महाराज रंतिदेव की कथा,भागवत नवम स्कंध , अध्याय 21।महाराज रंतिदेव की कथा का विवरण:परीक्षा:महाराज रंतिदेव का संदेश:,कथा का सार:।
महाराज रंतिदेव की कथा,भागवत नवम स्कंध , अध्याय 21
महाराज रंतिदेव की कथा श्रीमद्भागवत पुराण के नौवें स्कंध में वर्णित है। यह कथा त्याग, करुणा, और परम भक्ति का अनुपम उदाहरण है। रंतिदेव ने कठिन परिस्थितियों में भी धर्म, दया, और भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा।
महाराज रंतिदेव की कथा का विवरण:
पृष्ठभूमि:
- महाराज रंतिदेव त्रेतायुग के समय के एक महान चक्रवर्ती सम्राट थे।
- उन्होंने अपने जीवन में भोग-विलास और राजसी ऐश्वर्य को त्याग दिया और धर्म, भक्ति, और तपस्या का मार्ग अपनाया।
- उनकी विशेषता यह थी कि वे अपने शरीर, धन, और संसाधनों को हमेशा दूसरों की सेवा के लिए समर्पित रखते थे।
उनकी भक्ति और त्याग:
- एक समय ऐसा आया जब महाराज रंतिदेव ने 48 दिनों तक उपवास किया।
- 48 दिनों के उपवास के बाद उन्हें भोजन प्राप्त हुआ। जब वह भोजन ग्रहण करने वाले थे, तो उनके पास भूख से व्याकुल एक ब्राह्मण आया। महाराज ने सारा भोजन उसे दे दिया।
पहली परीक्षा:
जब ब्राह्मण को भोजन देकर महाराज भोजन करने के लिए बैठे, तभी एक और भूखा व्यक्ति वहाँ आया।
श्लोक:
स्वल्पं जलं तदापश्यन्निर्गतोऽन्यस्तमब्रवीत्।
(अर्थ: महाराज रंतिदेव ने अपने पास बचे हुए थोड़े से जल को भी दूसरों की सेवा में समर्पित कर दिया।)
दूसरी परीक्षा:
श्लोक:
योऽहं स त्वं च चान्योऽसौ द्रष्टव्योऽतिथिरागतम्।
सर्वं ब्रह्म जगत्कर्म तत्साक्षादहमद्भुतम्।।
(अर्थ: महाराज रंतिदेव ने समझा कि यह अतिथि कोई और नहीं, बल्कि स्वयं ब्रह्म का रूप है।)
तीसरी परीक्षा:
अंत में, भगवान विष्णु ने अपने विभिन्न रूपों में प्रकट होकर उनकी परीक्षा ली।
- उन्होंने देखा कि महाराज रंतिदेव ने कभी किसी से घृणा नहीं की और सदैव सबको समान दृष्टि से देखा।
- उनकी करुणा और भक्ति से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया।
श्लोक:
न कामयेऽहं गतिं देवानां त्वाहो युगेऽपि वा।
कामये दु:खतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्।।
(अर्थ: महाराज रंतिदेव ने कहा कि मैं स्वर्ग, मोक्ष, या किसी ऐश्वर्य की कामना नहीं करता। मेरी एकमात्र इच्छा है कि मैं सभी प्राणियों के दुखों का नाश कर सकूं।)
महाराज रंतिदेव का संदेश:
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त्याग और सेवा:रंतिदेव ने सिखाया कि सच्ची भक्ति सेवा और त्याग में है।
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समानता:उन्होंने हर प्राणी में ईश्वर का दर्शन किया और सभी को समान भाव से देखा।
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दया और करुणा:उन्होंने अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को त्याग कर दूसरों के दुखों को दूर करना ही अपने जीवन का उद्देश्य बनाया।
कथा का सार:
- रंतिदेव की कथा मानवता, सेवा, और भक्ति का आदर्श प्रस्तुत करती है।
- यह कथा बताती है कि सच्ची भक्ति में किसी भी प्रकार का स्वार्थ या भोग-विलास नहीं होता।
- उन्होंने भगवान विष्णु से भी मोक्ष नहीं मांगा, बल्कि प्राणियों के कष्टों को दूर करने की कामना की।
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