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भागवत द्वादश स्कन्ध, प्रथम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

Here is the image depicting the sages and kings from the Bhagavata Purana, capturing the serene and divine atmosphere of King Parikshit list...

भागवत प्रथम स्कन्ध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

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भागवत प्रथम स्कन्ध,नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) नीचे भागवत प्रथम स्कन्ध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)के प्रत्येक श्लोक का हिन्दी अनुवाद उसके साथ दिया गया।

भागवत प्रथम स्कन्ध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

यह रहा भीष्म पितामह का चित्र, जिसमें वे शरशय्या पर लेटे हैं, और उनके चारों ओर श्रीकृष्ण, पांडव तथा ऋषि-मुनि उपस्थित हैं। वातावरण शांत और दिव्य है।


भागवत प्रथम स्कन्ध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

 नीचे भागवत प्रथम स्कन्ध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के प्रत्येक श्लोक का हिन्दी अनुवाद उसके साथ दिया गया है:


श्लोक 1

सूत उवाच
इति भीतः प्रजाद्रोहात् सर्वधर्मविवित्सया।
ततो विनशनं प्रागाद् यत्र देवव्रतोऽपतत्॥

हिन्दी अनुवाद:
सूत जी बोले: इस प्रकार प्रजा के प्रति अपराध और सभी धर्मों को जानने की जिज्ञासा से भयभीत होकर, युधिष्ठिर उस स्थान पर गए जहाँ देवव्रत (भीष्म) गिरे थे।


श्लोक 2

तदा ते भ्रातरः सर्वे सदश्वैः स्वर्णभूषितैः।
अन्वगच्छन् रथैर्विप्रा व्यासधौम्यादयस्तथा॥

हिन्दी अनुवाद:
उस समय पाण्डव भाई, सोने से सजे हुए घोड़ों के साथ रथों पर सवार होकर वहाँ गए। उनके साथ व्यास, धौम्य और अन्य ऋषि भी थे।


श्लोक 3

भगवानपि विप्रर्षे रथेन सधनञ्जयः।
स तैर्व्यरोचत नृपः कुबेर इव गुह्यकैः॥

हिन्दी अनुवाद:
हे विप्रश्रेष्ठ! भगवान श्रीकृष्ण भी अर्जुन के साथ रथ पर सवार थे। राजा युधिष्ठिर उनके साथ ऐसे शोभा पा रहे थे जैसे कुबेर गुप्तकायों (गुह्यकों) के साथ शोभित होते हैं।


श्लोक 4

दृष्ट्वा निपतितं भूमौ दिवश्च्युतम् इवामरम्।
प्रणेमुः पाण्डवा भीष्मं सानुगाः सह चक्रिणा॥

हिन्दी अनुवाद:
भीष्म को भूमि पर इस प्रकार गिरा हुआ देखकर, जैसे कोई अमर स्वर्ग से गिरा हो, पाण्डवों ने श्रीकृष्ण और अपने साथियों सहित उन्हें प्रणाम किया।


श्लोक 5

तत्र ब्रह्मर्षयः सर्वे देवर्षयश्च सत्तम।
राजर्षयश्च तत्रासन् द्रष्टुं भरतपुङ्गवम्॥

हिन्दी अनुवाद:
उस समय वहाँ ब्रह्मर्षि, देवर्षि, और राजर्षि उपस्थित थे। वे सभी भरतवंश के श्रेष्ठ भीष्म को देखने के लिए आए थे।


श्लोक 6

पर्वतो नारदो धौम्यो भगवान् बादरायणः।
बृहदश्वो भरद्वाजः सशिष्यो रेणुकासुतः॥

हिन्दी अनुवाद:
पर्वत, नारद, धौम्य, व्यास, बृहदश्व, भरद्वाज, और परशुराम (रेणुका के पुत्र) अपने शिष्यों के साथ वहाँ उपस्थित थे।


