वे भगवान के चरणों से संपर्क नहीं करते।


श्लोक 7:

दैवेन ते हतधियो भवतः प्रसङ्गात्।
सर्वाशुभोपशमनाद् विमुखेन्द्रिया ये।
कुर्वन्ति कामसुखलेशलवाय दीना।
लोभाभिभूतमनसोऽकुशलानि शश्वत्॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान की उपस्थिति से विमुख लोग अपनी इच्छाओं में फंसे रहते हैं। वे सभी दुखों से अभिभूत होते हैं और उनके मन पर लोभ और अन्य दुर्गुण हावी रहते हैं। इस स्थिति में वे शाश्वत रूप से कष्टित रहते हैं।


श्लोक 8:

क्षुत्तृट्‌त्रधातुभिरिमा मुहुरर्द्यमानाः।
शीतोष्णवातवर्षैरितरेतराच्च।
कामाग्निनाच्युत रुषा च सुदुर्भरेण।
सम्पश्यतो मन उरुक्रम सीदते मे॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान के दर्शन से जो लोग विमुख होते हैं, वे विभिन्न भयों से लगातार पीड़ित रहते हैं। वे मानसिक और शारीरिक पीड़ाओं का सामना करते हैं, जैसे ठंडा-गर्म, वायु, वर्षा, और अन्य कष्ट। उनकी इच्छाएँ और कार्य प्रज्वलित होते हैं, और उनके हृदय में विषाद का अनुभव होता है, जैसा कि मैंने अनुभव किया है।


श्लोक 9:

यावत् पृथक्त्वमिदमात्मन इन्द्रियार्थ।
मायाबलं भगवतो जन ईश पश्येत्।
तावन्न संसृतिरसौ प्रतिसङ्क्रमेत।
व्यर्थापि दुःखनिवहं वहती क्रियार्था॥

हिंदी अनुवाद:
जब तक यह भ्रामक विश्वास बना रहता है कि आत्मा और इंद्रियाँ पृथक हैं और भगवान की माया को न समझा जाए, तब तक यह संसार चक्र चलता रहता है। इस भ्रम में व्यक्ति अनेक दुःखों को भुगतता है, क्योंकि उसके कर्मों के फल उसे सताते हैं।


श्लोक 10:

अह्न्यापृतार्तकरणा निशि निःशयाना।
नानामनोरथधिया क्षणभग्ननिद्राः।
दैवाहतार्थरचना ऋषयोऽपि देव।
युष्मत् प्रसङ्गविमुखा इह संसरन्ति॥

हिंदी अनुवाद:
प्रकृति द्वारा प्र्रेरित और संतुष्टि की इच्छा से भरी हुई हमारी आत्माएँ दिन-रात दुःख भोगती हैं। ऐसे लोग अपनी इच्छाओं और इच्छाशक्ति के कारण नींद की कमी और मानसिक थकान का अनुभव करते हैं। ये ऋषि भी भगवान से विमुख होकर, इस संसार में दुःख भोग रहे हैं।


श्लोक 11:

त्वं भक्तियोगपरिभावितहृत्सरोज।
आस्से श्रुतेक्षितपथो ननु नाथ पुंसाम्।
यद् यद् धिया ते उरुगाय विभावयन्ति।
तत्तद् वपुः प्रणयसे सदनुग्रहाय॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान! जो लोग आपके प्रति भक्ति में पूर्ण रूप से समर्पित रहते हैं, उनके हृदय में एक प्रकार की शांति और ऊर्जा का संचार होता है। उनके दिल में आपके गुणों का स्मरण ही उनके जीवन का वास्तविक उद्देश्य बन जाता है। आप उन्हें अपने चरणों से परम आशीर्वाद प्रदान करते हैं।


श्लोक 12:

