उपनिषद् (Upanishads) भारतीय दर्शन और वेदांत साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये वैदिक ग्रंथों के अंतिम भाग (वेदांत) के रूप में माने जाते हैं और इन
उपनिषद् (Upanishads)। यह चित्र उपनिषदों की प्रेरणा से निर्मित है, जिसमें एक गुरु अपने शिष्यों को ज्ञान प्रदान कर रहे हैं, और परिवेश में प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता का समन्वय दिखता है। |
उपनिषद् (Upanishads) भारतीय दर्शन और वेदांत साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये वैदिक ग्रंथों के अंतिम भाग (वेदांत) के रूप में माने जाते हैं और इनका मुख्य उद्देश्य आत्मा, ब्रह्म, और ब्रह्मांड की गूढ़ सच्चाइयों का विश्लेषण करना है।
उपनिषदों की प्रमुख विशेषताएं:
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संख्या और विविधता: लगभग 108 उपनिषद प्रामाणिक माने जाते हैं, लेकिन मुख्य रूप से 10-12 उपनिषद अधिक प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, छांदोग्य, और बृहदारण्यक।
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विषय वस्तु:
- आत्मा और ब्रह्म का स्वरूप: आत्मा (स्वयं का स्वरूप) और ब्रह्म (सर्वोच्च सत्ता) के बीच संबंध का वर्णन।
- मोक्ष का मार्ग: जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का उपाय।
- ज्ञान की महत्ता: कर्मकांड से परे ज्ञान का महत्व।
- अद्वैत और द्वैत दर्शन: इनमें अद्वैतवाद (सर्व कुछ ब्रह्म है) का विशेष विवरण मिलता है।
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भाषा और शैली: उपनिषद सरल और काव्यात्मक शैली में लिखे गए हैं, जिससे वे दार्शनिक विषयों को गहराई से समझाने में मदद करते हैं।
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प्रसिद्ध विचार:
- "तत्त्वमसि" (तू वही है): यह विचार अद्वैत का प्रतीक है।
- "अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ब्रह्म हूँ): आत्मा और ब्रह्म की एकता का संकेत।
- "सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्म": ब्रह्म सत्य, ज्ञान और अनंत है।
प्रमुख उपनिषदों का परिचय:
- ईश उपनिषद: संपूर्ण सृष्टि में ईश्वर के व्याप्ति का वर्णन।
- केन उपनिषद: आत्मा और इंद्रियों के संबंध का ज्ञान।
- कठ उपनिषद: नचिकेता और यमराज के संवाद द्वारा आत्मा का ज्ञान।
- बृहदारण्यक उपनिषद: यह सबसे बड़ा और दार्शनिक दृष्टि से सबसे गहन उपनिषद है।
- माण्डूक्य उपनिषद: ओंकार के महत्व और चार अवस्थाओं (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, और तुरीय) का वर्णन।
उपनिषदों का महत्व:
- वेदांत दर्शन का मूल आधार उपनिषद हैं।
- भारतीय परंपरा में योग, ध्यान, और आत्मज्ञान का मुख्य स्रोत।
- आधुनिक युग में भी उपनिषदों ने विश्व भर में दर्शन, मनोविज्ञान और अध्यात्म में गहरी छाप छोड़ी है। स्वामी विवेकानंद, रमण महर्षि, और अन्य दार्शनिकों ने इनके विचारों को आगे बढ़ाया।
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