श्लोक 7

वसिष्ठ इन्द्रप्रमदः त्रितो गृत्समदोऽसितः।
कक्षीवान् गौतमोऽत्रिश्च कौशिकोऽथ सुदर्शनः॥

हिन्दी अनुवाद:
वसिष्ठ, इन्द्रप्रमद, त्रित, गृत्समद, असित, कक्षीवान, गौतम, अत्रि, कौशिक और सुदर्शन भी वहाँ उपस्थित थे।


श्लोक 8

अन्ये च मुनयो ब्रह्मन् ब्रह्मरातादयोऽमलाः।
शिष्यैरुपेता आजग्मुः कश्यपाङ्‌गिरसादयः॥

हिन्दी अनुवाद:
हे ब्राह्मण! कश्यप, अंगिरा और अन्य अमल मुनि अपने शिष्यों के साथ वहाँ आए। वे सभी तपस्या और धर्म में निपुण थे।


नीचे शेष श्लोकों का हिन्दी अनुवाद क्रमशः दिया गया है:


श्लोक 9

तान् समेतान् महाभागान् उपलभ्य वसूत्तमः।
पूजयामास धर्मज्ञो देशकालविभागवित्॥

हिन्दी अनुवाद:
वसुश्रेष्ठ भीष्म ने उन महान ऋषियों को एकत्रित देखकर, जो धर्म और तपस्या में निपुण थे, देश और काल का विचार करते हुए उनका उचित रूप से पूजन किया।


श्लोक 10

कृष्णं च तत्प्रभावज्ञ आसीनं जगदीश्वरम्।
हृदिस्थं पूजयामास माययोपात्त विग्रहम्॥

हिन्दी अनुवाद:
जो भगवान श्रीकृष्ण, जो जगत के स्वामी हैं और मायामयी स्वरूप धारण कर बैठे थे, भीष्म ने उनके प्रभाव को जानकर उन्हें अपने हृदय में स्थित मानते हुए पूजन किया।


श्लोक 11

पाण्डुपुत्रान् उपासीनान् प्रश्रयप्रेमसङ्गतान्।
अभ्याचष्टानुरागाश्रैः अन्धीभूतेन चक्षुषा॥

हिन्दी अनुवाद:
पाण्डव भाइयों को अपने पास बैठा देखकर, जो प्रेम और विनम्रता से भरे हुए थे, भीष्म ने प्रेम और करुणा से भरी दृष्टि से उनकी ओर देखा।


श्लोक 12

अहो कष्टमहोऽन्याय्यं यद् यूयं धर्मनन्दनाः।
जीवितुं नार्हथ क्लिष्टं विप्रधर्माच्युताश्रयाः॥

हिन्दी अनुवाद:
भीष्म ने कहा: "अहो! कितना दुःखद और अन्याय है कि तुम, जो धर्म, ब्राह्मणों और श्रीकृष्ण के शरणागत हो, कष्टमय जीवन जी रहे हो।"


श्लोक 13

संस्थितेऽतिरथे पाण्डौ पृथा बालप्रजा वधूः।
युष्मत्कृते बहून् क्लेशान् प्राप्ता तोकवती मुहुः॥

हिन्दी अनुवाद:
जब पाण्डु का निधन हो गया और तुम्हारी माता पृथा (कुन्ती) छोटे बच्चों के साथ विधवा रह गई, तो उसने तुम्हारी रक्षा के लिए अनेक कष्ट सहे।


श्लोक 14

सर्वं कालकृतं मन्ये भवतां च यदप्रियम्।
सपालो यद्वशे लोको वायोरिव घनावलिः॥

हिन्दी अनुवाद:
मैं यह सब काल की गति मानता हूँ। तुम्हारे साथ जो भी अप्रिय हुआ, वह काल के अधीन ही हुआ। यह संसार काल के वश में है, जैसे बादल वायु के वश में रहते हैं।


श्लोक 15

यत्र धर्मसुतो राजा गदापाणिर्वृकोदरः।
कृष्णोऽस्त्री गाण्डिवं चापं सुहृत् कृष्णः ततो विपत्॥