नातिप्रसीदति तथोपचितोपचारैः।
आराधितः सुरगणैर्हृदि बद्धकामैः।
यत्सर्वभूतदययासदलभ्ययैको।
नानाजनेष्ववहितः सुहृदन्तरात्मा॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान, जो प्रेम और समर्पण से आराध्य हैं, उनके भक्त उन्हें किसी भी उपहार या पूजा से संतुष्ट नहीं कर सकते जब तक उनका हृदय पवित्र न हो। वह सभी प्राणियों में समभाव और मित्रता रखते हुए, निरंतर भक्ति की ओर उन्मुख रहते हैं।


श्लोक 13:

पुंसामतो विविधकर्मभिरध्वराद्यैः।
दानेन चोग्रतपसा परिचर्यया च।
आराधनं भगवतस्तव सत्क्रियार्थो।
धर्मोऽर्पितः कर्हिचिद् ध्रियते न यत्र॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान की पूजा और भक्ति विभिन्न कर्मों, यज्ञों, दान, तपस्या, और सेवाओं से होती है। यह सब एक उद्देश्य के तहत किया जाता है—भगवान की भक्ति और उनके कार्यों का सम्मान। जहाँ ऐसा आदर्श धर्म स्थापित होता है, वहां किसी प्रकार का अन्य कार्य नहीं होता।


श्लोक 14:

शश्वत्स्वरूपमहसैव निपीतभेद।
मोहाय बोधधिषणाय नमः परस्मै।
विश्वोद्‍भवस्थितिलयेषु निमित्तलीला।
रासाय ते नम इदं चकृमेश्वराय॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान के स्वरूप में कोई भी भेद नहीं होता। उनका रूप निराकार, परम सत्य है, और सभी वस्तुओं का अस्तित्व उसी से जुड़ा हुआ है। उनके माध्यम से संसार की उत्पत्ति, स्थिति, और संहार की लीला होती है, जिसे हम भक्ति और ध्यान के साथ समझते हैं। उनका यह रूप सर्वव्यापी है और सभी प्रकार के कार्यों का कारण है।


श्लोक 15:

यस्यावतार गुणकर्मविडम्बनानि।
नामानि येऽसुविगमे विवशा गृणन्ति।
तेऽनैकजन्मशमलं सहसैव हित्वा।
संयान्त्यपावृतामृतं तमजं प्रपद्ये॥

हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति भगवान के अवतार, उनके गुण, कर्म और नामों का गान करता है, वह अनेक जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार वह भगवान की ओर उन्मुख होता है और उनके दिव्य रूप में विलीन हो जाता है, जिससे उसे अज्ञान से मुक्ति मिलती है।


श्लोक 16:

यो वा अहं च गिरिशश्च विभुः स्वयं च।
स्थित्युद्‍भवप्रलयहेतव आत्ममूलम्।
भित्त्वा त्रिपाद्‌ववृध एक उरुप्ररोहः।
तस्मै नमो भगवते भुवनद्रुमाय॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान, जो स्वयं ही सृष्टि, पालन और संहार के कारण हैं, उनका रूप अकल्पनीय और अविनाशी है। वह अपने त्रैतीय रूप से संसार के सभी कार्यों को नियंत्रित करते हैं और भगवान के इन रूपों को हम उनकी पूजा करते हैं।


श्लोक 17:

लोको विकर्मनिरतः कुशले प्रमत्तः।
कर्मण्ययं त्वदुदिते भवदर्चने स्वे।
यस्तावदस्य बलवान् इह जीविताशां।
सद्यश्छिनत्त्यनिमिषाय नमोऽस्तु तस्मै॥

हिंदी अनुवाद:
संसार में लोग गलत कार्यों में लिप्त हैं और भगवान के उपासक नहीं हैं, लेकिन जब व्यक्ति भगवान की पूजा करता है और उनके ध्येय में समर्पित होता है, तो वह न केवल संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है, बल्कि उसके सभी पाप भी समाप्त हो जाते हैं।


श्लोक 18:

यस्माद्‍बिभेम्यहमपि द्विपरार्धधिष्ण्यं।
अध्यासितः सकललोकनमस्कृतं यत्।
तेपे तपो बहुसवोऽवरुरुत्समानः।
तस्मै नमो भगवतेऽधिमखाय तुभ्यम्॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान, जिन्होंने स्वयं का रूप ग्रहण कर विभिन्न लोकों का संचार किया, उनके सामने सभी भक्तों के मन में श्रद्धा और भक्ति का उदय होता है। उनका तप और कार्य ही वास्तविक रूप से हमारे जीवन को उपदेश और मार्गदर्शन प्रदान करता है।


श्लोक 19:

तिर्यङ्‌मनुष्यविबुधादिषु जीवयोनि।
ष्वात्मेच्छयात्मकृतसेतुपरीप्सया यः।
रेमे निरस्तविषयोऽप्यवरुद्धदेहः।
तस्मै नमो भगवते पुरुषोत्तमाय॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान पुरुषोत्तम, जो अपने भक्तों की भक्ति से अवश्य संतुष्ट होते हैं, वे सभी जीवों के भीतर निवास करते हैं। वह व्यक्ति जो भगवान के ध्यान में रत रहता है, वह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसे नश्वर संसार के कष्टों से छुटकारा मिलता है।


श्लोक 20:

योऽविद्ययानुपहतोऽपि दशार्धवृत्त्या।
निद्रामुवाह जठरीकृतलोकयात्रः।
अन्तर्जलेऽहिकशिपुस्पर्शानुकूलां।
भीमोर्मिमालिनि जनस्य सुखं विवृण्वन्॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान का रूप और उनके कर्म संसार के सभी दुःखों से परे होते हैं। जब वह अपनी माया से मूढ़ होते हुए भी, जीवों की यात्रा की योजना बनाते हैं, तो उनके आंतरिक संसार की गहरी समझ से सभी को सुख और शांति मिलती है।


श्लोक 21:

यन्नाभिपद्मभवनाद् अहमासमीड्य।
लोकत्रयोपकरणो यदनुग्रहेण।
तस्मै नमस्त उदरस्थभवाय योग।
निद्रावसानविकसन् नलिनेक्षणाय॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने स्वयं के नाभि से इस सृष्टि का निर्माण किया और उसी नाभि से वे लोकों को देख और संभालते हैं। वह शरणागतों को सुखी करते हुए उनके मन और आत्मा के भीतर प्रवेश करते हैं।


श्लोक 22:

सोऽयं समस्तजगतां सुहृदेक आत्मा।
सत्त्वेन यन्मृडयते भगवान् भगेन।
तेनैव मे दृशमनुस्पृशताद्यथाहं।
स्रक्ष्यामि पूर्ववदिदं प्रणतप्रियोऽसौ॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान की जो एकमात्र स्वरूप है, वह सम्पूर्ण संसार के हृदय में बसा हुआ है। उनकी दया और प्रेम से ही सृष्टि का संतुलन और कल्याण होता है। मैं उसी भगवान के चरणों में समर्पण करता हूँ, क्योंकि वही मेरे लिए प्रिय हैं और मेरी रक्षा करने वाले हैं।


श्लोक 23:

एष प्रपन्नवरदो रमयात्मशक्त्या।
यद्यत् करिष्यति गृहीतगुणावतारः।
तस्मिन्स्वविक्रममिदं सृजतोऽपि चेतो।
युञ्जीत कर्मशमलं च यथा विजह्याम्॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान के चरणों में समर्पण करने से वह भक्तों को दया और कृपा से अभिसिक्त करते हैं। वह आत्मा और शरीर से स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए सभी कर्तव्यों को संतुलित करते हैं और उन्हें परमशांति प्रदान करते हैं।


श्लोक 24:

नाभिह्रदादिह सतोऽम्भसि यस्य पुंसो।
विज्ञानशक्तिरहमासमनन्तशक्तेः।
रूपं विचित्रमिदमस्य विवृण्वतो मे।
मा रीरिषीष्ट निगमस्य गिरां विसर्गः॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान के नाभि से ब्रह्मा की उत्पत्ति होती है और वह अपने ज्ञान की शक्ति से संपूर्ण जगत को नियंत्रित करते हैं। उनकी असीम शक्ति और रूपों की विविधता हर किसी के मन को मोहित करती है।


