लोहड़ी उत्सव के 10 रोचक तथ्य, जानिए लोहड़ी उत्सव का सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व.लोहड़ी उत्तर भारत, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में..
यह रहा लोहड़ी उत्सव का एक सुंदर चित्र जिसमें पारंपरिक पंजाबी संस्कृति और उत्सव का माहौल दर्शाया गया है। इसमें लोग भांगड़ा और गिद्दा करते हुए दिख रहे हैं, एक बड़े अलाव के चारों ओर। |
लोहड़ी उत्सव के 10 रोचक तथ्य, जानिए लोहड़ी उत्सव का सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व
लोहड़ी उत्सव का सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व
लोहड़ी उत्तर भारत, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। यह फसल कटाई का पर्व है, जो समाज के सांस्कृतिक और कृषि जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है।
1. लोहड़ी का समय और महत्व
- समय:
लोहड़ी मकर संक्रांति से एक दिन पहले (13 जनवरी) को मनाई जाती है। - महत्त्व:
यह पर्व रबी की फसल, विशेषकर गन्ने, और उससे बनने वाले उत्पाद जैसे गुड़ और रेवड़ी के स्वागत का प्रतीक है। - यह दिन सूर्य के उत्तरायण (दक्षिण से उत्तर की ओर गति) की शुरुआत का भी प्रतीक है।
2. पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताएँ
- सूर्य उपासना:
इस दिन सूर्य देवता की पूजा की जाती है, ताकि आने वाले दिनों में जीवन में प्रकाश और समृद्धि बनी रहे। - दुल्ला भट्टी की कहानी:
लोहड़ी के गीतों में दुल्ला भट्टी की कहानी गाई जाती है, जो एक लोक नायक था और गरीब लड़कियों की शादी कराने में उनकी मदद करता था।
3. लोहड़ी का उत्सव कैसे मनाते हैं?
- आग जलाना:
शाम को आग जलाने की परंपरा है, जो सूर्य और अग्नि देवता के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। - भोग और प्रसाद:
गजक, तिल, रेवड़ी, मूंगफली, और मक्की के दानों का भोग चढ़ाया जाता है। इन्हें आग में अर्पित करने के बाद प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। - नृत्य और संगीत:
लोग भांगड़ा और गिद्दा करते हैं और लोहड़ी के पारंपरिक गीत गाते हैं। - परिवार और मित्र:
यह त्योहार परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर मनाया जाता है, जिससे आपसी स्नेह और संबंध और गहरे होते हैं।
4. कृषि और प्रकृति से संबंध
- यह फसल कटाई और नई फसल की शुरुआत का पर्व है। किसान अपनी फसल के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हैं।
- आग जलाना और उसमें गन्ना, तिल, और मक्का डालना प्रकृति और ऊर्जा स्रोतों के प्रति आभार प्रकट करना है।
5. लोहड़ी के गीत और परंपराएँ
- लोहड़ी गीत:
"सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन विचारा हो..." जैसे गीत गाए जाते हैं, जिनमें पारंपरिक लोककथाएँ और कहानियाँ समाहित होती हैं। - मांगने की परंपरा:
बच्चे और युवा घर-घर जाकर "लोहड़ी" मांगते हैं और बदले में रेवड़ी, मूंगफली, और मिठाइयाँ प्राप्त करते हैं।
6. लोहड़ी का संदेश
- सामाजिक समरसता:
यह त्योहार समाज में सामूहिकता और मेल-जोल का प्रतीक है। - प्राकृतिक ऊर्जा का सम्मान:
यह पर्व हमें प्रकृति और उसके संसाधनों के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने की प्रेरणा देता है। - सुख-शांति और समृद्धि:
लोहड़ी का उद्देश्य सभी के जीवन में सुख, समृद्धि, और आनंद लाना है।
7. लोहड़ी और नवजात बच्चों या नवविवाहित जोड़ों के लिए विशेष महत्व
- जिन घरों में हाल ही में बच्चा हुआ हो या शादी हुई हो, वहाँ लोहड़ी का उत्सव विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है।
लोहड़ी उत्सव के 10 रोचक तथ्य, जानिए
त्योहार एक नाम अनेक
