संबंधात्मक अनुसंधान (Correlational Research)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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यह चित्र संबंधात्मक अनुसंधान (Correlational Research) को दर्शाता है। इसमें दो डेटा सेट का विश्लेषण करते हुए शोधकर्ता को दिखाया गया है, जिसमें ओवरलैपिंग ग्राफ और स्कैटर प्लॉट्स का उपयोग किया गया है। डेटा बिंदुओं को जोड़ने वाले तीर चर के बीच संबंधों और संघों को दर्शाते हैं। पृष्ठभूमि में जुड़े हुए नोड्स और एक चमकता हुआ प्रश्न चिह्न अनुसंधान की व्यवस्थित प्रकृति और पैटर्न की जांच को उजागर करते हैं।

यह चित्र संबंधात्मक अनुसंधान (Correlational Research) को दर्शाता है। इसमें दो डेटा सेट का विश्लेषण करते हुए शोधकर्ता को दिखाया गया है, जिसमें ओवरलैपिंग ग्राफ और स्कैटर प्लॉट्स का उपयोग किया गया है। डेटा बिंदुओं को जोड़ने वाले तीर चर के बीच संबंधों और संघों को दर्शाते हैं। पृष्ठभूमि में जुड़े हुए नोड्स और एक चमकता हुआ प्रश्न चिह्न अनुसंधान की व्यवस्थित प्रकृति और पैटर्न की जांच को उजागर करते हैं।



 संबंधात्मक अनुसंधान (Correlational Research) वह प्रकार का अनुसंधान है जिसका उद्देश्य दो या दो से अधिक चर (variables) के बीच संबंधों का अध्ययन करना होता है। इस प्रकार के अनुसंधान में यह जांचा जाता है कि क्या एक चर में बदलाव दूसरे चर पर प्रभाव डालता है या नहीं। हालांकि, यह अनुसंधान कारण और प्रभाव (cause and effect) के संबंध को स्पष्ट नहीं करता, बल्कि यह केवल यह बताता है कि दो घटनाओं या चर के बीच कोई संबंध है या नहीं।

संबंधात्मक अनुसंधान के प्रमुख लक्षण:

  1. संबंध का मापन: संबंधात्मक अनुसंधान में यह अध्ययन किया जाता है कि दो घटनाओं या चर के बीच क्या प्रकार का संबंध है। क्या दोनों चर एक दूसरे के साथ बढ़ते हैं, घटते हैं या उनमें कोई संबंध नहीं है।

  2. सांख्यिकीय विश्लेषण: इस प्रकार के अनुसंधान में आंकड़ों का सांख्यिकीय विश्लेषण किया जाता है। सबसे आम सांख्यिकीय उपाय है कोरिलेशन कोएफिशियंट (correlation coefficient), जो यह बताता है कि दो चर के बीच संबंध कितना मजबूत है और उसका दिशा क्या है (सकारात्मक, नकारात्मक, या कोई संबंध नहीं)।

  3. संबंध का प्रकार:

    • सकारात्मक संबंध (Positive Correlation): जब एक चर में वृद्धि होने पर दूसरा चर भी बढ़ता है। उदाहरण: शिक्षा के स्तर में वृद्धि और आय में वृद्धि के बीच संबंध।
    • नकारात्मक संबंध (Negative Correlation): जब एक चर में वृद्धि होने पर दूसरा चर घटता है। उदाहरण: तनाव और शारीरिक स्वास्थ्य के बीच संबंध।
    • कोई संबंध नहीं (No Correlation): जब दो घटनाओं या चर के बीच कोई स्पष्ट संबंध नहीं होता। उदाहरण: व्यक्ति की पसंद और उनकी ऊंचाई के बीच कोई संबंध नहीं हो सकता।
  4. संदर्भ का अध्ययन: यह अनुसंधान उन संदर्भों का अध्ययन करता है जहां दोनों चर एक दूसरे से संबंधित होते हैं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, मानसिक स्थिति, आदि।

संबंधात्मक अनुसंधान के उदाहरण:

  1. शिक्षा और छात्रों के प्रदर्शन: यह अध्ययन किया जा सकता है कि छात्रों की कक्षा में उपस्थिति और उनके परीक्षा परिणामों के बीच कोई सकारात्मक या नकारात्मक संबंध है या नहीं। यदि दोनों के बीच सकारात्मक संबंध है, तो इसका मतलब है कि उपस्थिति बढ़ने से परीक्षा परिणामों में सुधार हो सकता है।

  2. व्यायाम और मानसिक स्वास्थ्य: यह देखा जा सकता है कि नियमित व्यायाम और मानसिक स्वास्थ्य (जैसे, तनाव या चिंता स्तर) के बीच क्या संबंध है। अगर एक सकारात्मक संबंध पाया जाता है, तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि व्यायाम मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक हो सकता है।

  3. उम्र और आय: किसी व्यक्ति की आय और उसकी उम्र के बीच संबंध का अध्ययन किया जा सकता है। आम तौर पर, एक सकारात्मक संबंध पाया जा सकता है, जिसमें उम्र के साथ आय बढ़ सकती है।

  4. पारिवारिक स्थिति और बच्चों का शैक्षिक प्रदर्शन: यह जांचा जा सकता है कि पारिवारिक स्थिति (जैसे, माता-पिता का वैवाहिक स्थिति) और बच्चों के शैक्षिक प्रदर्शन के बीच कोई संबंध है या नहीं।

संबंधात्मक अनुसंधान के लाभ:

  1. संबंधों की पहचान: यह अनुसंधान दो या दो से अधिक घटनाओं के बीच संभावित संबंधों को पहचानने में मदद करता है, जो बाद में कारण और प्रभाव के अध्ययन के लिए आधार बन सकते हैं।

  2. मूल्यांकन में सहायक: इससे यह समझने में मदद मिलती है कि दो घटनाओं के बीच कितनी मजबूत या कमजोर संबंध है, और यह विभिन्न क्षेत्रों में निर्णय लेने में सहायक हो सकता है।

  3. कम खर्चीला और सरल: यह अनुसंधान प्रकार अन्य प्रकार के अनुसंधान की तुलना में कम खर्चीला और सरल होता है, क्योंकि इसमें अक्सर नियंत्रण समूह या प्रयोगात्मक सेटिंग्स की आवश्यकता नहीं होती।

  4. सामाजिक, शैक्षिक, और व्यवसायिक उपयोग: इस प्रकार के अनुसंधान का उपयोग समाज, शिक्षा, स्वास्थ्य, और व्यवसायिक निर्णयों में किया जा सकता है, जैसे नीति निर्माण, कार्यक्रम मूल्यांकन, और व्यावसायिक रणनीतियाँ तैयार करना।

संबंधात्मक अनुसंधान के सीमाएं:

  1. कारण और प्रभाव का निर्धारण नहीं: संबंधात्मक अनुसंधान केवल यह बताता है कि दो चर के बीच संबंध है, लेकिन यह यह नहीं बता सकता कि एक चर दूसरे का कारण है। इसे संपूर्ण कारण और प्रभाव (cause and effect) के अध्ययन के लिए प्रयोगात्मक अनुसंधान की आवश्यकता होती है।

  2. विविधता और अन्य चर का प्रभाव: संबंधात्मक अनुसंधान में यह संभव है कि अन्य अप्रत्यक्ष चर (confounding variables) परिणामों को प्रभावित करें, जो अध्ययन में शामिल नहीं होते।

  3. साक्षात्कार की सीमाएं: इसका विश्लेषण केवल सांख्यिकीय और मात्रात्मक डेटा के आधार पर किया जाता है, और इसमें गहरे सामाजिक या व्यक्तिगत पहलुओं का समावेश नहीं होता।

निष्कर्ष:

संबंधात्मक अनुसंधान यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि दो घटनाओं, चर या परिवर्तनों के बीच कोई संबंध है या नहीं। यह किसी कारण और प्रभाव का निर्धारण नहीं करता, लेकिन यह एक शक्तिशाली उपकरण है, जो शोधकर्ताओं को विभिन्न चर के बीच अंतर्संबंधों को समझने में मदद करता है। इसे अक्सर मूल कारणों का अध्ययन करने से पहले किया जाता है, ताकि शोधकर्ता समझ सकें कि किन कारकों को गहरे अध्ययन के लिए चुना जाए।

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