यह रहा व्रजभूमि का एक नया चित्र, जिसमें सभी चेहरों को दिव्य, आकर्षक और पूर्ण रूप से सुंदर बनाने पर ध्यान दिया गया है। कृपया बताएं कि यह आप...
यह रहा व्रजभूमि का एक नया चित्र, जिसमें सभी चेहरों को दिव्य, आकर्षक और पूर्ण रूप से सुंदर बनाने पर ध्यान दिया गया है। कृपया बताएं कि यह आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप है या इसमें और सुधार की आवश्यकता है। |
भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण, प्रथम अध्याय(हिन्दी)
यहां भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण, प्रथम अध्याय(हिन्दी) केप्रत्येक श्लोक का विस्तार से हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है:
श्लोक 1
हम श्रीकृष्ण को नमन करते हैं, जिनका स्वरूप सच्चिदानंदघन (सत्य, चित्त और आनंद से पूर्ण) है। वे अनंत सुखों की वर्षा करने वाले हैं। जो इस संसार की उत्पत्ति (सृष्टि), स्थिति (पालन) और संहार (प्रलय) के मूल कारण हैं। हम अनवरत उनकी स्तुति करते हैं ताकि उनकी भक्ति-रस की प्राप्ति हो सके।
श्लोक 2
नैमिषारण्य में, जहां सूत जी विद्वानों के बीच बैठे हुए थे, वहां उपस्थित ऋषियों ने उन्हें सम्मानपूर्वक प्रणाम किया। ऋषि, जो कथा के अमृत-रस का स्वाद लेने में अत्यंत कुशल थे, उन्होंने उनसे वार्ता प्रारंभ की।
श्लोक 3
ऋषियों ने कहा: "हे सूत जी, जब राजा परीक्षित ने अपने पौत्र वज्र को मथुरा का राज्य दिया और स्वर्ग चले गए, तो उनके बाद मथुरा और हस्तिनापुर में क्या घटनाएँ घटीं? वज्र और परीक्षित ने क्या निर्णय लिया?"
श्लोक 4
सूत जी ने कहा: "नारायण (भगवान विष्णु), नर (अर्जुन), नरोत्तम (श्रेष्ठ मानव), देवी सरस्वती और महर्षि वेदव्यास को प्रणाम करते हुए मैं विजय के इस कथानक को आरंभ करता हूं।"
श्लोक 5
राजा परीक्षित, जो गंगातट पर तपस्या करने के बाद महासमाधि को प्राप्त हुए थे, उनके मन में अपने भतीजे वज्रनाभ से मिलने की इच्छा जागी। वे मथुरा की ओर प्रस्थान कर गए।
श्लोक 6
जब वज्र ने सुना कि उनके चाचा (परीक्षित) उनसे मिलने आए हैं, तो उनका हृदय प्रेम से भर गया। वे तुरंत उनके पास गए, उन्हें आदरपूर्वक प्रणाम किया, और अपने घर (महल) में ले आए।
श्लोक 7
वीर वज्र ने परीक्षित को गले लगाया, जिनका मन केवल श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित था। इसके बाद वज्र ने मंदिर में जाकर रोहिणी और श्रीकृष्ण की अन्य पत्नियों का आदरपूर्वक सम्मान किया।
श्लोक 8
रोहिणी और अन्य महिलाओं द्वारा आदरपूर्वक सत्कार किए जाने के बाद, राजा परीक्षित ने विश्राम किया। आराम करते हुए, उन्होंने वज्रनाभ से प्रेमपूर्वक वार्ता प्रारंभ की।
श्लोक 9
परीक्षित ने कहा: "हे वज्र, तुम्हारे पिता और पूर्वजों ने मेरे पिता और दादाजी (पांडवों) को अनेक बड़े संकटों से उबारा था। उन्हीं के कारण मैं सुरक्षित हूं।"
श्लोक 10
"हे वज्र, मैं तुम्हारे उपकारों का बदला कभी नहीं चुका सकता। इसलिए मेरी प्रार्थना है कि तुम राज्य में सुखपूर्वक रहो और इसे संभालो।"
श्लोक 11
"राज्य के खजाने, सेना, और शत्रुओं के डर से उत्पन्न चिंताओं को बिल्कुल भी अपने मन में स्थान न दो। तुम्हें केवल माताओं (राज्य की प्रजा) की सेवा करनी चाहिए।"
यहां प्रत्येक श्लोक का अलग-अलग और विस्तारपूर्वक हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है:
श्लोक 12
श्लोक 13
श्लोक 14
श्लोक 15
श्लोक 16
"यह सुनकर विष्णुरात (परीक्षित) ने नदियों और विभिन्न स्थानों के पुरोहित शाण्डिल्य ऋषि को शीघ्र ही बुलवाया, ताकि वज्र के संदेह और चिंताओं का समाधान किया जा सके।"
श्लोक 17
"शाण्डिल्य ऋषि अपने कुटीर को छोड़कर तुरंत वहां आए। वज्रनाभ ने उनका सम्मानपूर्वक स्वागत किया और उन्हें श्रेष्ठ आसन पर बैठाया।"
श्लोक 18
श्लोक 19
श्लोक 20
श्लोक 21
श्लोक 22
श्लोक 23
श्लोक 24
यहां अगले श्लोकों का विस्तार से हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है:
श्लोक 25
"श्रीकृष्ण की लीलाएं दो प्रकार की होती हैं:
- वास्तवी लीला: जो उनकी अपनी अनुभूति का विषय है और दिव्य है।
- व्यावहारिकी लीला: जो संसार के जीवों के अनुभव के लिए रची जाती है।इन लीलाओं के माध्यम से ही सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय रजोगुण, सत्त्वगुण और तमोगुण के आधार पर होती है।"
श्लोक 26
श्लोक 27
श्लोक 28
श्लोक 29
"द्वापर युग के अंत में, जब श्रीकृष्ण की रहस्यमयी लीलाओं का अधिकार रखने वाले जीव यहां एकत्रित हुए थे, तो श्रीहरि (कृष्ण) ने स्वयं अपनी उपस्थिति प्रकट की।"
श्लोक 30
श्लोक 31
- नित्य लोक (दिव्य, स्थायी स्थान)।
- तल्लिप्सु लोक (दिव्य स्थलों को पाने की इच्छा रखने वाले)।
- देवादि लोक (जो देवताओं द्वारा संचालित हैं)।"
श्लोक 32
"देवताओं और अन्य जीवों को श्रीकृष्ण ने पहले द्वारिका भेजा और बाद में मौसल लीला के द्वारा उन्हें उनके उपयुक्त स्थानों पर वापस भेज दिया।"
श्लोक 33
श्लोक 34
श्लोक 35
पश्यन्त्यत्रागतास्तत्मात् निर्जनत्वं समन्ततः॥
श्लोक 36
यहां अगले श्लोकों का विस्तृत हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है:
श्लोक 37
श्लोक 38
श्लोक 39
श्लोक 40
श्लोक 41
श्लोक 42
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु॥
"हरिः ॐ। यह सब सत्य है। यह श्रीकृष्ण को समर्पित है।"
यह भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण, प्रथम अध्याय(हिन्दी) सभी श्लोकों का विस्तृत अनुवाद है। यदि आप किसी विशिष्ट श्लोक या संदर्भ पर अधिक चर्चा या विवरण चाहते हैं, तो कमेंट में बताएं।