हिंदू विवाह के नौ प्रकारों का विस्तार से वर्णन: सन्दर्भ सहित

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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DALL·E 2024-12-04 16.43.48 - A traditional Hindu wedding ceremony in progress, featuring a bride and groom in ornate traditional attire sitting in front of a sacred fire (Agni). T
 A traditional Hindu wedding ceremony in progress, featuring a bride and
groom in ornate traditional attire sitting in front of a sacred fire (Agni).


 हिंदू विवाह के नौ प्रकारों का उल्लेख प्राचीन धर्मग्रंथों, विशेष रूप से मनुस्मृति, महाभारत, और अन्य धर्मशास्त्रों में मिलता है। विवाह के इन प्रकारों को धार्मिक, सामाजिक, और नैतिक दृष्टिकोण से वर्गीकृत किया गया है। इनकी चर्चा के साथ-साथ इनका विस्तार और संदर्भ नीचे दिया गया है:


1. ब्राह्म विवाह (Brāhma Vivāha)

  • विशेषता:
    • यह विवाह का सर्वोत्तम और आदर्श रूप है।
    • इसमें कन्या के पिता सुयोग्य वर (शिक्षित, धार्मिक और योग्य) का चयन करते हैं और कन्या को वर के हाथों सौंपते हैं।
    • इस विवाह में दहेज का कोई स्थान नहीं होता।
  • धर्मग्रंथों से संदर्भ:
    • मनुस्मृति (3.27): "यज्ञोपवीत धारण करने वाले, वेदों के ज्ञाता और ब्रह्मचारी वर को कन्या दान करना ब्राह्म विवाह कहलाता है।"
    • व्यास स्मृति: ब्राह्म विवाह को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है।

2. दैव विवाह (Daiva Vivāha)

  • विशेषता:
    • इसमें कन्या को धार्मिक अनुष्ठानों (जैसे यज्ञ) में भाग लेने वाले ब्राह्मण या पुरोहित को पत्नी के रूप में दिया जाता है।
    • यह विवाह तब किया जाता है जब कन्या का योग्य वर नहीं मिलता।
  • धर्मग्रंथों से संदर्भ:
    • मनुस्मृति (3.28): "जब कन्या को यज्ञ कार्य के लिए ब्राह्मण को सौंप दिया जाता है, तो वह दैव विवाह कहलाता है।"
    • इसे आदर्श विवाह नहीं माना गया क्योंकि इसमें कन्या के सम्मान में कमी होती है।

3. आर्ष विवाह (Ārṣa Vivāha)

  • विशेषता:
    • इसमें वर कन्या के पिता को गौ (गाय) और बैल जैसे साधन देकर कन्या को पत्नी बनाता है।
    • यह विवाह सादगीपूर्ण होता है, लेकिन इसे आदर्श नहीं माना गया क्योंकि यह आर्थिक लेन-देन पर आधारित है।
  • धर्मग्रंथों से संदर्भ:
    • मनुस्मृति (3.29): "जहां वर गौ और बैल देकर कन्या प्राप्त करता है, वह आर्ष विवाह कहलाता है।"
    • इसे ऋषियों द्वारा प्रचलित विवाह माना गया है।

4. प्राजापत्य विवाह (Prajāpatya Vivāha)

  • विशेषता:
    • यह समानता और जिम्मेदारी पर आधारित है।
    • कन्या को वर के साथ यह शिक्षा देकर दिया जाता है कि वह धर्म, परिवार, और समाज की सेवा करेगा।
  • धर्मग्रंथों से संदर्भ:
    • मनुस्मृति (3.30): "जब कन्या को यह निर्देश देकर दिया जाता है कि वह धर्मपूर्वक परिवार का पालन करे, तो वह प्राजापत्य विवाह कहलाता है।"
    • यह विवाह वर और कन्या दोनों के लिए समान रूप से सम्मानजनक है।

5. गांधर्व विवाह (Gāndharva Vivāha)

  • विशेषता:
    • यह विवाह प्रेम और सहमति पर आधारित होता है।
    • इसमें वर और कन्या बिना किसी सामाजिक या धार्मिक रीति के आपसी सहमति से विवाह करते हैं।
  • धर्मग्रंथों से संदर्भ:
    • मनुस्मृति (3.32): "प्रेम, आत्मीयता, और आपसी सहमति से होने वाला विवाह गांधर्व विवाह कहलाता है।"
    • महाभारत: दुष्यंत और शकुंतला का विवाह गांधर्व विवाह का उदाहरण है।
  • आधुनिक दृष्टिकोण: इसे आज के प्रेम विवाह से जोड़ा जा सकता है।

6. आसुर विवाह (Āsura Vivāha)

  • विशेषता:
    • इसमें वर कन्या के परिवार को धन देकर विवाह करता है।
    • यह विवाह नैतिक दृष्टि से उचित नहीं माना गया है, क्योंकि इसमें कन्या को वस्तु की तरह खरीदा जाता है।
  • धर्मग्रंथों से संदर्भ:
    • मनुस्मृति (3.31): "जहां धन देकर विवाह किया जाता है, वह आसुर विवाह कहलाता है।"
    • इसे तामसिक प्रवृत्ति का विवाह माना गया है।

7. राक्षस विवाह (Rākṣasa Vivāha)

  • विशेषता:
    • इसमें वर युद्ध या बल प्रयोग करके कन्या का अपहरण करता है।
    • यह विवाह प्राचीन काल में राजाओं और क्षत्रियों के लिए प्रचलित था।
  • धर्मग्रंथों से संदर्भ:
    • मनुस्मृति (3.33): "युद्ध में विजय प्राप्त कर कन्या को बलपूर्वक ले जाना राक्षस विवाह कहलाता है।"
    • रावण और सीता के अपहरण की घटना इसका उदाहरण हो सकती है।

8. पैशाच विवाह (Paiśāca Vivāha)

  • विशेषता:
    • यह विवाह का सबसे निंदनीय और अनैतिक प्रकार है।
    • इसमें वर कन्या का मानसिक और शारीरिक शोषण करके विवाह करता है।
  • धर्मग्रंथों से संदर्भ:
    • मनुस्मृति (3.34): "जहां कन्या को धोखे या बलपूर्वक विवाह के लिए बाध्य किया जाता है, वह पैशाच विवाह कहलाता है।"
    • इसे सबसे अधम और अस्वीकार्य विवाह माना गया है।

9. संयुक्त विवाह (संयुक्त परंपरा)

  • विशेषता:
    • यह नौ प्रकार की परंपराओं के संयोजन के रूप में देखा जा सकता है।
    • यह प्रकार अक्सर ग्रंथों में अस्पष्ट रूप से वर्णित है।

धर्मग्रंथों का निष्कर्ष और महत्व:

  • मनुस्मृति (अध्याय 3, श्लोक 20-34): विवाह के प्रकारों को विस्तार से वर्णित किया गया है।
  • महाभारत: गांधर्व विवाह का व्यापक उल्लेख है।
  • व्यास स्मृति: ब्राह्म विवाह को सर्वोत्तम और पैशाच विवाह को सबसे निंदनीय बताया गया है।

आधुनिक प्रासंगिकता:

 वर्तमान में ब्राह्म और गांधर्व विवाह को अधिक प्रासंगिक माना जाता है, जबकि पैशाच और राक्षस विवाह को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया गया है।

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