भारत के अलग-अलग प्रांतों में मकर संक्रांति के दिन या आसपास कई त्योहार मनाएं जाते हैं, जो कि मकर संक्रांति के ही दूसरे रूप हैं। उन्हीं में से एक है लोहड़ी। पंजाब और हरियाणा में लोहड़ी का त्योहार धूम-धाम से मनाया जाता है।
लोहड़ी का अर्थ
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रूप में प्रसिद्ध हो गया। मकर संक्रांति के दिन भी तिल-गुड़ खाने और बांटने का महत्व है। पंजाब के कई इलाकों मे इसे लोही या लोई भी कहा जाता है।
कब मनाते हैं लोहड़ी
वर्ष की सभी ऋतुओं पतझड, सावन और बसंत में कई तरह के छोटे-बड़े त्योहार मनाए जाते हैं, जिन में से एक प्रमुख त्योहार लोहड़ी है जो बसंत के आगमन के साथ 13 जनवरी, पौष महीने की आखरी रात को मनाया जाता है। इसके अगले दिन माघ महीने की सक्रांति को माघी के रूप में मनाया जाता है।
अग्नि के आसपास उत्सव
लोहड़ी की संध्या को लोग लकड़ी जलाकर अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। अग्नि की परिक्रमा करते और आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं। इस दौरान रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं।
विशेष पकवान
लोहड़ी के दिन विशेष पकवान बनते हैं जिसमें गजक, रेवड़ी, मुंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू, मक्का की रोटी और सरसों का साग प्रमुख होते हैं। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं।
नववधू, बहन, बेटी और बच्चों का उत्सव
पंजाबियों के लिए लोहड़ी उत्सव खास महत्व रखता है। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है। प्राय: घर में नव वधू या बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है। इस दिन बड़े प्रेम से बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है।
उत्सव मनाने की मान्यता
कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है। यह भी मान्यता है कि सुंदरी एवं मुंदरी नाम की लड़कियों को राजा से बचाकर एक दुल्ला भट्टी नामक डाकू ने किसी अच्छे लड़कों से उनकी शादी करवा दी थी।
खेत खलिहान का उत्सव
वैसाखी त्योहार की तरह लोहड़ी का सबंध भी पंजाब के गांव, फसल और मौसम से है। इस दिन से मूली और गन्ने की फसल बोई जाती है। इससे पहले रबी की फसल काटकर घर में रख ली जाती है। खेतों में सरसों के फूल लहराते दिखाई देते हैं।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता अनुसार सती के त्याग के रूप में यह त्योहार मनाया जाता है। कथानुसार जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर शिव की पत्नीं सती ने आत्मदाह कर लिया था। उसी दिन की याद में यह पर्व मनाया जाता है।
लोहड़ी का आधुनिक रूप
आधुनिकता के चलते लोहड़ी मनाने का तरीका बदल गया है। अब लोहड़ी में पारंपरिक पहनावे और पकवानों की जगह आधुनिक पहनावे और पकवानों को शामिल कर लिया गया है। लोग भी अब इस उत्सव में कम ही भाग लेते हैं।
ईरान में भी इसी तरह मनाते हैं उत्सव
ईरान में भी नववर्ष का त्योहार इसी तरह मनाते हैं। आग जलाकर मेवे अर्पित किए जाते हैं। मसलन, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में मनाई जाने वाली लोहड़ी और ईरान का चहार-शंबे सूरी बिल्कुल एक जैसे त्योहार हैं। इसे ईरानी पारसियों या प्राचीन ईरान का उत्सव मानते हैं।
निष्कर्ष
लोहड़ी का त्योहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक जीवन के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि खुशी, आनंद, और समृद्धि केवल सामूहिकता, प्रेम, और प्रकृति के सम्मान में निहित है।
"लोहड़ी की ढेरों शुभकामनाएँ! आग की तरह आपका जीवन उज्जवल और मिष्ठानों की तरह मीठा हो।"