हिन्दी अनुवाद:
जहाँ धर्मराज (युधिष्ठिर), भीमसेन, अर्जुन और श्रीकृष्ण जैसे मित्र और सहायकों के साथ हो, वहाँ भी विपत्ति आ जाए, यह भगवान की माया का ही प्रभाव है।


श्लोक 16

न ह्यस्य कर्हिचित् राजन् पुमान् वेद विधित्सितम्।
यत् विजिज्ञासया युक्ता मुह्यन्ति कवयोऽपि हि॥

हिन्दी अनुवाद:
हे राजन्! किसी भी मनुष्य को भगवान की इच्छा का ज्ञान नहीं होता। यहाँ तक कि बड़े-बड़े ज्ञानी भी उनके उद्देश्य को समझने में भ्रमित हो जाते हैं।


श्लोक 17

तस्मात् इदं दैवतंत्रं व्यवस्य भरतर्षभ।
तस्यानुविहितोऽनाथा नाथ पाहि प्रजाः प्रभो॥

हिन्दी अनुवाद:
इसलिए, हे भरतश्रेष्ठ! इसे दैवी विधान मानकर स्वीकार करें। भगवान के अधीन रहकर, अनाथ प्रजा की रक्षा करें।


नीचे अगले श्लोकों का हिन्दी अनुवाद दिया गया है:


श्लोक 18

एष वै भगवान् साक्षात् आद्यो नारायणः पुमान्।
मोहयन् मायया लोकं गूढश्चरति वृष्णिषु॥

हिन्दी अनुवाद:
यह भगवान नारायण ही साक्षात पुरुष हैं, जो अपनी माया से लोकों को मोहित करते हुए वृष्णि वंश में गुप्त रूप से विचरण कर रहे हैं।


श्लोक 19

अस्यानुभावं भगवान् वेद गुह्यतमं शिवः।
देवर्षिर्नारदः साक्षात् भगवान् कपिलो नृप॥

हिन्दी अनुवाद:
उनके गुप्त प्रभाव को भगवान शिव, देवर्षि नारद और साक्षात कपिल मुनि जानते हैं।


श्लोक 20

यं मन्यसे मातुलेयं प्रियं मित्रं सुहृत्तमम्।
अकरोः सचिवं दूतं सौहृदादथ सारथिम्॥

हिन्दी अनुवाद:
जिसे तुम अपना मामा, प्रिय मित्र और श्रेष्ठ सुहृद मानते हो, उसी भगवान को तुमने मित्रता के कारण अपना मंत्री, दूत और सारथी बनाया।


श्लोक 21

सर्वात्मनः समदृशो ह्यद्वयस्यानहङ्कृतेः।
तत्कृतं मतिवैषम्यं निरवद्यस्य न क्वचित्॥

हिन्दी अनुवाद:
जो भगवान समदर्शी, अद्वितीय और अहंकाररहित हैं, उनकी किसी भी लीला में कोई दोष नहीं होता।


मुझे आपकी आखिरी श्लोक को पूरा करने में रुकावट हुई। मैं इसे फिर से पूरा कर रहा हूँ। कृपया आगे पढ़ें:


श्लोक 22

तथाप्येकान्तभक्तेषु पश्य भूपानुकम्पितम्।
यत् मे असूं त्यजतः साक्षात् कृष्णो दर्शनमागतः॥

हिन्दी अनुवाद:
फिर भी, भगवान अपने एकनिष्ठ भक्तों पर विशेष करुणा करते हैं। देखो, मेरे प्राण त्यागते समय स्वयं श्रीकृष्ण दर्शन देने के लिए आए हैं।


श्लोक 23

भक्त्यावेश्य मनो यस्मिन् वाचा यन्नाम कीर्तयन्।
त्यजन् कलेवरं योगी मुच्यते कामकर्मभिः॥

हिन्दी अनुवाद:
जो योगी भगवान के नाम का कीर्तन करते हुए और मन को उनमें लगाते हुए देह त्याग करता है, वह सभी कामनाओं और कर्मबंधन से मुक्त हो जाता है।