श्लोक 25:

सोऽसौ अदभ्रकरुणो भगवान् विवृद्ध।
प्रेमस्मितेन नयनाम्बुरुहं विजृम्भन्।
उत्थाय विश्वविजयाय च नो विषादं।
माध्व्या गिरापनयतात्पुरुषः पुराणः॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने अपने करुणा से सम्पूर्ण ब्रह्मांड को प्रेम और शांति का संदेश दिया। उनकी दिव्य दृष्टि ने हमारे दुखों को दूर किया, और उन्होंने हमें एक नया मार्ग और जीवन प्रदान किया। वे सच्चे नायक हैं जो ब्रह्मा के अवतार के रूप में प्रकट होते हैं।


श्लोक 26:

स्वसम्भवं निशाम्यैवं तपोविद्यासमाधिभिः।
यावन्मनोवचः स्तुत्वा विरराम स खिन्नवत्॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने ध्यान और तपस्या के माध्यम से अपने स्वरूप को पहचाना। जब उन्होंने यह सत्य समझ लिया, तो उनका मन और वचन श्रद्धा से भर गए और वह आत्मशांति की प्राप्ति हेतु विराम लेते हुए शांत हो गए।


श्लोक 27:

अथाभिप्रेतमन्वीक्ष्य ब्रह्मणो मधुसूदनः।
विषण्णचेतसं तेन कल्पव्यतिकराम्भसा॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि ब्रह्मा के मन में विषाद था, क्योंकि वह सृष्टि की शुरुआत के उद्देश्य को समझने में असमर्थ थे। भगवान ने उन्हें समझाने के लिए अपना दिव्य रूप प्रकट किया और ब्रह्मा के विचारों को शांति दी।


श्लोक 28:

लोकसंस्थानविज्ञान आत्मनः परिखिद्यतः।
तमाहागाधया वाचा कश्मलं शमयन्निव॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने ब्रह्मा से कहा कि संसार के समस्त तत्त्वों को समझने के लिए तुम्हें अपने आत्मज्ञान को शुद्ध करना होगा। मैंने जो दिव्य ज्ञान प्रदान किया है, वही तुम्हारे जीवन के हर कार्य का मार्गदर्शन करेगा।


श्लोक 29:

मा वेदगर्भ गास्तन्द्रीं सर्ग उद्यममावह।
तन्मयाऽऽपादितं ह्यग्रे यन्मां प्रार्थयते भवान्॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने ब्रह्मा से कहा, "आपको सृष्टि की प्रारंभिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त करने के लिए गहरी साधना करनी होगी, क्योंकि यह ज्ञान आपकी आंतरिक समझ और मुझसे जुड़ी भक्ति पर निर्भर करता है।"


श्लोक 30:

भूयस्त्वं तप आतिष्ठ विद्यां चैव मदाश्रयाम्।
ताभ्यां अन्तर्हृदि ब्रह्मन् लोकान् द्रक्ष्यसि अपावृतान्॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने ब्रह्मा को सलाह दी कि वह पुनः तपस्या करें और मेरी भक्ति में अपना ध्यान लगाएं। तभी वह मेरे दिव्य रूप को समझ पाएंगे और उनके हृदय में ब्रह्म ज्ञान का प्रकाश होगा, जिससे वह सृष्टि के उद्देश्य को देख सकेंगे।


श्लोक 31:

तत आत्मनि लोके च भक्तियुक्तः समाहितः।
द्रष्टासि मां ततं ब्रह्मन् मयि लोकान् त्वमात्मनः॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा, "जब तुम अपनी आत्मा को पूरी तरह से मुझमें समर्पित करोगे, तो तुम मुझे और मेरी शक्तियों को ब्रह्मांड में व्याप्त देख सकोगे। तब तुम्हारा मन पूरी तरह से शांत और समर्पित होगा।"


श्लोक 32:

यदा तु सर्वभूतेषु दारुष्वग्निमिव स्थितम्।
प्रतिचक्षीत मां लोको जह्यात्तर्ह्येव कश्मलम्॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा, "जब तुम अपने भीतर के दोषों को समाप्त करोगे और सभी जीवों में मुझे देख सकोगे, तब तुम्हारे हृदय में संपूर्ण शांति का अनुभव होगा, और तुम्हारा संसार से जुड़ा हुआ कष्ट समाप्त हो जाएगा।"


श्लोक 33:

यदा रहितमात्मानं भूतेन्द्रियगुणाशयैः।
स्वरूपेण मयोपेतं पश्यन् स्वाराज्यमृच्छति॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने ब्रह्मा से कहा, "जब तुम अपनी आत्मा को भौतिक गुणों से मुक्त करोगे और मेरी दिव्य स्वरूप में विलीन हो जाओगे, तो तुम सच्चे आंतरिक ज्ञान को प्राप्त करोगे और तुम्हें संसार से जुड़ी कोई बाधा महसूस नहीं होगी।"


श्लोक 34:

नानाकर्मवितानेन प्रजा बह्वीः सिसृक्षतः।
नात्मावसीदत्यस्मिन् ते वर्षीयान् मदनुग्रहः॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने ब्रह्मा को बताया, "जब तुम मेरे प्रति पूरी श्रद्धा से समर्पित होगे, तब तुम्हारे द्वारा सृजित प्रजाओं में कोई भी संदेह या भ्रम नहीं रहेगा। मेरी कृपा से ही तुम उनके पापों को दूर करोगे और उन्हें सही मार्ग पर चलने का आशीर्वाद दोगे।"


श्लोक 35:

ऋषिमाद्यं न बध्नाति पापीयान् त्वां रजोगुणः।
यन्मनो मयि निर्बद्धं प्रजाः संसृजतोऽपि ते॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा, "जो लोग मुझसे जुड़े हुए होते हैं, उनके कर्म, चाहे वे किसी भी गुण में क्यों न हों, मुझे किसी भी प्रकार से बाधित नहीं कर सकते। उनका जीवन निरंतर धर्म के मार्ग पर बढ़ता है, और वह मेरे द्वारा किए गए कार्यों के परिणामस्वरूप, मुझसे साक्षात्कार करते हैं।"


श्लोक 36:

ज्ञातोऽहं भवता त्वद्य दुर्विज्ञेयोऽपि देहिनाम्।
यन्मां त्वं मन्यसेऽयुक्तं भूतेन्द्रियगुणात्मभिः॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने ब्रह्मा से कहा, "तुम मुझे जान चुके हो, लेकिन कई लोग मुझे इस संसार में भ्रमित रूप से देखतें हैं। तुम मुझसे वास्तविक रूप से जुड़े हुए हो, लेकिन लोग मुझसे जुड़ी वास्तविकता को नहीं समझ पाते।"


श्लोक 37:

तुभ्यं मद्विचिकित्सायां आत्मा मे दर्शितोऽबहिः।
नालेन सलिले मूलं पुष्करस्य विचिन्वतः॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा, "तुमने मुझसे जो प्रश्न किया, उसका उत्तर तुम्हारे हृदय में ही है। मेरी वास्तविकता को जानने के लिए तुम्हें अपने भीतर का आत्मबोध और भक्ति को महसूस करना होगा। यही तुम्हारे जीवन का वास्तविक मार्ग होगा।"


श्लोक 38:

यच्चकर्थाङ्ग मत्स्तोत्रं मत्कथा अभ्युदयांकितम्।
यद्वा तपसि ते निष्ठा स एष मदनुग्रहः॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा, "तुम मेरे स्तोत्रों और कथाओं का जाप करते हो, जो तुम्हारे जीवन में सुख और समृद्धि लाते हैं। यही तपस्या और समर्पण से प्राप्त मेरी कृपा है, जो तुम्हें सच्चे मार्ग पर ले जाती है।"


श्लोक 39:

प्रीतोऽहमस्तु भद्रं ते लोकानां विजयेच्छया।
यद् अस्तौषीर्गुणमयं निर्गुणं मानुवर्णयन्॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा, "मैं तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ और तुम्हारे लिए यह शुभ है। तुम्हारे द्वारा गाए गए गुणमय स्तोत्र मेरे निर्गुण रूप को भी मानवीय रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिससे तुम्हें विशेष आशीर्वाद मिलेगा।"


श्लोक 40:

य एतेन पुमान्नित्यं स्तुत्वा स्तोत्रेण मां भजेत्।
तस्याशु सम्प्रसीदेयं सर्वकामवरेश्वरः॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा, "जो व्यक्ति इस प्रकार नित्य मेरे स्तोत्रों का पाठ करता है और मेरी पूजा करता है, मैं उसे शीघ्र प्रसन्न हो जाता हूँ। मैं उसकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करता हूँ, क्योंकि मैं सर्वव्यापी और सर्वकामवरेश्वर हूँ।"


श्लोक 41:

पूर्तेन तपसा यज्ञैः दानैर्योगसमाधिना।
राद्धं निःश्रेयसं पुंसां मत्प्रीतिः तत्त्वविन्मतम्॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा, "जो लोग तपस्या, यज्ञ, दान, योग और समाधि द्वारा मेरी पूजा करते हैं, उनका जीवन निःश्रेयस से भरा रहता है। उनकी आत्मा मेरे प्रेम और तत्वज्ञान से जुड़ी रहती है, और उन्हें वास्तविक सुख की प्राप्ति होती है।"


श्लोक 42:

अहमात्मात्मनां धातः प्रेष्ठः सन् प्रेयसामपि।
अतो मयि रतिं कुर्याद् देहादिर्यत्कृते प्रियः॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा, "मैं सभी प्राणियों का मूल रूप हूँ और उनका पालन करने वाला हूँ। मुझे प्रिय वह व्यक्ति है, जो मुझमें अपनी श्रद्धा और भक्ति का जीवन जीता है, और जो मेरे प्रति समर्पित है।"


श्लोक 43:

सर्ववेदमयेनेदं आत्मनाऽऽत्माऽऽत्मयोनिना।
प्रजाः सृज यथापूर्वं याश्च मय्यनुशेरते॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा, "मैं स्वयं ही आत्मा, आत्मा के मूल और ब्रह्मा से जुड़ा हुआ हूँ। मैं अपनी शक्ति से सृष्टि की रचना करता हूँ और जो मेरे मार्ग पर चलते हैं, वे सच्चे मार्ग को प्राप्त करते हैं।"


श्लोक 44:

तस्मा एवं जगत्स्रष्ट्रे प्रधानपुरुषेश्वरः।
व्यज्येदं स्वेन रूपेण कञ्जनाभस्तिरोदधे॥

हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा, "मैं इस संसार के स्रष्टा और परम पुरुषेश्वर हूँ। मैं अपने रूप से ही इस ब्रह्मांड की रचना करता हूँ, और मेरा स्वरूप साकार और निराकार दोनों रूपों में है।"


इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां तृतीयस्कन्धे नवमोऽध्यायः॥

इसी प्रकार श्रीमद्भागवत महापुराण के तृतीय स्कंध के नवम अध्याय का समापन हुआ।


 भागवत तृतीय स्कंध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) में भगवान के कार्य और उनके अवतार के बारे में दी गई जानकारी को समझकर हम उनके परम रूप और दिव्यता का अनुभव कर सकते हैं।


 इस भागवत तृतीय स्कंध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)  के सभी श्लोकों का अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। यदि आप भागवत तृतीय स्कंध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के किसी विशिष्ट श्लोक पर अधिक चर्चा करना चाहते हैं या किसी अन्य अध्याय का अनुवाद चाहते हैं, तो कृपया कमेंट में बताएं।

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भागवत दर्शन: भागवत तृतीय स्कंध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)
भागवत तृतीय स्कंध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)
भागवत तृतीय स्कंध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद),जिसमें ब्रह्मा और भगवान के संवाद का विस्तृत वर्णन किया गया है।
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भागवत दर्शन
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