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यह भगवान श्रीराम का अत्यंत सुंदर चित्र है, जिसमें उनके चेहरे की दिव्यता और गरिमा को प्रमुखता से दर्शाया गया है। |
विग्रह चातुर्य
वनवासी क्षेत्रों में धर्म का प्रचार करने के उद्देश्य से एक ईसाई मिशनरी ने एक योजना बनाई। उसने वनवासियों को अपनी सभा में बुलाया और एक घोषणा की, जो सुनने में बहुत प्रभावशाली और निर्णायक लग रही थी। उसने कहा, “मैं आज दो मूर्तियों की परीक्षा लूँगा। मैं इन्हें पानी में डालूँगा। जो मूर्ति पानी में डूब जाएगी, उसके भक्त पाप के सागर में डूब जाएँगे, और जो मूर्ति तैरेगी, उसके भक्त पापों के सागर से पार हो जाएँगे। इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन सा धर्म श्रेष्ठ है।”
वनवासी स्वभाव से सीधे-सादे और सरल थे। उन्हें लगा कि यह परीक्षण बहुत निष्पक्ष होगा। उन्होंने यह देखने के लिए बड़ी उत्सुकता से सभा में भाग लिया। मिशनरी ने सबसे पहले ईसा मसीह की लकड़ी की मूर्ति को पानी में डाला। लकड़ी की मूर्ति हल्की थी, इसलिए वह पानी पर तैरने लगी। इसे देखकर वनवासियों में उत्सुकता बढ़ गई।
इसके बाद, मिशनरी ने भगवान रामचंद्र की मूर्ति को उठाया और पानी में डाल दिया। यह मूर्ति लोहे से बनी थी और वजनदार थी, इसलिए वह पानी में डूब गई। यह देखकर वनवासी चकित रह गए। मिशनरी ने यह कहते हुए अपनी बात को प्रमाणित करना चाहा, "देखो! ईसा मसीह की मूर्ति पानी पर तैर गई, इसका अर्थ है कि उनके भक्त पापों से मुक्त हो जाएँगे। लेकिन रामचंद्र की मूर्ति डूब गई, जिससे यह सिद्ध होता है कि उनके भक्त पापों के सागर में डूब जाएँगे।"
वनवासियों में से कुछ लोग इस नतीजे को मानने लगे, लेकिन तभी भीड़ में से एक वृद्ध और बुद्धिमान व्यक्ति उठ खड़ा हुआ। वह शांत और गंभीर स्वर में बोला, “भाइयों और बहनों! हमारे धर्म में सत्य की परीक्षा हमेशा अग्नि द्वारा होती है। क्या आप नहीं जानते कि माता सीता ने भी अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्नि परीक्षा दी थी? पानी का यह परीक्षण सत्य का निर्धारण नहीं कर सकता। इस निर्णय को भी अग्नि के माध्यम से होना चाहिए।”
उनकी बात सुनकर सभी वनवासी सहमत हो गए। सभा में "सच कहा! अग्नि ही सत्य की परख करती है!" के नारे गूंजने लगे। मिशनरी यह सुनकर थोड़ा परेशान हो गया। वह जानता था कि उसकी योजना अग्नि में सफल नहीं हो सकती, लेकिन अब वह किसी तरह पीछे नहीं हट सकता था।
वृद्ध व्यक्ति ने अग्नि तैयार करवाई। उसने सबसे पहले ईसा मसीह की लकड़ी की मूर्ति को अग्नि में रखा। लकड़ी की मूर्ति तुरंत जलकर राख हो गई। इसके बाद, भगवान रामचंद्र की लोहे की मूर्ति को अग्नि में डाला गया। लोहे की मूर्ति न केवल सुरक्षित रही, बल्कि उसकी चमक और बढ़ गई।
यह देखकर वनवासी अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने यह नारा लगाया, “जय श्री राम! सत्य की सदा विजय होती है!” मिशनरी चुपचाप वहाँ से लौट गया, क्योंकि उसकी चालाकी और कपटपूर्ण योजना पूरी तरह असफल हो गई थी।
इस घटना ने वनवासियों के हृदय में भगवान रामचंद्र के प्रति उनकी आस्था को और गहरा कर दिया। साथ ही, इसने यह भी सिद्ध किया कि सत्य और धर्म का मार्ग सदा विजयी होता है। अग्नि परीक्षा ने साबित कर दिया कि भगवान राम की मूर्ति लोहे की तरह दृढ़ और अडिग है, जो कभी नष्ट नहीं हो सकती।