श्लोक 24

स देवदेवो भगवान् प्रतीक्षतां
कलेवरं यावदिदं हिनोम्यहम्।
प्रसन्नहासारुणलोचनोल्लसन्
मुखाम्बुजो ध्यानपथश्चतुर्भुजः॥

हिन्दी अनुवाद:
वह देवताओं के देव भगवान मेरे प्राण त्यागने तक प्रतीक्षा करें। मैं उनके प्रसन्नमुख, अरुण नेत्र, चार भुजाओं वाले दिव्य स्वरूप का ध्यान करता हूँ।


श्लोक 25

सूत उवाच
युधिष्ठिरः तत् आकर्ण्य शयानं शरपञ्जरे।
अपृच्छत् विविधान् धर्मान् ऋषीणां चानुश्रृण्वताम्॥

हिन्दी अनुवाद:
सूत जी बोले: जब युधिष्ठिर ने शरशय्या पर लेटे भीष्म के मुख से यह सुना, तो उन्होंने वहाँ उपस्थित ऋषियों के सुनते हुए विभिन्न धर्मों के बारे में प्रश्न पूछे।


श्लोक 26

पुरुषस्वभावविहितान् यथावर्णं यथाश्रमम्।
वैराग्यरागोपाधिभ्यां आम्नातोभयलक्षणान्॥

हिन्दी अनुवाद:
भीष्म ने पुरुष के स्वभाव के अनुसार वर्ण और आश्रम धर्म, तथा वैराग्य और राग के लक्षणों को विस्तार से बताया।


श्लोक 27

दानधर्मान् राजधर्मान् मोक्षधर्मान् विभागशः।
स्त्रीधर्मान् भगवद्धर्मान् समासव्यास योगतः॥

हिन्दी अनुवाद:
उन्होंने दानधर्म, राजधर्म, मोक्षधर्म, स्त्रीधर्म और भगवद्धर्म को विस्तार और संक्षेप में समझाया।


श्लोक 28

धर्मार्थकाममोक्षांश्च सहोपायान् यथा मुने।
नानाख्यानेतिहासेषु वर्णयामास तत्त्ववित्॥

हिन्दी अनुवाद:
भीष्म, जो तत्वज्ञ थे, उन्होंने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के साथ उनके उपायों को भी विभिन्न आख्यानों और इतिहासों के माध्यम से बताया।


श्लोक 29

धर्मं प्रवदतस्तस्य स कालः प्रत्युपस्थितः।
यो योगिनः छन्दमृत्योः वाञ्छितस्तु उत्तरायणः॥

हिन्दी अनुवाद:
धर्म का उपदेश करते समय, वह समय आ गया, जो योगियों के लिए इच्छित है, अर्थात उत्तरायण काल।


नीचे शेष श्लोकों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है:


श्लोक 30

तदोपसंहृत्य गिरः सहस्रणीः
विमुक्तसङ्गं मन आदिपूरुषे।
कृष्णे लसत्पीतपटे चतुर्भुजे
पुरः स्थितेऽमीलित दृग् व्यधारयत्॥

हिन्दी अनुवाद:
उस समय भीष्म ने अपनी हजारों वाणी को संक्षेप में समाप्त करते हुए अपने सभी सांसारिक संबंधों से मुक्त होकर मन को आदिपुरुष श्रीकृष्ण में लगा दिया, जो चार भुजाओं और पीतांबर धारण किए हुए उनके सामने खड़े थे। उन्होंने अपनी आँखें बंद करके ध्यान में स्थिर कर दिया।


श्लोक 31

विशुद्धया धारणया हताशुभः
तदीक्षयैवाशु गतायुधश्रमः।
निवृत्त सर्वेन्द्रिय वृत्ति विभ्रमः
तुष्टाव जन्यं विसृजन् जनार्दनम्॥

हिन्दी अनुवाद:
शुद्ध ध्यान के द्वारा, अशुभ विचारों का नाश कर, भगवान के दर्शन मात्र से सभी थकान समाप्त कर, और इंद्रियों की सभी चंचलता को त्याग कर, भीष्म ने प्राण त्यागने से पहले भगवान जनार्दन की स्तुति की।


श्लोक 32

श्रीभीष्म उवाच
इति मतिरुपकल्पिता वितृष्णा
भगवति सात्वतपुङ्गवे विभूम्नि।
स्वसुखमुपगते क्वचित् विहर्तुं
प्रकृतिमुपेयुषि यद्‍भवप्रवाहः॥

हिन्दी अनुवाद:
भीष्म ने कहा: मेरी बुद्धि उस सात्वतों के श्रेष्ठ भगवान में स्थित है, जो सभी विभूतियों से युक्त हैं। वे स्वयं अपने सुख में स्थित होकर कभी-कभी इस संसार में लीला करने के लिए अवतरित होते हैं, जो संसार को जन्म और मृत्यु के प्रवाह में डालता है।


श्लोक 33

त्रिभुवनकमनं तमालवर्णं
रविकरगौरवराम्बरं दधाने।
वपुरलककुलावृत आननाब्जं
विजयसखे रतिरस्तु मेऽनवद्या॥

हिन्दी अनुवाद:
मेरा मन उस भगवान में समर्पित हो, जिनका शरीर तमाल वृक्ष के समान श्यामवर्ण है, जो सूर्य के तेज के समान पीले वस्त्र धारण करते हैं, जिनका मुखकमल घुँघराले बालों से घिरा हुआ है, और जो अर्जुन के मित्र हैं।


श्लोक 34

युधि तुरगरजो विधूम्र विष्वक्
कचलुलितश्रमवारि अलङ्कृतास्ये।
मम निशितशरैर्विभिद्यमान
त्वचि विलसत्कवचेऽस्तु कृष्ण आत्मा॥

हिन्दी अनुवाद:
युद्ध में घोड़ों की धूल से धूसरित शरीर और पसीने से अलंकृत मुख वाले श्रीकृष्ण, जो मेरे तीखे बाणों से छिदे हुए कवच के साथ शोभायमान थे, वे मेरे आत्मा बने रहें।


श्लोक 35

सपदि सखिवचो निशम्य मध्ये
निजपरयोर्बलयो रथं निवेश्य।
स्थितवति परसैनिकायुरक्ष्णा
हृतवति पार्थसखे रतिर्ममास्तु॥

हिन्दी अनुवाद:
जब अर्जुन के कहने पर श्रीकृष्ण ने दोनों सेनाओं के बीच रथ खड़ा किया और अपने मित्र पार्थ (अर्जुन) के लिए शत्रुओं का बल नष्ट किया, तब मेरी भक्ति श्रीकृष्ण में स्थिर हो जाए।


श्लोक 36

व्यवहित पृतनामुखं निरीक्ष्य
स्वजनवधात् विमुखस्य दोषबुद्ध्या।
कुमतिम अहरत् आत्मविद्यया यः
चश्चरणरतिः परमस्य तस्य मेऽस्तु॥

हिन्दी अनुवाद:
जिन्होंने युद्धभूमि में स्वजनों का वध देखकर मोह और दोष बुद्धि को नष्ट किया और अर्जुन को आत्मज्ञान दिया, मेरी भक्ति उन भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में स्थिर हो।


श्लोक 37

स्वनिगममपहाय मत्प्रतिज्ञां
ऋतमधि कर्तुमवप्लुतो रथस्थः।
धृतरथ चरणोऽभ्ययात् चलद्‍गुः
हरिरिव हन्तुमिभं गतोत्तरीयः॥

हिन्दी अनुवाद:
अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा करने के लिए, भगवान श्रीकृष्ण रथ से कूद पड़े, हाथ में चक्र लेकर मेरी ओर दौड़े, जैसे सिंह हाथी का वध करने के लिए झपटता है। मेरी भक्ति ऐसे भगवान में स्थिर हो।


नीचे शेष श्लोकों का हिन्दी अनुवाद दिया गया है:


श्लोक 38

शितविशिखहतो विशीर्णदंशः
क्षतजपरिप्लुत आततायिनो मे।
प्रसभं अभिससार मद्वधार्थं
स भवतु मे भगवान् गतिर्मुकुन्दः॥

हिन्दी अनुवाद:
जो आततायी (द्रोणपुत्र) को रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने अपने शस्त्र (चक्र) उठा लिए थे, और मेरे तीखे बाणों से घायल होकर भी, जो मेरे वध के लिए मेरे पास आए, ऐसे भगवान मुकुंद मेरी अंतिम गति (आश्रय) बनें।


श्लोक 39

विजयरथकुटुम्ब आत्ततोत्रे
धृतहयरश्मिनि तत् श्रियेक्षणीये।
भगवति रतिरस्तु मे मुमूर्षोः
यमिह निरीक्ष्य हता गताः स्वरूपम्॥

हिन्दी अनुवाद:
जिन्होंने अर्जुन के विजय रथ पर धनुषबाण धारण किए, घोड़ों की लगाम पकड़ी और जो अत्यंत सुंदर दिखते थे, उनकी भक्ति मृत्यु के समय भी मुझमें बनी रहे। उनके दर्शन मात्र से अनेकों ने मोक्ष प्राप्त किया।


श्लोक 40

ललित गति विलास वल्गुहास
प्रणय निरीक्षण कल्पितोरुमानाः।
कृतमनुकृतवत्य उन्मदान्धाः
प्रकृतिमगन् किल यस्य गोपवध्वः॥

हिन्दी अनुवाद:
जिनकी ललित चाल, सुंदर हंसी और प्रेममय दृष्टि ने गोपियों के मन में गहरे प्रेम उत्पन्न कर दिया। गोपियाँ, जिन्होंने उनकी हर लीला का अनुसरण किया, अपनी प्राकृतिक अवस्था को छोड़कर उनके दिव्य प्रेम में डूब गईं।


श्लोक 41

मुनिगण नृपवर्यसङ्कुलेऽन्तः
सदसि युधिष्ठिर राजसूय एषाम्।
अर्हणं उपपेद ईक्षणीयो
मम दृशिगोचर एष आविरात्मा॥

हिन्दी अनुवाद:
जब युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में, मुनियों और राजाओं की सभा में, भगवान ने सबसे योग्य होकर पूजा प्राप्त की, तब उनका दिव्य स्वरूप सभी के लिए दर्शनीय था। मेरी दृष्टि में वे सदा प्रकट रहें।


श्लोक 42

तमिममहमजं शरीरभाजां
हृदि हृदि धिष्ठितमात्मकल्पितानाम्।
प्रतिदृशमिव नैकधार्कमेकं
समधिगतोऽस्मि विधूत भेदमोहः॥

हिन्दी अनुवाद:
मैं उन अजन्मा भगवान को देख रहा हूँ, जो हर जीव के हृदय में विद्यमान हैं और जिनके प्रकाश का अनुभव हर दृष्टि में अलग-अलग होता है, जैसे एक ही सूर्य अलग-अलग दिशाओं में दिखता है। अब मैं भेद और भ्रम से मुक्त हो गया हूँ।


श्लोक 43

सूत उवाच
कृष्ण एवं भगवति मनोवाक् दृष्टिवृत्तिभिः।
आत्मनि आत्मानमावेश्य सोऽन्तःश्वास उपारमत्॥

हिन्दी अनुवाद:
सूत जी बोले: भीष्म ने अपनी मन, वाणी और दृष्टि को भगवान श्रीकृष्ण में लगाकर, अपने मन को आत्मा में स्थित किया और अपने प्राणों को शांति से त्याग दिया।


श्लोक 44

सम्पद्यमानमाज्ञाय भीष्मं ब्रह्मणि निष्कले।
सर्वे बभूवुस्ते तूष्णीं वयांसीव दिनात्यये॥

हिन्दी अनुवाद:
जब भीष्म के ब्रह्म स्वरूप में प्रवेश करने की स्थिति को समझा, तो सभी मौन हो गए, जैसे सूर्यास्त के समय पक्षी शांत हो जाते हैं।


श्लोक 45

तत्र दुन्दुभयो नेदुः देवमानव वादिताः।
शशंसुः साधवो राज्ञां खात्पेतुः पुष्पवृष्टयः॥

हिन्दी अनुवाद:
उस समय, देवताओं और मनुष्यों ने दुंदुभियाँ बजाईं। साधुजनों ने भीष्म की स्तुति की, और आकाश से पुष्पों की वर्षा हुई।


श्लोक 46

तस्य निर्हरणादीनि सम्परेतस्य भार्गव।
युधिष्ठिरः कारयित्वा मुहूर्तं दुःखितोऽभवत्॥

हिन्दी अनुवाद:
हे भार्गव! भीष्म के पार्थिव शरीर के अंतिम संस्कार आदि कर्म कराकर युधिष्ठिर कुछ समय के लिए अत्यंत दुःखी हो गए।


श्लोक 47

तुष्टुवुर्मुनयो हृष्टाः कृष्णं तत् गुह्यनामभिः।
ततस्ते कृष्णहृदयाः स्वाश्रमान्प्रययुः पुनः॥

हिन्दी अनुवाद:
मुनियों ने भगवान कृष्ण की गुप्त नामों से स्तुति की। फिर वे सभी, जिनके हृदय में कृष्ण निवास करते थे, अपने-अपने आश्रमों को लौट गए।


श्लोक 48

ततो युधिष्ठिरो गत्वा सहकृष्णो गजाह्वयम्।
पितरं सान्त्वयामास गान्धारीं च तपस्विनीम्॥

हिन्दी अनुवाद:
इसके बाद युधिष्ठिर, श्रीकृष्ण के साथ गजाह्वय (हस्तिनापुर) गए। वहाँ उन्होंने अपने पिता धृतराष्ट्र और तपस्विनी गांधारी को सांत्वना दी।


श्लोक 49

पित्रा चानुमतो राजा वासुदेवानुमोदितः।
चकार राज्यं धर्मेण पितृपैतामहं विभुः॥

हिन्दी अनुवाद:
पिता धृतराष्ट्र की अनुमति और श्रीकृष्ण के परामर्श से, युधिष्ठिर ने अपने पितृवंश और पितामह के अनुसार धर्मपूर्वक राज्य का संचालन किया।


इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां प्रथमस्कन्धे युधिष्ठिरराज्यप्रलम्भो नाम नवमोऽध्यायः॥ ९॥

इस प्रकार, श्रीमद्भागवत महापुराण, जो परमहंसों के लिए आदर्श है, के प्रथम स्कंध में "युधिष्ठिर के राज्यारोहण" नामक नवम अध्याय का समापन हुआ।


यह श्लोक भागवत प्रथम स्कन्ध,नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) नीचे भागवत प्रथम स्कन्ध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)के प्रत्येक श्लोक का हिन्दी अनुवाद उसके साथ दिया गया। अध्याय के समाप्त होने की सूचना देता है और यह बताता है कि यह महापुराण परमहंसों के लिए परम ज्ञान का स्रोत है।

 भागवत प्रथम स्कन्ध,नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)। यहाँ भागवत प्रथम स्कन्ध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)के प्रत्येक श्लोक का हिन्दी अनुवाद उसके साथ दिया गया।

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भागवत दर्शन: भागवत प्रथम स्कन्ध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)
भागवत प्रथम स्कन्ध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)
भागवत प्रथम स्कन्ध,नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद) नीचे भागवत प्रथम स्कन्ध, नवम अध्याय(हिन्दी अनुवाद)के प्रत्येक श्लोक का हिन्दी अनुवाद उसके साथ दिया गया।
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भागवत दर्शन
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